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Written By WD

कस्तूरी कुण्डल बसै : कलात्मक आत्मकथा

राजकमल प्रकाशन

book review | कस्तूरी कुण्डल बसै : कलात्मक आत्मकथा
WD
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पुस्तक के बारे में
मैत्रेयी पुष्पा का यह उपन्यास, केवल उपन्यास ही नहीं उनकी आत्मकथा भी है। और दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सिर्फ आत्मकथा ही नहीं, एक फिक्शन भी है। कस्तूरी कुण्डल बसै के बारे में यह तीनों बातें सच है लेकिन अधूरा सच। दरअसल यह पुस्तक मैत्रेयी पुष्पा की रचनाशीलता का एक प्रयोगधर्मा प्राकट्य है। जो पाठकों को एक लेखिका की जीवनशैली, उसके संबंध,सरोकार और संघर्षों की दास्तान बड़ी रोचकता से बताती है। आरंभ से अंत तक रचना के आकर्षण से पाठक की रूचि को बाँधे रखती है।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
'माँ का संकल्प- इस मनचली लड़की को स्थिरता देनी होगी। ब्याह जैसी बेडि़यों का महत्व समझना होगा। बी.ए. पास लड़की के लिए नौकरी की कमी नहीं। माँ-बाप लड़कियों को पढ़ाना फालतू का खर्च और आबरू का खतरा मानते हैं। कस्तूरी की राय में बेटी को ब्याह कर गाय की तरह हाँक देने जैसा कोई दूसरा अपराध नहीं। लेकिन उल्टी गंगा तो देखो कि उन्हीं की बेटी आगे की ओर नहीं, पीछे की ओर चल रही है। क्या इसलिए था उनका संघर्ष?
***
मुग्ध विह्वल दृष्टि आँखों के कोने में दुबकी बैठी थी, मौका मिलते ही सरक आई। कौन जाने राह में किस प्यारे-दुलारे से भेंट हो पड़ें। वह आँखे फैलाकर-घुमाकर चारों ओर देखती है। पीछे छुटे समय के रेत पर साथ-साथ आते दो पग-चिन्ह नहीं आठ-दस पाँवों के निशान है। अच्छा-खासा चौड़ा रास्ता हथिया रखा है राह यात्रियों ने। .....साथियों के प्यार से लबरेज चेहरे! मैत्रेयी के मन में मधु घुलता है। उनकी यादें ताने देने लगी, अब तक कहाँ थी मीतो?
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'देखो, बात की भूमिका बनाना मुझे आता नहीं। सीधे कहता हूँ, शुरूआत में थोड़ा विचलित हुआ था, क्योंकि संस्कार आत्मा से लिपटे-चिपटे पड़े हैं। जबकि जानता था कि कुआँरी लड़कियाँ जो उछलने-कूदने, फलाँगने-लाँघने या साइकिल सवारी-घुड़सवारी करती हैं उनकी वर्जिनिटी यानी कौमार्य बचे यह जरूरी नहीं। मेरा मिजाज बिगड़ा रहा, उस बात पर गौर मत करना' कह कर वे साथ लाए कई पैकेट खोलने लगे।
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समीक्षकीय टिप्पणी
इस पुस्तक में मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उन अंतरंग और लगभग अनछुए अकथनीय प्रसंग का ताना-बाना कलात्मक ढंग से बुना है। जिन्हें आमतौर पर सामान्यजन छुपा लेते हैं। मैत्रेयी पुष्पा के इस हौसले के कारण उनका यह आत्मकथ्यात्मक उपन्यास हिन्दी में उपलब्ध आत्मकथाओं में अपना विशिष्ट स्थान बनाने में सफल हुआ है। चाक, इदन्नमम और अल्मा कबूतरी जैसे उपन्यासों की बहुपठित लेखिका मैत्रेयी पुष्पा की इस औपन्यासिक कृति के कुछ अंश यत्र-तत्र प्रकाशित होकर पहले ही चर्चित हो चुके हैं। कहा जा सकता है कि 'कस्तूरी कुण्डल बसै' हिन्दी के आत्मकथात्मक लेखन को एक नई दिशा देने में समर्थ है।

उपन्यास : कस्तूरी कुण्डल बसै
लेखिका : मैत्रेयी पुष्‍पा
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 332
मूल्य : 195 रुपए