तलाक!! शब्द सुनते ही आपके दिमाग में क्या ख्याल आता है। 21वीं सदी में भी भारतीय समाज में तलाक, डायवोर्स या सेपरेशन खासतौर से महिलाओं के लिए तो अभिशाप की तरह ही माना जाता है।
हाल ही में रांची की एक घटना ने पूरे देश का ध्यान खींचा जहाँ एक पिता ने पूरे समाज के सामने एक साहसिक मिसाल पेश की। यह अपनी तरह का शायद पहला मामला था जब रांची में रहने वाले प्रेम गुप्ता ने अपनी बेटी को ससुराल की प्रताड़ना झेलना नामंजूर करते हुए, उसे शान से गाजे-बाजे के साथ वापस लाने का मजबूत कदम उठाने का साहस दिखाया। लेकिन क्या हर महिला इतनी खुशकिस्मत होती है? निश्चित रूप से शादी को निभाना समाज की प्राथमिक इकाई यानी कि परिवार व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी है लेकिन बावजूद इसके कई कारणों से महिलाएँ तलाक लेती हैं।
खुद को तलाशने के लिए अमीर से लेकर गरीब महिलाएं ले रही हैं तलाक
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौक़े पर वेबदुनिया ने कुछ ऐसी ही महिलाओं से बात की जिन्होंने ऊपर दिए कारणों के चलते तलाक लेने की पहल की। वेबदुनिया ने समाज के हर तबके, (प्रोफेसर से लेकर हाउस हेल्प तक) से बात कर उनसे जानने की कोशिश की कि तलाक के बाद उनके जीवन में क्या बदलाव आए और जीवन में इस पड़ाव के बाद के अनुभवों को वे कैसे देखती हैं।
(*नोट - इस आलेख में महिलाओं की निजता का सम्मान करते हुए उनके नाम परिवर्तित कर दिए हैं। हालांकि हम मानते हैं कि तलाक के मामले में किसी भी महिला का फैसला उनका अधिकार है और हम इसका सम्मान करते हैं।)
मोनिका (आई टी प्रोफेशनल): पापा ने समझाया कि किसी रिश्ते के ख़त्म होने से जीवन ख़त्म नहीं होता।
“मैं एक आई टी प्रोफेशनल हूँ। ससुराल वालों का व्यवहार मेरे साथ शुरू से ही अच्छा नहीं था। मेरे पति ने कभी मेरा साथ नहीं दिया। शादी के दो साल बाद प्रेगनेंसी में कॉम्प्लिकेशन की वजह से मुझे जॉब छोड़नी पड़ी और फिर ससुराल वालों ने मेरा जीवन दुश्वार कर दिया। अब आर्थिक रूप से पूरी तरह अपने पति पर आश्रित थी और ससुराल वालों का व्यवहार मेरे साथ बहुत ही अमानवीय था। मेरे पापा ने कई बार मेरे पति और ससुराल वालों से बात की लेकिन हालत लगातार बिगड़ते रहे। आखिरकार पापा ने मेरे लिए स्टैंड लिया और शादी के करीब 4 साल बाद मैंने तलाक ले लिया। मैंने खुद के और अपने बेटे के लिए फिर एक बार अपने कैरिअर की शुरुआत की। मम्मी-पापा के साथ ने मुझे मानसिक रूप से बिखरने नहीं दिया और समझाया कि किसी रिश्ते के ख़त्म होने से जीवन ख़त्म नहीं होता।”
सीमा (हाउस हेल्प): अपने स्वाभिमान की खातिर हुई पति से अलग।
“मेरी शादी माता-पिता की मर्जी से हुई थी। शादी के बाद मुझे पता चला कि मेरा पति कोई काम नहीं करता है। मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की। यह भी कहा कि हम साथ मिलकर कोई काम शुरू करते हैं लेकिन उसने मेरी बात कभी नहीं सुनी। ससुराल में इन हालातों में स्वाभिमान से जीना मुश्किल हो रहा था। आखिरकार मैंने उससे अलग होने का निर्णय लिया। माता-पिता ने मेरे इस निर्णय का समर्थन नहीं किया लेकिन बाद में उन्हें मेरी बात माननी पड़ी। मायके में आने के बाद मैंने कुछ घरों में काम करना शुरू किया ताकि आर्थिक रूप से उन पर आश्रित ना होना पड़े और उन्हें भी मेरा रहना बोझ ना लगे।”
समीक्षा (बुटीक संचालिका): तलाक के बाद मुझे मिले जिंदगी के सही मायने।
“मैंने अपने पसंद से अपनी उम्र से काफी बड़े शख्स से शादी की थी। शादी के समय मेरी उम्र सिर्फ 18 साल थी। शादी के कुछ ही समय बाद मुझे पता चला कि मेरे पति के और भी महिलाओं से संबंध हैं लेकिन वह उम्र में मुझसे इतना बड़ा था कि मैं उसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा सकती थी। अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ शादी करने से मेरे और उनके सम्बंध टूट गए थे लेकिन जब उन्हें मेरे बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे इस रिश्ते से बाहर निकालने के लिए कहा। करीब 22 साल की उम्र में मैंने अपने पति से तलाक लिया और अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने की ठानी। टेक्सटाइल डिजाइनिंग में डिग्री हासिल करने के बाद मैंने खुद का बुटीक शुरू किया। आज मैं अपनी नई शादी में बहुत खुशहाल जीवन जी रही हूँ। मेरे जीवन साथी ने मेरी पिछली जिंदगी की कड़वी यादों को भूलने में मेरी बहुत मदद की।”
