मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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जस्ट गो विद द फ्लो : अदम्य साहस की प्रतीक ऋचा कर्पे

जस्ट गो विद द फ्लो : अदम्य साहस की प्रतीक ऋचा कर्पे - rucha karpe women day special
वह लिखती हैं सुंदर-सुंदर कविताएं। उनकी लेखनी से झरती हैं मोहक रचनाएं। फूल, चिड़िया, बादल, हरी-भरी धरा से वह लेखन के रंग चुनती हैं। उनकी कविताएं भीतर तक उतरती हैं। हम जो छोटी-छोटी उलझनों में निराशा के सागर में डूबने-उतराने लगते हैं, कोसने लगते हैं परमेश्वर को...उन्हें एक बार जरूर मिलना चाहिए उनसे जिनका नाम है ऋचा कर्पे...

सकारात्मकता से लबरेज,उमंग से भरपूर एक ऐसी शख्सियत जिसने विषम परिस्थितियों में धैर्य, लगन, उत्साह और आशा की सुनहरी किरणों को थाम कर अपना आकाश खुद बनाया है। उनकी असाध्यता राहों में बाधक नहीं वरन प्रेरक बनी।

वे न दया चाहती हैं, न सहानुभूति... वे अपने हिस्से का वही प्यार और सम्मान चाहती हैं जिसकी वे और उनकी लेखनी हकदार हैं... वे न डरती हैं, न झुकती हैं, वे प्रकृति प्रदत्त हर परिस्थिति से लड़ी हैं, लड़ती हैं, और दुगने साहस और विश्वास के साथ कुशलता से अभिव्यक्त हुई हैं।
 
आइए मिलते हैं ऋचा कर्पे से उनके जोश, जुनून और ज़ज्बे का अभिनंदन करते हुए..
 
अदम्य आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की अनूठी गाथा रचती उस नारी से, जिसके लिए दिल से बस एक ही शब्द निकलता है ... प्रणाम हे नारी शक्ति...  
 
1.आपने लिखना कब से आरंभ किया? 
लिखती तो बचपन से थी निबंध, लेख, बाल कथा इत्यादि, लेकिन पिछले 2-3 वर्षों से लेखन में अधिक सक्रिय हूं। जिसका एक बहुत बड़ा श्रेय सोशल मीडिया को जाता है, क्योंकि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के कारण मैं बुद्धिजीवियों के संपर्क में आई और मेरे लेखन को नए आयाम मिले।
 
2. कौन सी बात आपको लिखने के लिए प्रेरित करती है? 
 
अपने आसपास घटने वाली हर आम और खास बात चाहे वह सामाजिक हो, पारिवारिक हो, राजनीतिक हो, या रोजमर्रा के जीवन में घटने वाली छोटी-छोटी घटनाएं ही हमारे लेखन का विषय होती है। मुझे प्रकृति भी बहुत आकर्षित करती है। जब भी घर से बाहर निकलती हूं तो लंबे रास्ते, फैले हुए खेत, हरियाली, ऊंचे घने पेड़, बादल, रंग-बिरंगे फूल आदि मेरी कविताओं का विषय बन जाते हैं।
 
3. आप किन्हें पढ़ना पसंद करती है? 
मैं हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी तीनों ही भाषा पढ़ती हूं। कहानियां और उपन्यास मुझे अधिक पसंद है। प्रसिद्ध लेखक जैसे हिन्दी में प्रेमचंद, मराठी में विष्णु सखाराम खांडेकर इनके अलावा मालती जोशी, सुधा मूर्ति आदि तो हैं ही लेकिन मैं नए लेखकों को पढ़ना भी पसंद करती हूं। 
 
हाल ही में मैंने लक्ष्मीदत्त शर्मा 'अंजान' जी की 'बाज बहादुर-रानी रूपमती' पढ़ी। सुनील चतुर्वेदीजी की 'ग़ाफ़िल' पढ़ी। आजकल तो काफी ऑनलाइन साहित्य भी उपलब्ध है, जैसे 'प्रतिलिपि' नामक एक ब्लॉग साइट है, जहां हजारों की संख्या में कथा-कविताएं उपलब्ध हैं नए लेखकों की।
 
4. विपरीत परिस्थितियों में लेखन को ही अभिव्यक्ति का रास्ता क्यों चुना? 
बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न है!! जब हम बहुत पढ़ते हैं तो समझते हैं कि किसी की भी जिंदगी आसान नहीं है..एपीजे अब्दुल कलाम, सुधामूर्ति, 26/11 के समय आतंकियों का मुकाबला करने वाले विश्वास नांगरे पाटिल...दक्षिण अफ्रीका को बरबादी से बाहर निकाल कर एक विकसित राष्ट्र बनाने वाले महान वैज्ञानिक जॉर्ज कार्व्हर जी...सबका जीवन इतना संघर्षमय रहा है कि आप सोच भी नहीं सकते।
 
