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Last Updated :वाराणसी , मंगलवार, 5 अगस्त 2025 (15:12 IST)

नाव चली मदिरालय! कितनी भी मुश्किल आए, जाम खाली नहीं होना चाहिए

varansi
Varansi flood news : बाढ़ आई है... लोग घर छोड़ चुके हैं, गली-मोहल्ले, कूचे समुंदर बन चुके हैं, सरकारी नावें अब भी रास्ता तलाश रही हैं, मगर इन सबके बीच कुछ वीर पुरुष ऐसे भी निकले, जिनके इरादे नशे में भी अटूट रहें, डगमगाए नहीं। आज हम बात कर रहे हैं वाराणसी के उन साहसी नाव सवार लोगों की जो अपने जिगर को राहत देने के लिए नाव पर सवार होकर सीधे निकल पड़े शराब की दुकान पर, जैसे ये  "बचाओ" नहीं, "मचाओ" मिशन पर निकले हों।
 
वाराणसी में अधिकांश शहर डूबा हुआ है, गलियां गंगा और वरुणा में घुल चुकी हैं, लोग छतों और शिविरों में सिमटे हैं, नौनिहाल दूध के लिए तरस रहे हैं, बुजुर्ग दवा के इंतज़ार में बैठे हैं या दम तोड़ रहें है।

ऐसे में थाना आदमपुर क्षेत्र स्थित विजयीपुरा से हैरान करने वाला वीडियो सामने आया है, जहां एक देशी शराब की दुकान बाढ़ में आधी डूबी हुई थी। लेकिन इतिहास गवाह है, जब इरादा मज़बूत हो, तो रास्ता खुद ब खुद नाव बन जाता है। 
 
ऐसे में ये नाव में सवार चप्पू चला-चलाकर जिंदगी की सबसे जरूरी चीज अंगूर की पेटी (शराब) की दुकान पहुंचे और नाव टिकाते हुए बड़े गर्व से बोले... "आज ले रहे हैं, कल तो दुकान पानी में बह जाएगी।"  इन लोगों को देखकर यह कहा जा सकता है क्या बात है! दूसरों की नज़र में ये बाढ़ है, मगर इनके लिए ये सेल का मौसम है — बाय 1 बॉटल, रिस्क फ्री!
 
विडंबना देखिए, लोगों को रेस्क्यू करने, जरूरी काम से जाने के लिए या राहत सामग्री पहुंचाने के लिए नाव नहीं मिल पा रही है, मगर शराब की बोतलें नाव से जा रही हैं। जहाँ एक ओर हजारों लोग शुद्ध पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, वहीं कुछ युवा शराब के लिए जोखिम उठाने से भी नहीं डर रहे। बल्कि इन नाव सवार की कुछ शिकायतें भी थी, युवाओं ने दुकानदार पर आरोप लगाया कि "भाई साहब, सिर्फ कैश ले रहे हैं, UPI नहीं!" अर्थात् अब इनके पानी सिर से ऊपर चला गया, मगर “Paytm Accepted Here” का बोर्ड भी अब यह खोज रहे हैं।
 
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है, प्रशासन क्या कर रहा है? दरअसल, प्रशासन सोच में डूबा है, "हमने राहत सामग्री पहुंचाने की योजना बनाई थी, पर जनता तो नाव लेकर 'मदिरा-मुक्ति अभियान' चला रही है। चिंतन का विषय है कि क्या यह हमारी सामाजिक प्राथमिकताओं का आईना नहीं है? क्या आपदा की घड़ी में भी नशे की लत इतनी हावी हो सकती है कि इंसान अपनी जान जोखिम में डालने से डर नही रहा है?
 
बाढ़ में भले ही मंदिरों की घंटियां चुप हैं, मगर इन मधुशाला प्रेमियों को देखकर, शराब की दुकानें आबाद है। क्या इसे हम “सांस्कृतिक पुनर्जागरण” की संज्ञा दे सकते है?
 
इस संदर्भ में उत्तर प्रदेशीय महिला मंच की महासचिव ऋचा जोशी ने कहा कि यह वीडियो 'हमें याद दिला बहुत कुछ बदल गया और बदलने की कगार पर है, आपदा में भी आदमी अपनी प्राथमिकताएं नहीं भूलता ..रोटी, कपड़ा और शराब।"
 
इस पूरी घटना ने सोशल मीडिया पर दो राय खड़ी कर दी है। एक वर्ग इसे "सिस्टम फेलियर" मान रहा है, जहाँ आपदा प्रबंधन सिर्फ कागजों में सीमित है। वहीं, दूसरा वर्ग इसे "सामाजिक पतन" का उदाहरण बता रहा है कि जब लत तर्क से ऊपर हो जाए, तब इंसान नाव में बैठकर भी गलत दिशा में चला जाता है। इसलिए कह सकते है कि यह असली सकंट बाढ़ नही, बुद्धि-भ्रंश है।
edited by : Nrapendra Gupta