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Written By Naidunia
Last Modified: जबलपुर , बुधवार, 11 जनवरी 2012 (11:39 IST)

'मप्र मानवाधिकार आयोग की अनुशंसा मानो'

''मप्र मानवाधिकार आयोग की अनुशंसा मानो'' -
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति केके त्रिवेदी की एकलपीठ ने मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग की याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण आदेश पारित किया। इसके तहत सरकार को मानवाधिकार आयोग की उस अनुशंसा का पालन करने निर्देशित किया गया है जिसके तहत अंधत्व के शिकार लोगों को 25-25 हजार रुपए मुआवजा भुगतान निर्धारित किया गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि सरकार ने पूर्व में महज 10-10 हजार देकर पल्ला झाड़ लिया था अतः पीड़ितों के हक में दो माह के भीतर 15-15 हजार रुपए का अतिरिक्त भुगतान सुनिश्चित किया जाए। साथ ही आरोपी चिकित्सकों के खिलाफ विचाराधीन विभागीय जांच शीघ्र पूर्ण कर कार्रवाई की जाए।


मंगलवार को याचिकाकर्ता मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग का पक्ष अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ ने रखा। उन्होंने दलील दी कि कुछ वर्ष पूर्व जिला अस्पताल छिंदवाड़ा में एक शासकीय स्वास्थ्य शिविर लगाया गया था। जिसके अंतर्गत ग्रामीणों का निःशुल्क नेत्र परीक्षण किया गया। साथ ही 35 गरीबों के मोतियाबिंद ऑपरेशन भी किए गए। लेकिन इनमें से दस को फायदे के स्थान पर संक्रमण के रूप में नुकसान हो गया। यही नहीं, आठ की आंखों की रोशनी ही खत्म हो गई। आगे चलकर वे अंधे हो गए। एक की मृत्यु भी हो गई। इस वजह से मामले ने तूल पकड़ लिया। कलेक्टर ने निरीक्षण करके रिपोर्ट पेश की। जिस पर गौर करने के बाद सरकार ने स्थिति नियंत्रित करने की मंशा से आनन-फानन में अंधेपन के शिकार लोगों को 10-10 हजार मुआवजा देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली।


अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ ने तर्क दिया कि मामला मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में आने के बाद अंधेपन के शिकार पीड़ितों को 25-25 हजार रुपए मुआवजा देने की अनुशंसा कर दी गई। लेकिन सरकार ने उसका पालन करने की जेहमत नहीं उठाई। इसी वजह से अधिनियम में विहित प्रावधान के तहत हाईकोर्ट की शरण ली गई है। इस संदर्भ में हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा 2003 में पारित व जस्टिस संजय यादव द्वारा 2011 में पारित न्यायदृष्टांत रेखांकित किए जाने योग्य हैं, जिनके तहत मानवाधिकार आयोग की अनुशंसाओं की रोशनी में पीड़ितों के पक्ष में राहतकारी आदेश दिए गए थे। कोर्ट ने तमाम दलीलों पर गौर करने के बाद याचिका का राहतकारी निर्देश के साथ पटाक्षेप कर दिया।