जीवन में सभी तरह के अनुभव आते हैं- कुछ सुखद, प्रोत्साहित करने वाले तो कुछ दु:खद, जो आपके हृदय को भीतर तक छलनी कर देते हैं। दोनों ही परिस्थितियों में मन की खुशी और वेदनाओं को व्यक्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है लेखन। अपनी डायरी से अपने मन की बात कहकर आप बहुत ही सुकून महसूस करते हैं।
 
5. खाली समय में क्या करती हैं?
मेरी प्रिय मित्र व मेरी किताबें आदि उन्हीं के साथ रहती हूं। कभी चित्र बना लेती हूं। कभी कोई कथा या कविता जो काफी दिनों से मस्तिष्क में घूम रही होती है, उसे डायरी में उतार लेती हूं। वैसे मैं बहुत बातूनी हूं तो मेरा भरा-पूरा परिवार है। घर में पूरे समय आना-जाना लगा रहता है। मित्र भी बहुत हैं तो समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।
 
6.आपकी अपनी प्रिय कविता कौन सी है? 

मेरी कविता
मेरी कविता
कोई मैगी नही
जो दो मिनट में पक जाए!!
ये तो एक स्वादिष्ट पकवान है,
चटपटा..लज़ीज़
समय लगता है इसे बनाने में.
अनुभव की कढ़ाही में,
विचारों की आंच में,
धीरे-धीरे पकती है..
चुन कर लाती हूं 
मन की बगिया से
कुछ ताजा अहसास..
कुछ शब्द.. कुछ भाव..
फिर लगती है 
रस छंदों की बघार..
कुछ विदेशी शब्दों का तड़का
और
लय-तुक स्वादानुसार..
धीमी-धीमी भाप में सीजतीं है 
सुनहरी होती है
चूल्हे से उतारने के पहले
एक बार फिर सोचती हूं,
कि कुछ भूली तो नहीं..
रंग देखती हूं
महक लेती हूं..
पूरी तरह से जांच-परखकर
विराम चिन्हों से सजाकर
परोसती हूं
मेरी कविता....
©ऋचा दीपक कर्पे
 
7.वे लोग जो परिस्थितियों से हार जाते हैं उन्हें क्या संदेश देंगी? 
देखिए मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है और कोई भी कलाकार अपनी कृति को अधूरा नहीं छोड़ेगा तो यदि आपको लगता है कि आप में कोई शारीरिक अक्षमता है तो एक बार अपने अंदर झांककर देखिए कि आप में ऐसी कोई प्रतिभा अवश्य छिपी होगी, जो कि दूसरों में नहीं है।
 
दूसरी बात सबसे पहले खुद से प्यार करना सीखिए। अपने समय को महत्व दीजिए। अपने आप को व्यस्त रखिए। आप स्वयं को महत्व देंगे तो लोग आपको महत्व देंगे। मुस्कुराते रहो, जिंदगी की आधी समस्याएं तो ऐसे ही हल हो जाएंगी।
 
8. भविष्य का सपना क्या है?
मैं खुश हूं, क्योंकि जहां तक हो सके मैं भूत और भविष्य से स्वयं को दूर रखती हूं। मैं हर दिन को अंतिम दिन समझ कर जीने में विश्वास रखती हूं। 'जस्ट गो विद द फ्लो' में विश्वास रखती हूं। हां, अपने देश को एपीजे के विजन 20-20 की तरह विकसित देखने का सपना है। 
 
परिचय : ऋचा दीपक कर्पे एम.कॉम तक शिक्षित हैं। पिछले 18 वर्षों से कक्षा 6 से कक्षा 8 तक के सीबीएससी कोर्स के बच्चों को घर पर कोचिंग दे रही हैं। मध्यप्रदेश की एकमात्र मराठी पत्रिका श्री सर्वोत्तम की जनसंपर्क अधिकारी हैं। विद्यारण्य और कृतज्ञता स्वयंसेवी समूह से ऑनलाइन जुड़ी हैं। यहां आप हेड ऑफ वॉलेटियर विंग और सोशल मीडिया मैनेजर के जिम्मेदार पदों पर हैं। मराठी, हिन्दी में कविताएं और लघुकथा लेखन का सिलसिला जारी है। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के द्वारा आयोजित पुस्तक वाचन स्पर्धा की देवास प्रतिनिधि हैं। वृहन्महाराष्ट्र मंडळ, नई दिल्ली से आयोजित होने वाली मराठी परीक्षा की परामर्शदाता हैं। हाल ही में आपको वामा साहित्य मंच द्वारा प्रथम देवी अहिल्या शक्ति सम्मान से नवाजा गया है। यह सम्मान विपरीत परिस्थितियों में भी लेखन की निरंतरता बनाए रखने /साहित्य सृजन के लिए उनके साहस और समर्पण को प्रदान किया गया है। 
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