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Written By ND

ल्यूकोडर्मा

ल्यूकोडर्मा -
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार सफेद दाग एक प्रकार का त्वचा रोग है तथा इसे ल्यूकोडर्मा नाम दिया गया है। त्वचा के बाहरी स्तर में मेलेनिन नामक एक रंजक द्रव्य रहता है, जिस पर त्वचा का रंग निर्भर करता है। यह रंजक द्रव्य (मेलेनिन) गर्मी से त्वचा की रक्षा करता है।

उष्ण प्रदेशों के निवासियों में मेलेनिन की बहुलता होने से उनकी त्वचा अत्यधिक काली होती है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार ल्यूकोडर्मा व्याधि में मेलोनिन नामक रंजक द्रव्य की कमी से त्वचा का वर्ण सफेद होकर उसकी कोमलता नष्ट हो जाती है।

ल्यूकोडर्मा के लक्षण : शरीर में किसी भी स्थान की त्वचा पर त्वचा के सामान्य रंग से पृथक रंग का बिन्दु जैसा दाग उत्पन्न होता है। अत्यंत धीमी गति से इस दाग की वृद्धि होती जाती है। प्रारंभ में इसकी ओर रोगी का ध्यान नहीं जाता। दाग के कुछ बड़े होने पर ही इसका पता चलता है। फैलते-फैलते किसी रोगी के संपूर्ण शरीर की त्वचा ही सफेद हो जाती है। किसी-किसी स्थान पर कुछ काले धब्बे ही शेष रह जाते हैं। दोष भेद से इन दागों में रूखापन, जलन, खुजली तथा स्थान विशेष के रोम (केश) नष्ट होना आदि लक्षण होते हैं।

* इस व्याधि में एक-दो या तीनों दोष (वात, पित्त, कफ) और त्वचा का दूषित होना ही पर्याप्त है, इसीलिए इसका प्रभाव गंभीर स्वरूप का न होकर केवल त्वचा तक ही सीमित होता है। वात प्रकोप से उत्पन्न कुष्ठ रूखा तथा दाग का रंग लाल होता है।

* पित्त प्रकोप से उत्पन्न होने वाला कुष्ठ तांबे के रंग जैसा होता है। इसमें जलन होती है तथा जितने स्थान पर दाग होता है, वहां के रोग नष्ट हो जाते हैं।

* कफ प्रकोप से उत्पन्न कुष्ठ दृढ़ तथा भारी होता है। इसके दाग में खुजली भी होती है। यह श्वेत कुष्ठ रोग क्रम से रक्त, मांस और मेद धातु के आश्रयी होता है।

* जिस कुष्ठ में दाग सफेद न हुए हों, दाग के स्थान की त्वचा पतली हो, दाग परस्पर सटे न हों, जिसे उत्पन्न हुए अधिक समय न हुआ हो, ऐसा श्वेत कुष्ठ चिकित्सा से साध्य है। इसके विपरीत लक्षणों वाला कुष्ठ असाध्य होता है।

* इसी तरह गुप्तांग (शिश्न, योनि, गुदा आदि) में, हाथ की हथेली तथा पैर के तलवों और होठों पर उत्पन्न कुष्ठ नया-नया भी हो तो असाध्य होता है।

चिकित्सा का तरीका
* आभ्यांतरिक प्रयोग : श्वेत कुष्ठ की चिकित्सा में गंधक रसायन, रसमाणिक्य, अमृता सत्व प्रवालपिष्टि, कांचनार गुग्गुलु, बाकुची चूर्ण, स्वर्णमाक्षिक भस्म, त्रिफला गुग्गुल, पंचतिक्तघृत गुग्गुलु, आरोग्यवर्धिनी वटी, पंचतिक्त घृत, सोमराजी घृत, मंजिष्ठादि क्वाथ, गुडुच्यादि क्वाथ, खदिराष्टि, पंचनिम्बचूर्ण आदि औषधियों का समयानुकूल रोगी की तीव्रता को देखते हुए प्रयोग करना चाहिए।

