बाल कांड में हैं प्रभु श्रीराम के पतंग उड़ाने का प्रमाण
रामचरितमानस में है इसके प्रमाण
पतंग' शब्द बहुत प्राचीन है। सूर्य के लिए भी 'पतंग' शब्द का प्रयोग हुआ है। पक्षियों को भी पतंग कहा जाता रहा है। 'कीट-पतंगे' शब्द आज भी प्रयोग में है। संभव है इन्हीं शब्दों से वर्तमान पतंग का नामकरण किया गया हो। शायद आसमान के नक्षत्र और उड़ते पक्षियों को देखकर मनुष्य के मन में कुछ उड़ाने की प्रेरणा मिली हो। संभव है इसी से पतंग का सामंजस्य बिठाया गया होगा। कुछ भी हो, पतंग उड़ाने की प्रथा प्राचीन होते हुए भी सार्व-देशीय भी है। भारत में तो इसे परंपरागत रूप से उड़ाया जाता है। मलेशिया, जापान, चीन, थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में भी पतंग उड़ाई जाती है।
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कुछ धार्मिक भाव भी प्रकट होता है। इस दिन सूर्य मकर रेखा से उत्तर की ओर आने लगता है। सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में पतंग उड़ा कर भगवान भास्कर का स्वागत किया जाता है तथा आंतरिक आनंद की अभिव्यक्ति की जाती है। वर्तमान में यह केवल मनोरंजन या खेल के रूप में ही रह गया है।मकर संक्रांति पर देशभर में पतंग उड़ा कर मनोरंजन करने का रिवाज है। मकर संक्रांति को 'पतंग पर्व' भी माना जाता है। पतंग उड़ाने की यह परंपरा बहुत प्राचीन है। प्रमाण मिलते हैं कि श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी!रामचरितमानस में महाकवि तुलसीदास ने ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है, जब श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में बाल कांड में उल्लेख मिलता है :
'राम इक दिन चंग उड़ाई।
इंद्रलोक में पहुंची जाई॥'