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Written By WD

2009 : भविष्य का भारत कितना सुरक्षित

ठोस रक्षा नीति जरूरी

India china security 2009 | 2009 : भविष्य का भारत कितना सुरक्षित
विशाल मिश्रा

WD
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भारत पर हावी होता चीन। अमेरिका और चीन के सहयोग से हमारी बराबरी को आतुर पाकिस्तान, कश्मीर मामले पर अमेरिका का चीनी हस्तक्षेप को प्रश्रय आदि बातें भारत की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगाती हैं। पाकिस्तान को लगातार मिल रही अमेरिकडॉलभारविश्बैंमिलनवालकर्मेचीरोड़अटकानदेआगबढ़नरोकनसोची-समझसाजिअंहै।

हमारे पक्ष में ले-देकर वही वर्षों पुराना मित्र राष्ट्र रूस। लेकिन उससे भी दोस्ती किस हद तक कारगर होगी। इसकी एक बानगी देखिए -रूस से खरीदे मिग श्रेणी के विमान को 'उड़ता ताबूत' कहा जाता है और विगत महीनों में दुर्घटनाग्रस्त हो रहे लड़ाकू विमान सुखोई।

रूस के लिए अनुपयोगी हो चुका विमान वाहक बेड़ा गोर्शकोव जिसकी कीमत रूस ने लगभग तिगुनी कर दी है। गोर्शकोव के खरीद समझौता पूर्ण होने के दूर-दूर तक कोई आसार नजर नहीं आते।

रक्षामंत्री एंटनी पहले भी इस विषय में अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं कि विदेशों से रक्षा खरीद में हो रही अनावश्यक देरी और 2 तिहाई रक्षा सामग्रियों के लिए विदेशों पर निर्भरता रहना सेनाओं के लिए अच्‍छी बात नहीं है।

चीन की वायु सेना क्षमता हमसे तिगुनी है। इस बात को भारतीय वायुसेनाध्यक्ष भी स्वीकार कर चुके हैं। चीन से जारी सीमा विवाद। अरूणाचल प्रदेश में बन रही सड़कों के निर्माण कार्य में चीनी बाधा। देश के 545 जिलों में से लगभग 300 नक्सली हिंसा के शिकार हैं। इनसे निपटने के‍ लिए जल्द ही ठोस प्रयास नहीं किए गए तो कभी भी समस्या गंभीर रूप ले सकती है। इन हमलों में नागरिकों के साथ-साथ पुलिस पर भी प्रहार करने से नक्सली नहीं चूक रहे हैं।

पूर्वोत्तर में उल्फा उग्रवादियों के पास से मिलने वाले चीनी हथियार आदि इसी ओर इशारा करते हैं कि चीन हमसे हो रहे छद्म युद्ध में परोक्ष रूप से शामिल है।

अब समय गयहै कि भारत, चीन के साथ अपने रिश्तों में सुरक्षात्मक रवैया अपनाना छोड़ दे। 'दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है' नीति के आधार पर अगर चीन,पाकिस्तान और नेपाल जैसे पड़ोसियों के साथ भारत के मतभेदों का लाभ उठाना चाहता है तो भारत को भू-भाग संबंधी मुद्दों पर वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई और फिलीपींस जैसे पड़ोसियों के साथ चीन के मतभेदों को भुनाने में हिचकना नहीं चाहिए। अगर चीन, पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों को मिसाइल की आपूर्ति द्वारा भारत को काबू में रखना चाहता है तो भारत को निश्चित तौर पर अपनी ब्रह्मोस मिसाइलों की आपूर्ति वियतनाम जैसे चीन के पड़ोसियों को करने में संकोच नहीं करना चाहिए ताकि वह अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा में सक्षम हो।

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ईरान जैसा देश जब बगैर किसी दबाव में आए अपने यहाँ परमाणु कार्यक्रम को जारी रखने की बात कह सकता है तो हम क्यों नहीं? क्या हमें हमारी सुरक्षा करने का भी अधिकार नहीं है। उलट हम वोट उस देश के खिलाफ ही डालते हैं। स्वतंत्र इराक और ईरान जैसे एशियाई देश कहीं न कहीं हमारे लिए सहयोगी हैं। इस देश से हमें अपने संबंधों पर फिर से विचार करना होगा।

हिन्दी-चीनी भाई-भाई की आड़ में एक बार हमें करारा धोखा चीन दे चुका है। अब हमें उससे और उसके साथ-साथ ऐसे किसी अन्य कुप्रयासों से भी सतर्क रहना होगा। चीन या कोई और देश भी हो यदि भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखता है तो उससे निपटने के लिए अधिक ठोस रक्षा नीति अपनानी जरूरी है।

गृहमंत्री पी.चिदंबरम के पदभार सँभालने के बाद से आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था जरूर पुख्ता हुई है लेकिन विदेशमंत्री एस.एम.कृष्णा कतुलनपूर्व केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल से करनबेहतहोगाआंतरिक और बाह्य चुनौतियों से जूझता हमारा देश किस तरह इनका सामना करता है। आने वाला वर्ष बताएगा।