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Written By WD

यौनांगों को लेकर अजब-गजब मान्यताएं-5

यौनांग
अंग्रेज मिशनरी और समाजशास्त्री वेरियर एल्विन ने अपनी पुस्तक 'मिथ्स ऑफ मिडिल इंडिया' में जिस तरह गुप्तांगों के बारे में आदिवासी समुदाय में मौजूद मान्यताओं का उल्लेख किया था। उसी प्रकार उन्होंने भगनासा से जुड़ी मान्यताओं को भी लिपिबद्ध किया। 'यौनांगों को लेकर अजब-गजब मान्यताओं' की इस कड़ी में हम आपको विभिन्न समुदायों में भगनासा से जुड़ी मान्यताओं से अवगत करा रहे हैं।
 
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कैसे आई भगनासा अस्तित्व में, पढ़िए पहली कहानी... आगे...

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मंडला के बैगा समुदाय में मान्यता है कि किसी समय औरतों को भगनासा नहीं होती थी। इस संबंध में बैगाओं में प्रचलित एक कहानी के अनुसार एक महिला नदी में पालथी मारकर मछलियां खोज रही थी, तभी एक केंकड़े ने उस पर हमला कर दिया और उसकी योनि को अपने जबड़े में जकड़ लिया।

मछली पकड़ना भूलकर महिला दर्द से चिल्ला उठी। उसकी चीख सुनकर मछंदर माता ने उसे सलाह दी कि केंकड़े के जबड़े को पकड़कर बाकी शरीर को बाहर खींच लो। उसके जबड़े को योनि में ही लगा रहने दो। यह संभोग के दौरान उतना ही आनंद देगा, जितनी अभी तकलीफ हुई है।

औरत ने मछंदर माता की बात मानते हुए केंकड़े का जबड़ा अपनी योनि में लगा रहने दिया और उसी स्थिति में गांव लौट आई। जब लोगों ने उसकी हालत देखी तो उस पर खूब हंसे और उसका मजाक उड़ाया। उसने मछंदर माता की बात सबको बताई तो गांव की हर औरत की योनि में केंकड़े का जबड़ा उग आया। ऐसा माना जाता है कि तभी से भगनासा की उत्पत्ति हुई। अगली कहानी... योनि का श्रृंगार है भगनासा...
बस्तर के मारिया बड़ा हरमामुंडा की अपनी एक अलग ही मान्यता है। इस मान्यता के अनुसार जिस समय मानव शरीर का निर्माण हो रहा था, तब निर्माता (महापुरुष) ने हाथ, पांव, सिर, गुप्तांग से लेकर शरीर के अन्य सभी महत्वपूर्ण अंग बना लिए, लेकिन फिर भी कुछ सामग्री बच गई। बची सामग्री का क्या उपयोग किया जाए? ऐसा सोचते समय उनकी नजर महिला की योनि पर पड़ी। उन्हें वह नंगी और श्रृंगारहीन दिखी।

उन्होंने सोचा कि क्यों न बची हुई सामग्री से योनि का श्रृंगार किया जाए। बस फिर क्या था, उन्होंने बिना और वक्त गंवाए बची हुई सामग्री से योनि का श्रृंगार कर दिया। ...और यहीं से निर्माण हुआ भगनासा का। अगली कहानी क्या कहती है इस बारे में... पढ़ें आगे...
कोरापुट की बाल दुरालू जनजाति की मान्यता काफी रोचक है। इसके मुताबिक छेराम एक नामक कमार लोहे की कीलें बना रहा था क्योंकि दिसारी नाम के एक व्यक्ति को शेर और अन्य जानवरों से रक्षा के लिए अपने बाड़े में ठोंकने के लिए कुछ कीलों की जरूरत थी।

