तो मैं मार्शल आर्ट ट्रेनर ही होता-अक्षय
जन्मदिन : 9 सितंबर
सतश्री अकाल दोस्तो, तुसी चंगे तो होणा जी। एक के बाद एक बहुत सारी फिल्मों की शूटिंग के बीच आपसे बात करने का मौका मिला तो मुझे बड़ी खुशी है। मैं जानता हूँ कि आप सभी मेरी फिल्मों को पसंद करते हैं और पसंद नहीं भी आती है तो भी देखते हैं। आप जैसे दोस्तों ने ही तो मुझे सितारा बनाया है, वरना पता नहीं मेरा क्या होता।मुझे अपने बचपन के प्यारे दिन बड़े याद आते हैं। मेरा जन्म हुआ है पंजाब के अमृतसर में। मेरा नाम बड़े प्यार से राजीव रखा गया था। पिताजी हरिओम भाटिया सरकारी नौकरी में थे। इसके बाद हम दिल्ली आकर रहने लगे। दिल्ली के चाँदनी चौक इलाके में ही मेरा बचपन बीता है। इन गलियों की और बचपन के दिनों की तो बात ही निराली थी। बचपन की यादें बहुत साफ तो नहीं हैं। पर जो भी धुँधली यादें है उनमें इतना है कि मैं अपनी दादी के साथ सुबह 5.30 बजे उठकर शीशगंज गुरुद्वारे जाता था। मैंने बहुत छोटी उम्र में ही शांति मंत्र पूरी तरह सीख लिया था। पराठेवाली गली और आम वाली गली से गुजरते हुए मुझे इनके नाम बड़े अच्छे लगते थे। उन दिनों चाँदनी चौक की एक दुकान के बारे में मुझे इतना जरूर याद है कि वहाँ शुद्ध घी मिलता था और अगर कोई वहाँ के घी में कुछ भी मिलावट निकालकर बता दे तो उसे इनाम देने का दावा किया जाता था। हम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार में 18 सदस्य थे और दो ही कमरों में सभी समा जाते थे। उन दिनों हम फ्रंटियर मेल और पंजाब मेल से ही मुंबई आना-जाना करते थे। राजधानी से यात्रा करना उन दिनों बहुत खर्चीला हुआ करता था और परिवार के पास बहुत ज्यादा पैसे नहीं होते थे। मेरी स्कूली पढ़ाई दिल्ली के डॉन बॉस्को स्कूल से हुई। स्कूल में हम दोस्तों ने मिलकर एक ग्रुप भी बनाया था जिसमें हम खूब मस्ती करते थे। इस ग्रुप का नाम था - 'ब्लडी टेन'। दिल्ली से जब हम मुंबई आए तो यहाँ के कोलीवाड़ा इलाके में रहे। यहाँ ज्यादातर पंजाबी परिवार ही रहते थे। इस तरह देखा जाए तो मेरी परवरिश ज्यादातर पंजाबी परिवारों के बीच हुई है। इसलिए तो मैं आज भी पंजाबी मुंडा ही हूँ।दोस्तो, स्कूल के दिनों में मैं शांत तो बिल्कुल नहीं था और खूब ड्रामेबाज था। एक बार मेरे पिताजी ने मुझसे पूछा कि राजू तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो तो मैंने उन्हें कहा कि मैं तो एक्टर बनना चाहता हूँ। दिल्ली से मैं मुंबई के खालसा कॉलेज में आ गया। यहाँ स्पोर्ट्स में मेरी खूब दिलचस्पी रहती थी। स्पोर्ट्स में एक्टिव रहने के कारण ही आज अपनी कुछ फिल्मों में मैं स्टंट करना पसंद करता हूँ। एडवेंचरस लाइफ मुझे अच्छी लगती है। तो दोस्तो, मुंबई के बाद मैं बैंकाक गया जहाँ मैंने मार्शल आर्ट ऑफ ताइक्वांडो सीखा। बैंकाक में कुछ समय मेट्रो गेस्ट हाउस नाम के होटल में शेफ के तौर पर भी काम किया। जिंदगी में इस तरह के काम करना जरूरी होता है। कोई भी सीधे हीरो नहीं बनता। और तब तक मैं हीरो तो क्या विलेन भी नहीं था, तो पैसे कमाने के लिए कोई नौकरी करना तो जरूरी होता है ना। इसके बाद मैं मुंबई आया और मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देने लगा। यहीं मेरे एक स्टूडेंट ने मुझे मॉडलिंग करने को कहा और कुछ काम भी दिलाया। मॉडलिंग से पहली कमाई ही अच्छी हुई। और फिर मॉडलिंग करते हुए ही किसी की नजर पड़ी और फिल्मों में काम मिला। अगर फिल्मों में अच्छा काम नहीं मिलता तो मैं मार्शल आर्ट ट्रेनर ही होता।दोस्तो, मैंने अपनी पहली कार, पहली मोटरबाइक और पुराने घर को अभी तक अपने पास बनाए रखा है। इन चीजों के साथ मेरी यादें जो जुड़ी हुई हैं। मेरे पिताजी ने मुझे जो बाइक गिफ्ट की थी उसे मैं बहुत संभालकर रखता था। मैं हर सप्ताह उसकी सफाई भी करता था। मोटरबाइक का मुझे बहुत शौक है और खाने का भी। पंजाबी होकर अगर खाने का शौक न हो तो क्या पंजाबी हुए। फिर बचपन भी तो इन्हीं सब चीजों के बीच बीता है तो उनकी आदत तो लग ही गई। पहनने में मुझे जींस और सफेद शर्ट सबसे अच्छा लगता है।तो तुम भी खूब मजे करते रहो। और हाँ, अभी-अभी हमने 15 अगस्त मनाया है तो मैं यही कहना चाहता हूँ कि मुझे अपने देश से बहुत प्यार है। मैंने कभी नहीं सोचा कि भारत को छोड़कर कनाडा या अमेरिका बस जाऊँ। हमारे देश में जो आपस का प्यार है वह और कहीं नहीं मिल सकता है। और जो हमारे देश में गाड़ी चला सकता है वह दुनिया के किसी भी देश में गाड़ी चला सकता है, तो अपने देश की हर बात निराली है। तो तुम भी अपने देश के प्रति दिल में खूब प्यार और सम्मान रखना। और जो भी करो वह पूरे मजे के साथ करते रहना।तुम्हारा अक्की या अक्षय कुमार