भारत, भारतीय अर्थव्यवस्था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह साल बेहद महत्वपूर्ण रहा। इस साल सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करना रही। 2016 में जहां नोटबंदी ने अच्छे-अच्छों को जमीन दिखा दी थी वहीं 2017 में जीएसटी के जाल में व्यापारी उलझे से नजर आए।
नोटबंदी के कुछ ही माह बाद जीएसटी लागू से व्यापार जगत में हड़कंप की सी स्थिति मच गई। कुछ महीने तो आम कारोबारी को जीएसटी को समझने में ही लग गए। पर उन्हें इसकी जटिलता समझ ही नहीं आई। बहरहाल सरकार ने दरियादिली दिखाते हुए इसके प्रभावों को समझा और इसमें बदलाव करते हुए इस जनहितैषी बनाने का भरसक प्रयास किया। हालांकि आम आदमी सरकार और कारोबारियों के बीच पिसता नजर आया।
जब सरकार ने जीएसटी लगाया, तो अप्रत्यक्ष रूप से सारा भार उसके सिर आ गया पर जब राहत मिली तो फायदा व्यापारी उठा ले गए। दूसरी ओर देशवासियों ने मोदीजी के कैशलेस अभियान को भी समझा और नोटबंदी पर अपनी मोहर लगा दी। लोगों ने पिछले साल की तरह ही इस वर्ष भी दो नए (200 और 50) नोट देखें। शेयर बाजार कुलांचें भरता रहा तो रिअल इस्टेट कारोबार को मानो सांप ही सूंघ गया। महंगाई के मोर्चे पर सरकार को इस वर्ष भी जू्झना पड़ा। इस वर्ष को बिटकॉइन के लिए भी याद रखा जाएगा।
* जीएसटी में उलझे व्यापारी, सालभर रहे परेशान : नोटबंदी का एक साल पूरा हो गया है। सरकार इसे कालेधन के खिलाफ जीत का अवसर मान रही है तो विपक्ष काला दिवस। इन दोनों दलों से इतर आम हिंदुस्तानी अब भी इस पर अपनी कोई राय कायम नहीं कर पाया है।
सरकार के इस बड़े अभियान से क्या फायदा हुआ है और क्या नुकसान, यह सवाल तो उठ ही रहे हैं पर आम आदमी को अपने अंदर घुमड़ रहे कई सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं। सरकार ने इस वर्ष जीएसटी के रूप में सबसे बड़े कर सुधार को लागू कर दिया। इसके जाल में उलझकर तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर लगाम लगा दी। हालांकि सरकार ने व्यवस्था में सुधार कर जन हितैषी बनाने का प्रयास किया लेकिन अब 2018 ही यह तय करेगा कि वह इसमें कितनी सफल हुई।
* अर्थव्यवस्था की रफ्तार : 2016 के अंत में नोटबंदी और 2017 की शुरुआत में जीएसटी ने देश में विकास की रफ्तार को धीमा कर दिया। हालांकि दुनियाभर के आर्थिक विशेषज्ञ और रेटिंग एजेंसियां यह मानती हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ेगी। आर्थिक विकास दर के पटरी पर लौटने में वक्त लगेगा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात से खुश हो सकते हैं कि अमेरिकी सर्वे एजेंसी प्यू और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी भारत के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार किया है।
मूडीज ने संप्रभु देशों की रेटिंग में भारत के स्थान में सुधार करते हुए उसे ‘बीएए2’ कर दिया है। इससे सरकार को यह कहने का मौका मिला कि हमारी अर्थव्यवस्था की मजबूती को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। दूसरी ओर स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने निवेश श्रेणी में भारत को सबसे निचले पायदान पर रखा है। क्रिसिल द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात, मध्यप्रदेश और हरियाणा पिछले चार वित्त वर्षों में सबसे तेजी से प्रगति करने वाले राज्य रहे हैं। जबकि पंजाब, उत्तर प्रदेश और केरल तीन सबसे कम प्रगति करने वाले राज्य रहे हैं। एडीबी ने वित्त वर्ष 2018 के लिए भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के सात फीसदी से घटकर 6.7 फीसदी रहने का पूर्वानुमान जताया। हालांकि सरकार को उम्मीद है कि 2018 में भारतीय अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी।
* शेयर बाजार : शेयर बाजार के लिए 2016 की तरह ही 2017 भी जबरदस्त रहा। निवेशकों को बाजार से औसतन 24 प्रतिशत रिर्टन मिला और यह विदेशी निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा। निफ्टी भी इस वर्ष न केवल पांच अंकों तक पहुंचने में सफल रहा बल्कि साल के अंत तक 10 हजार से ऊपर ही बना रहा। अगस्त और सितंबर महीने में भारतीय शेयरों में लिवाली कम रहने के बाद अक्टूबर से इसमें फिर सुधार देखने को मिला है और नंवबर महीने में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने पर्याप्त मात्रा में निवेश किया। ईवाई की रिपोर्ट के अनुसार इस साल भारतीय शेयर बाजारों में 153 आईपीओ आए। इन आईपीओ के जरिये कंपनियों ने 11.6 अरब डॉलर जुटाए। निवेशकों को बाजार से औसतन 24 प्रतिशत रिर्टन मिला और यह विदेशी निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा। नए साल में भी निवेशकों को शेयर बाजार से बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद है।
