तेजादशमी पर्व की पौराणिक कथा
तेजादशमी पर्व : आस्था और विश्वास का प्रतीक
तेजादशमी पर्व मप्र के मालवा-निमाड़, झाबुआ सहित पूरे प्रदेश एवं अन्य प्रांतों में तथा विशेष रूप से राजस्थान में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। यह प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। तेजादशमी पर नवमी की पूरी रात रातीजगा किया जाता है एवं दूसरे दिन दशमी को प्रातः से जिन-जिन स्थानों पर वीर तेजाजी के मंदिर हैं, मेला लगता है, जहां पर वर्षभर से पीड़ित, सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों की तांती (धागा) छोड़ा जाता है।सर्पदंश से पीड़ित मनुष्य, पशु यह धागा सांप के काटने पर, बाबा के नाम से, पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं। आगे पढ़ें तेजादशमी पर्व की पौराणिक कथा :-
तेजादशमी की कथा तेजा, राजा बाक्साजी के पुत्र थे। वे बचपन से ही वीर, साहसी एवं अवतारी पुरुष के सदृश थे। बचपन में ही उनके साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। बड़े होने पर राजकुमार तेजा की शादी सुंदर गौरी से होती है।एक बार अपने हाली (साथी) के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उनकी ससुराल जाते हैं। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने हाली भाया के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए जाते हैं। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक नाग (सर्प) घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डंसना चाहता है।वीर तेजा उसे रास्ते से हटने के लिए कहते हैं, परंतु भाषक नाग रास्ता नहीं छोड़ता। तब तेजा उसे वचन देते हैं कि 'हे भाषक नाग मैं मेणा डाकू से अपनी बहन की गाएं छुड़ा लाने के बाद वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डंस लेना, यह तेजा का वचन है।' तेजा के वचन पर विश्वास कर भाषक नाग रास्ता छोड़ देता है।