आज देश के जो हालात हैं, उसे देखते हुए भरोसा नहीं होता कि देशभक्ति जिंदा है। युवाओं के सामने ऐसा कोई आदर्श नहीं बचा है, जो उन्हें प्रेरित कर सके
यही देशभक्ति है। इसके लिए नारे लगाने की जरूरत नहीं है। देश का हर आदमी खुद के साथ देश चलाने का भी काम कर रहा है और नेता अपनी पीठ थपथपाते हैं। इनको झंडा फहराने का अधिकार नहीं होना चाहिए। साइंस स्टूडेंट अमित लड्ढा ने कहा, आज भी देशभक्ति जिंदा है और लोग अपने देश की बेहतरी के लिए सड़क पर भी उतर आते हैं। ये हम पिछले दिनों हुए अण्णा आंदोलन में देख चुके हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी अब भी उसी भावना से मनाए जाते हैं।
सब नेता बुरे नहीं हैं, नहीं तो देश कभी का बिक चुका होता। आर्ट स्टूडेंट कविता पुरोहित ने कहा- यूथ पर अक्सर आरोप लगता है कि उनमें देशभक्ति नहीं है, लेकिन ये सरासर गलत बात है। यदि हम 15 अगस्त नहीं मनाते तो इसका मतलब यह नहीं कि हममें देशप्रेम नहीं है। दिल से भारतीय रहो और अपना काम पूरा करो, बस इतना ही बहुत है। राजनेताओं में कौन बचा है, जो तिरंगा फहराने का हक रखता है।
ये हक तो हर साल किसी फौजी को दिया जाना चाहिए। एमबीए स्टूडेंट शिखा गुप्ता के मुताबिक अब 15 अगस्त और 26 जनवरी मनाना बंद कर देना चाहिए। आज देश घोटालों से तंग आ चुका है। बेरोजगारी दूर नहीं हो रही तो ऐसे में ये त्योहार मनाने का क्या मतलब है। हम किसे आइडियल माने, यहाँ तो सभी घोटालों में फँसे हुए हैं। जब तक हम राजनेताओं के शोषण से आजाद नहीं होंगे, आजादी की खुशी नहीं मना सकते।