जनवरी 2016 में निफ्टी : 8180
निफ्टी का उच्च स्तर : 10533
जनवरी 2016 में सेंसेक्स : 26595
सेंसेक्स का उच्च स्तर : 34087
* आयात-निर्यात में भारी वृद्धि, व्यापार घाटा भी डबल : अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अप्रैल से नवंबर 2017 के दौरान भारत का कुल निर्यात 12.01 प्रतिशत बढ़कर 196 अरब 48 करोड़ डॉलर हो गया। इस दौरान कुल आयात 296 अरब 45 करोड़ डॉलर का हो गया। पिछले वर्ष इस अवधि में 243 अरब 29 करोड़ डॉलर का आयात हुआ था। इस अवधि में व्यापार घाटा भी 60 अरब 92 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। अप्रैल से नवंबर 2016 की अवधि में व्यापार घाटा 30 अरब 90 लाख डॉलर रहा था।
* सोना-चांदी : सोना और चांदी से निवेशकों का मोहभंग होता प्रतीत हो रहा है। 2017 में इन दोनों चमकीली धातुओं से उपभोक्ताओं और निवेशकों ने दूरी बनाई। साल के अंत में सोना 30 हजारी भी नहीं रहा। चांदी की चमक भी फीकी हुई और यह धातु 37 हजार के स्तर पर आ गई। आरबीआई की पॉलिसी और सरकार के सख्त नियमों ने भी निवेशकों को परेशान किया।
नकद लेन-देन पर सख्ती और पेनकार्ड संबंधी नियमों ने सर्राफा कारोबार को मंदी की दिशा में धकेल दिया। रही सही कसर नोटबंदी और जीएसटी ने पूरी कर दी। कमजोर वैश्विक संकेतों के चलते सोने में गिरावट देखने को मिल रही है। 2017 की तरह 2018 में भी इन दोनों धातुओं में ज्यादा तेजी की उम्मीद नहीं है। विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले वर्ष में भी यह रेंज बाउंड ही रहेगी।
* म्यूचुअल फंड : 2017 में म्यूचुअल फंड निवेशकों की पहली पसंद बन गया। एसआईपी के माध्यम से आम लोगों ने इसमें जबरदस्त निवेश किया। 2016 में जहां म्यूचुअल फंड उद्योग की परिसंपत्तियों में 28 प्रतिशत का इजाफा हुआ था, वहीं 2016 की तुलना में इस वर्ष इसमें 45 प्रतिशत ज्यादा निवेश हुआ। आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में म्यूचुअल फंड में कुल निवेश बढ़कर 3.8 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
पहले आम आदमी सोना और रिअल स्टेट में पैसा लगाना पसंद करता था, लेकिन अब उसे कम जोखिम में बेहतर रिर्टन वाले म्यूचुअल फंड्स रास आने लगे हैं। शेयर बाजार की तुलना में कम जोखिम की वजह से मध्यमवर्गीय लोग इसमें अपना पैसा लगाने लगे हैं। सेबी की सख्ती और एम्फी की सक्रियता से म्यूचुअल फंड लोगों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे। म्यूचुअल फंड से निवेशकों को 2018 में भी बेहतर रिटर्न की उम्मीद है।
* महंगाई : पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी की बदौलत 2017 में आसमान पर पहुंच गई। जीएसटी की वजह से कारोबारियों पर पड़े भार से उनके मुनाफे पर तो कम मार पड़ी, लेकिन आम आदमी का हाल बेहाल कर दिया। जीएसटी की वजह से कई वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़े। बाद में सरकार ने जीएसटी की दर कम कर लोगों को राहत देने का प्रयास किया लेकिन इसका फायदा भी व्यापारियों ने उठाया और उसमें भी फायदा कमा लिया।
लोगों ने सोशल मीडिया पर बिल की कॉपी साझा कर यह बताया कि किस तरह बाजार में लूट मची और जीएसटी कम होने का फायदा लोगों को नहीं व्यापारियों को मिला। नवंबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई बढ़कर 15 महीने के उच्चतम स्तर 4.88 प्रतिशत पर पहुंच गई। नवंबर 2016 में यह 3.63 प्रतिशत थी। हर साल की तरह इस वर्ष भी आम आदमी को उम्मीद है कि सरकार द्वारा लागू किए जा रहे आर्थिक सुधार सफल होंगे और महंगाई कम होगी।
* मुद्रा बाजार में छा गया बिटकॉइन : 2009 में शुरू हुई बिटकॉइन में साल के अंत में आई तेजी ने आर्थिक विश्लेषकों को हैरान कर दिया। देखते ही देखते इसके दाम 50 फीसदी तक बढ़ गए और इसको लेकर निवेशकों का आकर्षण भी चरम पर पहुंच गया। दिसंबर मध्य तक इसमें फिर भारी गिरावट भी देखने को मिली। हालांकि इसमें जिस तेजी से उतार चढ़ाव हो रहा है, उससे निवेशकों के साथ ही आर्थिक विश्लेषक भी स्तब्ध है। दुनिया के कई देशों में इस आभासी मुद्रा के चलन पर रोक है और भारतीय रिजर्व बैंक समेत दुनियाभर के बैंकों ने इसके जोखिमों के प्रति चेताया है।
उल्लेखनीय है कि दिसबंर में एक बिटकॉइन का दाम 18000 डॉलर के पार पहुंच गया। बिटकॉइन का किसी मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा नियमन नहीं होता है। हालांकि इस तेजी के कारण इस मुद्रा को मुख्य विनिमय बाजारों में निकट भविष्य में मान्यता देने की संभावना पर फिर आशंकाएं प्रकट होने लगी हैं। बहरहाल बिटकॉइन ने जिस अंदाज में 2017 को विदाई दी है, निवेशकों को उसी तरह का प्रदर्शन 2018 में भी बने रहने की उम्मीद है।