जब वह भट्‍टी में कील बना रहा था, उसी समय उसकी औरत भट्‍टी के पीछे पेशाब करने गई। पेशाब करते समय औरत की योनि से छेर-छेर की ध्वनि आ रही थी। छेराम नाम होने के कारण कमार को लगा कोई उसे पुकार रहा है। अगले पृष्ठ पर छेराम का गुस्सा और भगनासा की उत्पत्ति...
उसने औरत से पूछा कि क्या कोई उसे बुला रहा है तो औरत ने इनकार किया। उसने फिर प्रश्न किया कि तो क्या वह उसे नाम लेकर बुला रही है, औरत ने कहा कि नहीं वह उसे नाम लेकर नहीं पुकार रही थी। फिर उसने बताया कि दरअसल, जब भी वह पेशाब करती है तो छेर-छेर की आवाज उसकी योनि से आती है।

इतना सुनते ही छेराम को गुस्सा आ गया कि योनि उसका नाम लेती है। उसने योनि का मुंह हमेशा के लिए बंद करने के लिए उसमें एक कील ठोंक दी। ऐसा माना जाता है कि वही कील भगनासा है। अगली कहानी... अंगुली के नाखून से बनी भगनासा...
पखरी के गोंड समुदाय में मान्यता है कि भगनासा योनि की सुरक्षा के लिए एक तरह से चपरासी का काम करती है। इसकी उत्पत्ति के बारे में उनकी मान्यता है कि महादेव ने अपनी अंगुली के नाखून को योनि के ऊपरी भाग पर स्थापित कर दिया। यही नाखून भगनासा बन गया। अरे! यहां तो गुम हो गई भगनासा... आगे पढ़ें...
बस्तर के मुरिया समुदाय में भगनासा गुम होनी की कहानी है। इसके मुताबिक महिलाओं में भगनासा तो थी, लेकिन एक बार बेसोसा नाम की औरत एक विवाह समारोह में सफाई करना, खाना बनाना, लड़कियों को तैयार करना आदि काम कर रही थी। इसी बीच उसे अहसास हुआ कि उसकी भगनासा कहीं गुम हो गई है। उसने सभी जगह खोज की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

इसी बीच उसकी मुलाकात एक तीतर पक्षी से हुई। उसने इस शर्त पर तीतर से भगनासा उधार मांगी कि वह उसे लौटा देगी। ... लेकिन औरत ने तीतर को भगनासा नहीं लौटाई। ऐसा कहा जाता है कि आज भी तीतर 'भगनासा दे, भगनासा दे' चिल्लाता रहता है। छाती और योनि की लड़ाई, भगनासा ‍अस्तित्व में आई... आगे पढ़ें....
भगनासा के अस्तित्व को लेकर पाटनगढ़ के राजनेंगी परधान की मान्यता इन सबसे अलग है। इनकी कहानी कुछ इस तरह है। शरीर निर्माण की शुरुआत में शरीर के अंग अपनी-अपनी मर्जी के मुताबिक फिट हो गए। एक दिन छाती की योनि से लड़ाई हो गई। इस लड़ाई में छाती भारी पड़ी और उसने सभी योनियों को पहाड़ की तरफ खदेड़ दिया।

घटना वाली रात योनियों के नहीं होने से आदमियों में निराशा का माहौल था। दूसरे लोग अपनी औरतों की योनियों को लेने के लिए पहाड़ पर पहुंचे और किसी तरह उन्हें खोज निकाला। उन्होंने योनियों को घर लाकर अपने स्थान पर लगा दिया। जब तक वे लौटते गांव में कुछ बुजुर्ग महिलाओं की मौत हो गई। इससे कुछ योनियां बच गईं। तब काफी सोच-विचार कर लोगों ने योनियों के छोटे-छोटे टुकड़े किए और उन्हें औरतों की योनियों लगा दिया। बस, यही टुकड़े भगनासा बन ग। (नोट: यह जानकारी मप्र सरकार के संस्कृति विभाग की एक पत्रिका में प्रकाशित हुई है)