* बाकुची प्रयोग : इस व्याधि में बाकुची का प्रयोग अतीव लाभप्रद है। अतः बाकुच चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करें। बाकुची तेल 5-5 बूंद की मात्रा में सुबह-शाम जल में मिलाकर सेवन करें।

* बाकुची चूर्ण में खदिर की छाल के क्वाथ की सात भावनाएं देकर छाया में सुखा लें। सूख जाने पर उसमें बराबर मात्रा में हरितकी का चूर्ण मिलाकर रख लें। इस चूर्ण को सुबह-शाम 3-3 ग्राम की मात्रा में जल के साथ सेवन करें।

सावधानी : बाकुची का प्रयोग लंबे समय तक करने से आंतों में रुक्षता या व्रण उत्पन्न हो सकता है। अतः बीच-बीच में कुछ दिन इसका सेवन बंद कर पुनः शुरू करना चाहिए।

* गंधक, वायविडंग, भिलावा, चित्रकमूल, दन्तीमूल, अमलताश की जड़ और नीम की छाल को बराबर मात्रा में लेकर कांजी के साथ पीसकर दागों पर लेप करें।
* बाकुची बीज तथा देशी मूली के बीजों को गोमूत्र में पीसकर दागों पर लेप करें।
* मैनसिल, अपामार्ग के जड़ की भस्म तथा अर्जुन वृक्ष की छाल इन तीनों को जल के साथ पीसकर दागों पर लेप करें।
* बाकुची के बीज, कठमूलट तथा चित्रक की छाल को गोमूत्र में पीसकर दागों पर लेप करें।
* हरताल, चित्रक छाल और काली मिर्च को गोमूत्र में पीसकर दागों पर लेप करें।
* मृधरशंख (मुरदार शंख) को सरसों के तेल में पीसकर दागों पर लेप करें।
* मैनशिल, वायविडंग, कासीस, गोरोचन, सत्यानाशी की जड़ की छाल तथा सेंधा नमक को बराबर मात्रा में लेकर जल के साथ पीसकर दागों पर लेप करें।

ध्यान दें : श्वेत कुष्ठ के दागों पर लेप करने से यदि व्रण उत्पन्न हो जाएं, तब लेप का प्रयोग तत्काल बंद करके व्रणों पर मक्खन का लेप करें। व्रण के ठीक होने पर पूर्ववत लेप कर प्रयोग करें।

श्वेत कुष्ठ का आयुर्वेदिक उपचार
1. अरटिनिल टेबलेट, विमटोन टेबलेट तथा जे.पी. कांचनार गुग्गुल तीनों को दो-दो टेबलेट की मात्रा प्रातः तथा रात्रि में दूध से लें।
2. डर्मोटोन सीरप तथा लिवो सीरप दो-दो चम्मच मिलाकर दिन तथा रात्रि में भोजन के बाद लें।
3. जे.पी. आराम चूर्ण 2 चम्मच नित्य रात्रि में सोते समय कुनकुने जल से लें।
4. स्किनोकान ऑइल 50 मिली, चालमोगरा 50 मिली, चंदन तेल 10 मिली लेकर मिश्रण बना लें तथा इस मिश्रण को दिन में 2-3 बार सफेद दागों पर लगाएं। औषधि सेवनकाल में दागों पर साबुन का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।

पथ्य : जौ, गेहूं, बाजरा या या ज्वार की रोटी, पुराना चावल, मूंग, मसूर की दाल, लौकी, तरोई, करेला, परवल, बथुआ, मेथी, पालक, टिण्डा, सहिजन की फली तथा फूलों की सब्जी, खजूर, पपीता, अनार, मौसंबी, चीकू, आंवला तथा तिक्त रस वाले सभी पदार्थ खा सकते हैं।

अपथ्य : लवण (नमक), अम्ल, तीक्ष्ण, उष्ण, तले, विदाही पदार्थ, मूली, लहसुन, अदरक, मांसाहार, गरिष्ठ भोजन, खट्टा दही, सिरका, अचार, शराब, आंवला, अनार और नीबू को छोड़कर शेष खट्टे पदार्थों का सेवन, धूप में चलना, आग तापना, व्यायाम, दिन में सोना- रात में जागना, आदि न करें।