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Last Updated : बुधवार, 28 अगस्त 2024 (13:22 IST)

Teacher's Day 2024: भारत की शिक्षा बांटने वाली या जोड़ने वाली?

student protest ai images
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Teacher's Day 2024: आजादी के बाद हमारी शिक्षा नीति में कई बदलाव होते रहे हैं। हर सरकार अपने तरीके से शिक्षा नीति को निर्धारित करती है। भारत का शिक्षा तंत्र या शिक्षा से देश को क्या लाभ मिल रहा है यह तो किसी सर्वे से ही तय होगा, परंतु देश के माहौल और लोगों को देखकर लगता है कि कहीं न कहीं हमसे चूक हो रही है। बहुत कम लोग हैं जो साहित्यकार, पत्रकार, अध्यापक या वैज्ञानिक बनना चाहते हैं और संभवत: बहुत ज्यादा लोग हैं जो डॉक्टर, इंजीनियर, बाबा, नेता या अभिनेता बनना चाहते हैं।
 
1. सांप्रदायिक बनाती शिक्षा? हमारे देश के करोड़ों लोग मदरसों में पढ़ते हैं, सरस्वती विद्यालय में पढ़ते हैं और कान्वेंट स्कूल में अधिकतर लोग पढ़ते हैं। हमारी शिक्षा हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई में बंटी हुई है, क्या ये सही है? ये लोग अपने-अपने स्कूल में क्या पढ़ा रहे हैं?  हमारी शिक्षा हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई में बंटी हुई है, क्या ये सही है? यह ठीक है कि हमें धार्मिक शिक्षा देना चाहिए लेकिन कुछ स्कूल क्या कर रहे हैं यह सभी जानते हैं। 
 
2. विचारधारा की लड़ाई सिखाते कॉलेज कैंपस? कितने स्टूडेंट साइंस लेते हैं और कितने वैज्ञानिक बनते हैं? क्या इसका कोई रिकार्ड है? देखने पर तो यही लगता है कि बड़े होकर अधिकतर बच्चे राइट विंग या लेफ्ट विंग के हो जाते हैं। सड़क पर आंदोलन करते हैं और स्वतंत्रता एवं अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर क्या कुछ नहीं करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। उन्हें देश में नई व्यवस्था कायम करना है परंतु विज्ञान की कोई नई खोज नहीं करना है या मानव जाति की भलाई के लिए उनको कुछ देकर नहीं जाना है। ये ही घातक लोग अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे लोगों पर शासन करते हैं। यह सभी जानते हैं कि अल्बर्ट आइंस्टीन को क्यों जर्मन छोड़कर जाना पड़ा था।
 
3. क्या बनने के लिए प्रेरित करती है शिक्षा नीति? : हमारी शिक्षा या शिक्षा का माहौल हमें अधिकतर सीख देता है कि बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, आईटी इंजीनियर, खिलाड़ी, डांसर, गायक, कलाकार, नेता, अभिनेता बनाना चाहिए। यह सीख कम ही मिलती है कि वैज्ञानिक बनाना चाहिए, साहित्यकार बनना चाहिए, बिजनेसमेन बनना चाहिए या तुम्हें एक अच्छा इंसान बनना चाहिए। चारों और से बच्चों पर प्रेशर है कुछ बनने का। कुछ करने का नहीं। हम बताते हैं कि बड़े होकर तुम्हें गाड़ी, बंगला और कार खरीदना है। तुम्हारी तनख्‍वाह बड़ी से बड़ी होना चाहिए। हम प्रलोभन देते हैं कि तुम्हें कितना रुपया कमाना है। हम बच्चों को गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं।
 
भविष्य में यदि हम ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक सोच के लोगों को पैदा नहीं करेंगे तो यह तय है कि हम धार्मिक या सांस्कृति युद्ध ही लड़ रहे होंगे और यह काम तो हम पिछले 2 हजार वर्षों से कर ही रहे हैं, क्या परिणाम हुआ इसका जरा सोचें। 
 
4. शिक्षा में क्रांति : ओशो रजनीश अपने प्रवचन 'शिक्षा में क्रांति' में कहते हैं कि 'मैं जब पढ़ता था तो वे कहते थे कि पढ़ोगे लिखोगे तो होगे नवाब, तुमको नवाब बना देंगे, तुमको तहसीलदार बनाएंगे। तुम राष्ट्रपति हो जाओगे। ये प्रलोभन हैं और ये प्रलोभन हम छोटे-छोटे बच्चों के मन में जगाते हैं। हमने कभी उनको सिखाया क्या कि तुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम शांत रहो, आनंदित रहो! साइंटिस्ट बनो। नहीं। हमने सिखाया, तुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम ऊंची से ऊंची कुर्सी पर पहुंच जाओ। तुम्हारी तनख्वाह बड़ी से बड़ी हो जाए, तुम्हारे कपड़े अच्छे से अच्छे हो जाएं, तुम्हारा मकान ऊंचे से ऊंचा हो जाए, हमने यह सिखाया है। हमने हमेशा यह सिखाया है कि तुम लोभ को आगे से आगे खींचना, क्योंकि लोभ ही सफलता है और जो असफल है उसके लिए कोई स्थान है?... फिर सफल होने के लिए चाहे कुछ भी करना पड़े। सफल होने के बाद कोई नहीं पूछता है कि कितने पाप करके तुम सफल हुए हो।
 
दूसरा ओशो यह भी कहते हैं कि अतीत में जो शिक्षा प्रचलित थी वह पर्याप्त नहीं है, अधूरी है, सतही है। वह सिर्फ ऐसे लोग निर्मित करती है जो रोजी-रोटी कमा सकते हैं लेकिन जीवन के लिए वह कोई अंतर्दृष्टि नहीं देती। वह न केवल अधूरी है, बल्कि घातक भी है क्योंकि वह प्रतिस्पर्धा पर आधारित है। किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा, गहरे में हिंसक होती है और प्रेम-रहित लोगों को पैदा करती है। उनका पूरा प्रयास होता है, जीवन में कुछ पाना है- नाम, कीर्ति, सब तरह की महत्वाकांक्षाएं। स्वभावतः, उन्हें लड़ना पड़ता है और उसके लिए संघर्षरत रहना पड़ता है। उससे उनका आनंद और उनका मैत्री-भाव खो जाता है। लगता है, जैसे हर व्यक्ति पूरे विश्व के साथ लड़ रहा है।
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