अखिलेश-राहुल, हम तो डूबेंगे सनम..
सवाल ये है कि अब कौन किसको ज़्यादा दोष दे? अखिलेश राहुल को या राहुल अखिलेश को। जब जोड़ी बनी थी तो सबको लगा कि इसमें गरज ज़्यादा राहुल की यानी कांग्रेस की है और अखिलेश तो बस अपने कुछ वोट कटने से बचा रहे हैं। कांग्रेस ने तो आसन्न हार को देखते हुए खटिया और प्रशांत किशोर दोनों से किनारा कर लिया। उन्होंने अपना खर्च कम कर पैसे बचाने में ही समझदारी दिखाई। भले ही पार्टी ख़त्म हो जाए। अब ये ही सोच लिया तो हार जीत को क्या सोचना? अखिलेश के लिए तो ये सबसे अहम लड़ाई थी। पहले तो यादव कुनबे की नाटकीय लड़ाई और फिर कांग्रेस को साइकिल पर बिठा लिया।
मोदी की लहर में साइकिल तो 'कबाड़े' में चली ही गई, कांग्रेस की खाट भी खड़ी हो गई। विधानसभा चुनाव के दौरान एक रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि लोग राहुल गांधी की खाट उठा ले गए क्योंकि वह खाट उन्हीं की (यूपी की जना) थी। इसी रैली में मोदी ने मतदाताओं से पूछा था कि कांग्रेस की खाट खड़ी करोगे या नहीं? अब परिणाम देखकर लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने मोदी की बात ध्यान से सुनी और कांग्रेस की खाट वाकई खड़ी कर दी है।
राहुल गांधी को लेकर तो सोशल मीडिया पर चुटकलों की भी शुरुआत हो गई है। एक पोस्ट में राहुल को अखिलेश से बात करते हुए दिखाया गया है, जिसमें राहुल कह रहे हैं कि अखिलेश तुम्हें हारने की आदत डाल लेनी चाहिए। हमें तो हारने की आदत है। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में भी वामपंथी दलों ने कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया था और वहां भी उनकी लुटिया डूब गई थी।
हालांकि लोग सपा और कांग्रेस की हार को यादव परिवार के कुनबे की कलह से भी जोड़कर देख रहे हैं। इस पूरे चुनाव में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायमसिंह यादव ने सिर्फ दो ही रैलियां की थीं। एक अपने छोटे भाई शिवपालसिंह यादव के लिए जसवंत नगर में और दूसरी अपनी छोटी बहू और प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव के लिए लखनऊ की कैंट सीट पर। हालांकि कैंट सीट पर भी मुलायम की बहू भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी के मुकाबले चुनाव हार गईं। यूपी के चुनाव परिणामों के बाद मुलायमसिंह की यह बात भी सही साबित हो गई है कि सपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का निर्णय सही नहीं था। मुलायम, शिवपाल समेत अन्य नेताओं ने उस समय इस गठबंधन का काफी विरोध किया था।
जहां तक राजनीतिक भविष्य की बात करें तो इस परिणाम से न राहुल गांधी को नुकसान होगा और न ही अखिलेश यादव को। क्योंकि राहुल की हार हमेशा की तरह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की हार होगी। वहीं अखिलेश कम से कम इस बात से तो खुश हो ही पाएंगे कि इस चुनाव में उन्होंने सत्ता पर नहीं तो कम से कम सपा पर तो कब्जा जमा ही लिया, भले ही इसके लिए उन्हें अपने पिता मुलायमसिंह यादव को किनारे करना पड़ा। दूसरी ओर राजनीति के जानकार यह भी मान रहे हैं कि यादव परिवार में कलह की जो 'गांठ' पड़ी थी वह हार की हताशा में और गाढ़ी हो जाएगी।