सर्दियों की चाँदनी अच्छी लगी
शकूर अनवर बिखरी-बिखरी हर खुशी अच्छी लगीमुन्तशिर-सी ज़िंदगी अच्छी लगीउसकी दानाई का मैं क़ाइल हुआमुझको उससे दुश्मनी अच्छी लगीटेढ़ी-मेढ़ी दूर तक ग़म की कतारसाँप जैसी यह नदी अच्छी लगीजा रहा था जब यह सूरज डूबनेपंछियों की वापसी अच्छी लगीनर्म फूलों से चुने रस्ते भी थेक्यूँ झुलसती रेत ही अच्छी लगीकाँपती रातों का अपना हुस्न थासर्दियों की चाँदनी अच्छी लगीआँधियों के लश्करी अंदाज़ थेमौसमों की छावनी अच्छी लगीजगमगाते शहर में 'अनवर' मुझेबस अभावों की गली अच्छी लगी । साभार : प्रयास