रविवार, 1 दिसंबर 2024
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Written By WD

शरीर में मनोभावों का संग्रह

रेकी से समझे अंगो को

शरीर में मनोभावों का संग्रह -
जैसा मन वैसा तन अर्थात शरीर और मन की स्वच्छता एक-दूसरे पर आधारित है। जैसे हमारे मन के विचार व भावनाएँ होंगी उसी के अनुरूप हमारे शरीर का गठबंधन होता है। सकारात्मक विचार व भावनाएँ हमारे शरीर को नरम व स्वस्थ बनाकर आकर्षण प्रदान करते हैं, जबकि नकारात्मक विचार व भावनाएँ हमारे शरीर को संकुचित करके कठोरता प्रदान करते हैं। जीवन में नकारात्मकता के कारण ही हम अस्वस्थ व कुरूप बने रहते हैं।

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व्यक्ति के शरीर का प्रत्येक अंग विभिन्न प्रकार के विचारों व भावनाओं को प्रदर्शित करता है, जिससे उसके व्यक्तित्व का आसानी से पता चल जाता है। व्यक्ति अपने शरीर में कहाँ-कहाँ विचारों व भावनाओं का संग्रह करता है इसकी थोड़ी-सी जानकारी यहाँ पर दी जा रही है। शरीर विज्ञान के इन रहस्यों को जानकर व्यक्ति चिंतन-मनन द्वारा या किसी साधना द्वारा सकारात्मक यानी पॉजिटिव विचारों को स्थिर करके नकारात्मक यानी नेगेटिव विचारों से मुक्ति पाकर स्वस्थ, शांत व आनंदित रह सकता है।

शरीर का अगला हिस्सा- शरीर के अगले हिस्से द्वारा क्रोध, जाग्रति, आभार, दुःख, प्रेम, धिक्कार, आनंद, ईर्ष्या और द्वेष कामनाओं के सर्जन-विसर्जन, चेतना व स्फूर्ति या जड़ता और सुस्ती के भावों का प्रतिबिंब पड़ता है।

शरीर का पिछला हिस्सा- हम जो प्रश्न या समस्याएँ छिपाना चाहते हैं और उन्हें सुलझाना नहीं चाहते या टाल देते हैं, उन सभी का यहाँ पर संग्रह होता है। जिन्हें हम पसंद नहीं करते, ऐसे भी मनोभावों को मुक्त करने का यह केन्द्र स्थान माना गया है। हमारी अचेतन अवस्था की भावनाओं व विचारों की अधिक मात्रा का यहाँ पर समावेश होता है।

नाक- गंध-सुगंध की पहचान करने वाले भावों को दर्शाती है। हृदय के साथ सीधा संबंध है। यहाँ पर स्त्री-पुरुष के शारीरिक संबंधों का प्रत्याघात मिलता है।

मुँह- जीवन के पोषक तत्वों का रक्षण करता है। अतः जीवन से संबंधित नए प्रसंगों के विचारों को ग्रहण करने या न करने के भावों को दर्शाता है।

मस्तक- व्यक्ति के बुद्धिमान व तेजस्वी होने या न होने के भावों को दर्शाता है।

गर्दन- यहाँ पर विचारों व भावनाओं का प्रवाह आता है, जिसे दबाने से गर्दन अकड़ जाती है।

चेहरा- हमारे व्यक्तित्व के भाव प्रदर्शित होते हैं, हम जगत का मुकाबला कैसे करते हैं?

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आँखें- हमारी आत्मा की खिड़की। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि- जितनी दृष्टि उतनी सृष्टि का भाव प्रदर्शित होता है। नजर के पास वाले पदार्थों व जीवों के प्रति अधिक ममता की नजर से दूर वाले पदार्थ व जीवों के प्रति कम ममता का भाव प्रदर्शित होता है।

कान- शरीर के प्रत्येक हिस्से के एक्युप्रेशर के केन्द्र यहाँ पर हैं। सुनने की क्षमता के भावों को प्रदर्शित करता है।

जबड़े- विचारों व भावनाओं को रोंदने पर यह अंग खिंचाव का अनुभव करता है। डर व सुरक्षा के भावों को दर्शाता है।

हाथ की कलाइयाँ- ये अंग हृदय चक्र का क्षेत्र होने के कारण प्रेम की भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

छाती- यहाँ पर जीवन के तत्व हैं। श्वासोश्वास के साथ संबंध है, हृदय का केन्द्र है। अन्य व्यक्ति के संबंधों को दर्शाता है।

पेट- पाचन शक्ति का केन्द्र। जातीयता का केन्द्र। भावनाओं की यहाँ पर बैठक है व गहरी भावनाओं का यहाँ पर संग्रह होता है।

गुप्तांग, जनन अवयव- यहाँ पर जीवन के तत्व स्थित है, जीवन के अस्तित्व का भय यहाँ बना रहता है।

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घुटने- शारीरिक परिवर्तन का भय, बूढ़े होने का भय, स्वाभिमान में कमी होने का भय व मृत्यु के भय के कारण यहाँ पर तकलीफ होती है।

पैर- अपनी ध्येय-प्राप्ति न होने व अस्थिरता के भावों के कारण यहाँ तकलीफ होती है।

कन्धा- संतुलन बनाए रखने का भाव, जवाबदारी का भाव, जगत का भार रहने के भाव व्यक्त होते हैं। स्त्रियाँ यहाँ पर अधिक संग्रह करती हैं।

किसी भी प्रकार की साधना द्वारा, व्यायाम द्वारा, रेकी अभ्यास द्वारा, हलन-चलन द्वारा या तीव्र गति से पैदल चलने से शरीर के अंदर संग्रहित मनोभावों के तनावों से मुक्ति प्राप्त करके स्वयं को स्वस्थ व आकर्षक बनाया जा सकता है।