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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 23 अप्रैल 2024 (12:19 IST)

विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र | Vibhishan Krit Hanuman Stotra

vibhishan Hanuma and ram
Vibhishan dwara rachit hanuman stotra: यह स्तोत्र रावण के भाई विभीषण ने गाया था। इसका उल्लेख श्री सुदशरण संहिता में मिलता है। विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र भगवान हनुमान को प्रसन्न करने और उनके दर्शन करने का एक शक्तिशाली मंत्र है। 41 दिनों तक स्तोत्र का अखंड जाप करने से सभी रोग, भय, बाधा और सभी प्रकार की परेशानियां दूर हो जाती है।
 
 
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे
नमः श्रीराम भक्ताय शयामास्याय च ते नमः।।
 
नमो वानर वीराय सुग्रीवसख्यकारिणे
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे।।
 
सीताशोक विनाशाय राममुद्राधराय च
रावणान्त कुलचछेदकारिणे ते नमो नमः।।
 
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नमः
अशोकवनविध्वंस कारिणे भयहारिणे।।
 
वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने
वनपालशिरश् छेद लङ्काप्रसादभजिने।।
 
ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाङ्गूलधारिणे
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः।।
 
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्म पाश निवारिणे
लक्ष्मणाङग्महाशक्ति घात क्षतविनाशिने।।
 
रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नमः
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नमः।।
 
परसैन्यबलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः
विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः।।
 
महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे
परप्रेरितमन्त्रणाम् यन्त्रणाम् स्तम्भकारिणे।।
 
पयःपाषाणतरणकारणाय नमो नमः
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे।।
 
नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे।।
 
प्रतिग्राम स्तिथतायाथ रक्षोभूतवधार्थीने
करालशैलशस्त्राय दुर्मशस्त्राय ते नमः।।
 
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्ति धराय च
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः।।
 
कौपीनवासये तुभ्यं रामभक्तिरताय च
दक्षिणाशभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने।।
 
कृत्याक्षतव्यधाघ्नाय सर्वकळेशहराय च
स्वाभ्याज्ञापार्थसंग्राम संख्ये संजयधारिणे।।
 
भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने
किलकिलाबुबुकोच्चारघोर शब्दकराय च।।
 
सर्पागि्नव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे
सदा वनफलाहार संतृप्ताय विशेषतः।।
 
महार्णव शिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नमः
वादे विवादे संग्रामे भये घोरे महावने।।
 
सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्यः स्तोत्र पाठाद भयं न हि
दिव्ये भूतभये व्याघौ विषे स्थावरजङ्गमे।।
 
राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च
जले सर्पे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे।।
 
पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठतः।।
 
सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवं
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।।
 
विभीषण कृतं स्तोत्रं ताक्ष्येर्ण समुदीरितम्
ये पठिष्यन्ति भक्तया वै सिद्धयस्तत्करे स्थिता:।।
 
।।इति विभीषणकृत हनुमान स्तोत्रम।।
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