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Written By WD
Last Modified: गुरुवार, 23 दिसंबर 2010 (13:08 IST)

ज़ख़्म खा के भी हमको तो

ज़ख़्म खा के भी हमको तो -
ग़मों की भीड़ में आँसू किसे बहाना है,
के ज़ख़्म खा के भी हमको तो मुस्कुराना है - अज़ीज़ अंसारी