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दसवें दिन फिर राजा भोज उस दिव्य सिंहासन पर बैठने के लिए उद्यत हुए लेकिन पिछले दिनों की तरह इस बार दसवीं पुतली प्रभावती जाग्रत हो गई और बोली, रुको राजन, क्या तुम स्वयं को विक्रमादित्य के समान समझने लगे हो? पहले उनकी तरह पराक्रमी और दयालु होकर बताओ तब ही इस सिंहासन पर बैठने के अधिकारी होंगे। सुनो, मैं तुम्हें परम प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कथा सुनाती हूं-
एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उन्हें नज़र नहीं आए। उसी समय उन्होंने देखा कि एक सुदर्शन युवक एक पेड़ पर चढ़ा और एक शाखा से उसने एक रस्सी बांधी। रस्सी में फंदा बना था उस फन्दे में अपना सर डालकर झूल गया।