ओ मेरे दिव्य पुरुष!
संज्ञा
तुम्हारे देखते हीनदी में हलचल हुईपाँव-पाँव चलने लगा पानीतुम्हारे मुस्कुरातेखिल गया स्त्री-मनछूता हुआ तुमकोतुम्हारे बोलते हीरोशन-रोशन होने लगा सब-कुछहँसने लगी धूप, छिटकने लगे शब्द।ओ मेरे दिव्य पुरुष!इस तरह समर्पित हो रहा हैपूरा स्त्रीत्व तुम्हारे आगेजबकि बहुत जरूरी है हमारे लिए'
अदर्शनम् मौनम् अस्पर्शम्''
धम्मं शरणं गच्छामि' काउच्चारण कर रही हैं मेरी माँ यहीं-कहीं।