स्वाति (प्रोफेसर): आपसी सहमती से लिया अलग होने का फैसला।
“मेरे हस्बैंड टूरिंग जॉब में थे। गवर्नमेंट जॉब होने की वजह से मैं हमेशा एक ही शहर में रही। इस कारण हम कभी बहुत लंबे समय तक साथ नहीं रह पाए। अपने दाम्पत्य जीवन में हमने कभी जुड़ाव या नज़दीकी अनुभव नहीं की। हमारे बीच वैचारिक स्तर पर भी हमेशा मतभेद होते रहते थे लेकिन अपनी बेटी की वजह से हम साथ में बने हुए थे। जब बेटी कॉलेज के लिए दूसरे शहर गई तब हमने अलग होने का फैसला लिया। तब तक बेटी भी इस बात को समझने के लिए मैच्योर हो चुकी थी। हमने तलाक की औपचारिकता नहीं की और आपसी सहमति से एक दूसरे का सम्मान करते हुए अलग हो गए। अब भी बेटी के घर आने पर और कॉमन फ्रेंड्स के साथ मिलते रहते हैं।”
निश्चितरूप से शादी को निभाना समाज की प्राथमिक इकाई यानी कि परिवार व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी है लेकिन यह भी सच है कि शादी जैसी व्यवस्था के तले ही घरेलू हिंसा जैसा घ्रणित और समाज-विरोधी विचार पोषित होता रहा है। ऐसे में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ चुप्पी तोड़ना बहुत ज़रूरी है।
पहले जहाँ महिलाएं पारिवारिक कलहों और प्रताड़ना के बावजूद अपनी शादी को बनाए रखने को मजबूर रहती थीं आज स्थिति बदली है।
महिलाओं में शिक्षा का स्तर सुधरने से आज वे आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं। आज यदि महिला किसी भी कारण से अपनी शादी से नाखुश है और रिश्ते से बाहर निकलना चाहती है तो आर्थिक निर्भरता उसके लिए रुकावट नहीं है। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं की हर बार तलाक की वजह पारिवारिक कलह या महिला का शोषण की हो कई मामलों में पति-पत्नी तालमेल न होने से भी आपसी सहमति और सम्मानजनक तरीके से भी अलग होते हैं।
दुनियाभर में तलाक लेने वाले देशों को लेकर वर्ल्ड ऑफ स्टैटिक्स के नए आंकड़ों पर गौर किया जाना चाहिए…
2023 की रैंकिंग में कई देशों की तलाक दर पहले से बढ़ी है।
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पुर्तगाल में सबसे अधिक तलाक के मामले होता है।
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पुर्तगाल में तलाक की दर 94 प्रतिशत है।
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भारत में तलाक दर 1 प्रतिशत से भी कम है।
दुनियाभर की तुलना में भारत की तलाक दर भले ही बहुत कम है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारे देश में भी तलाक के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं। साथ ही यह बात भी ध्यान देने लायक है कि
भारत में तलाक की पहल
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा करती हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक:
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देश की राजधानी दिल्ली में हर साल 8 से 9 हजार तलाक के मामले आते हैं।
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दिल्ली में तलाक के मामले पूरे देश में सबसे ज्यादा हैं।
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इसके बाद मुंबई और बेंगलुरु में सबसे ज्यादा 4 से 5 हजार तलाक के मामले सामने आते हैं।
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पिछले एक दशक में ये आंकड़े दोगुने हुए हैं।
एक और रिपोर्ट के अनुसार:
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1960 के दशक में देश में तलाक के 1 या 2 ही मामले सामने आते थे।
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1980 तक ये मामले 100 से 200 तक पहुँच गए।
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1990 में ये आंकड़ा 1000 के पार पहुंच गया।
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हर साल देश में अब लगभग 9,000 तलाक के मामले आते हैं
सवाल: भारत में तलाक का अधिकार कब मिला?
जवाब: 1950 के दशक में देश की संसद में हिंदू कोड बिल पारित हुआ था। इस बिल में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिया गया। इसी बिल के तहत बहु विवाह पर रोक लगाई गई और तलाक मांगने का अधिकार भी मिला। 1976 में इस कानून में संशोधन किया गया और पति-पत्नी के बीच सहमति से तलाक की अनुमति दी गई।