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Written By ND

आत्मा सब कुछ है, इसे पहचानो

आत्मा पंच महाभूतों की अधिपति

Religion and Spirit | आत्मा सब कुछ है, इसे पहचानो
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आत्मा पंच महाभूतों की अधिपति है। सब प्राणियों का राजा है। यह अनंत अपार आत्मा प्राणियों के साथ ऐसे घुल-मिल जाता है जैसे जल में नमक घुल जाता है। आत्मा जब तक प्राणियों में रहता है तभी तक उसकी संज्ञा है। आत्मा इंद्रियों में सब कुछ करता है। बिना इंद्रियों के कुछ भी नहीं कर सकता।

आत्मा इंद्रियों को पीट कर तमोगुण, रजोगुण व सतोगुण उत्पन्न करता है जैसे कलाकार ढोल को पीट कर तमोगुण, शंख को फूंककर रजोगुण और वीणा को बजाकर सतोगुण के सुर पैदा करता है। यह तीनों गुण सभी जीवों में विद्यमान रहते हैं। किसी में तमोगुण अधिक तो किसी में रजोगुण अधिक एवं सतोगुण कम या अधिक होता है।

ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य के पास प्रचुर संपत्ति थी। मैत्रेयी और गार्गी उनकी दो पत्नी थीं। मैत्रेयी तो ब्रह्मवादिनी थीं और गार्गी साधारण स्त्री प्रज्ञा थी अर्थात्‌ पतिव्रता होने के साथ गृहस्थ के सभी कार्यों में निपुण थीं।

याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा- अब मैं गृहस्थ में पड़े रहना नहीं चाहता। आओ, मैं तुम्हारा गार्गी के साथ धन का निपटारा करा दूं।
मैत्रेयी बोली- यदि सारी पृथ्वी धन-धान्य से परिपूर्ण होकर मेरी हो जाए तो मैं कैसे उससे अमर हो जाऊंगी?

ND
ऋषि बोले, जैसे साधन-संपन्न व्यक्ति चैन से जीवन निर्वाह करता है वैसे ही तुम्हारा जीवन होगा। धन-धान्य से अमरता पाने की आशा नहीं की जा सकती।

मैत्रेयी बोली, भगवन्‌। जिससे मैं अमर न हो सकूं उसे लेकर मैं क्या करूंगी? मुझे तो अमर होने का रहस्य, जो आप जानते हैं, उसी का उपदेश दीजिए। ऋषि ने अपना उपदेश प्रारंभ किया, मैत्रेयी! इस संसार में कोई भी व्यक्ति किसी से प्रेम करता है तो वह अपनी आत्मा की कामना पूर्ण करने के लिए ही करता है। पति-पत्नी परस्पर प्यार अपनी आत्मा को संतुष्ट करने के लिए करते हैं। ब्रह्म शक्ति से प्रेम करने वाले अपनी आत्मा की कामना पूर्ण करने के लिए करते हैं। पुत्र से प्यार करने से आत्मा को शांति प्राप्त होती है क्योंकि मां अपना ही अंश उसमें देखती है।

मानव जब अन्य लोगों के लिए कार्य करता है वह वास्तव में उन लोगों के लिए नहीं करता बल्कि लोक में यश प्राप्त करने के लिए करता है जिससे उसे सुखद अनुभूति होती है, आत्मा प्रसन्न हो जाती है। वास्तव में न कोई किसी से प्यार करता है और न कोई किसी का कार्य करता है, सभी आत्मातुष्टि के लिए ही व्यवहार करते हैं।

आश्चर्य की बात यह है कि मानव जिसके लिए कार्य कर रहा है, प्यार कर रहा है, बलिदान कर रहा है, कष्ट झेल रहा है वह आत्मा न दिखाई देती है, न सुनाई देती है पर सब उसकी सत्ता को मानते हैं इसलिए वह माननीय है। उसका ही चिंतन मनन करना चाहिए। उसे देखने, सुनने, समझने और जानने से सब गांठें खुल जाती हैं।

मानव को इस संसार में सभी वस्तुएं मीठी व मधुर लगती हैं इसीलिए इसे मधु विद्या भी कहते हैं। ब्रह्म विद्या भी यही है। जैसे पृथ्वी, जल, विद्युत, बादल, आकाश, चंद्रमा, आदित्य, वायु, अग्नि, दिशाएं, धर्म, सत्य, अहंभाव आदि सबको मधु के समान प्रिय लगते हैं। भिन्न-भिन्न जीवों में, व्यक्तियों में, तेजोमय अमृतमय जो आत्मा है वही अमृत है।

आत्मा के कारण ही पंचमहाभूतों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी व आकाश की स्थिति है। उसके कारण ही उनका विकास होता है, ह्रास भी होता है। आत्मा सब कुछ है। इसे जानो, पहचानो।