चाणक्य नीति - अध्याय 2
चाणक्य अध्याय के नीति सूत्र - 2
* हमेशा ही प्रेम और मित्रता बराबर वालों में अच्छी लगती है। जैसे राजा के यहा नौकरी करने वाले को इज्जत मिलती है। व्यवसायों में वाणिज्य सबसे अच्छा है एवं उत्तम गुणों वाली स्त्री घर को सुशोभित करती है।* हर मनुष्य के जीवन का एक दिन भी ऐसा ना जाए, जब वह एक श्लोक, पाठ, आधा श्लोक या केवल एक श्लोक या मंत्र का एक अक्षर नहीं सिखे या दान-धर्म जैसा कोई पवित्र कार्य नहीं किया हो।
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* जो माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते है वो तो बच्चों के शत्रु के सामान हैं, क्योंकि वे विद्याहीन बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत किए जाते हैं जैसे हंसों की सभा में बगुलों का हाल होता है।* अपने ही लोगों से बे-इजजत होना, पत्नी वियोग, कर्ज का भार, दुष्ट मनुष्य की सेवा, गरीबी एवं दरिद्रों की सभा, यह छ: बातें शरीर को बिना अग्नि के ही जला देने के लिए काफी हैं। आगे पढ़िए चाणक्य अध्याय के नीति सूत्र
* ज्यादा लाड-प्यार से बच्चों में गलत आदतें आ जाती है। इसीलिए उन्हें कड़ी शिक्षा देने से वे अच्छी आदते सीखते है। अत: बच्चों को उनकी गलतियों के अनुसार समय-समय पर दंड अवश्य दें, क्योंकि ज्यादा लाड-प्यार बच्चे को बिगाड़ देता है।* एक राजा का बल उसकी सेना है, एक ब्राह्मण का बल तेज और विद्या है, एक वैश्य का बल उसकी दौलत में तथा एक शुद्र का बल उसकी सेवा परायणता में होता है।
चाणक्य नीति सूत्र