मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. सिख धर्म
  4. Guru Tegh Bahadur
Written By

गुरु तेग बहादुर साहब ने दिया था प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश

गुरु तेग बहादुर साहब ने दिया था प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश - Guru Tegh Bahadur
सिक्खों के नौवें गुरु, गुरु तेगबहादुर सिंह का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था। गुरु तेगबहादुर सिंह का बचपन का नाम त्यागमल था। वे बाल्यावस्था से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे।
 
तेग बहादुरजी ने अपने युग के शासन वर्ग की नृशंस एवं मानवता विरोधी नीतियों को कुचलने के लिए बलिदान दिया। कोई ब्रह्मज्ञानी साधक ही इस स्थिति को पा सकता है। मानवता के शिखर पर वही मनुष्य पहुंच सकता है जिसने 'पर में निज' को पा लिया हो।
 
'धरम हेत साका जिनि कीआ/सीस दीआ पर सिरड न दीआ।'
 
इस महावाक्य के अनुसार गुरु तेग बहादुर साहब का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए, अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य व शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुत: सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।

 
विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। आततायी शासक की धर्मविरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह उनके निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। वे शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग-पुरुष थे।

 
धर्म के सत्य ज्ञान के प्रचार-प्रसार कार्य के लिए उन्होंने कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर से कीरतपुर, रोपड़, सैफाबाद के लोगों को संयम तथा सहज मार्ग का पाठ पढ़ाते हुए वे खिआला (खदल) पहुंचे। यहां से गुरु तेगबहादुर धर्म के सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे। कुरुक्षेत्र से यमुना किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुंचे और यहां साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।

 
उसके बाद प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में वे गए। वहां लोगों के आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक व उन्नयन के लिए कई रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिक स्तर पर धर्म का सच्चा ज्ञान बांटा और कई जनकल्याणकारी आदर्श स्थापित किए। शांति, क्षमा, सहनशीलता के गुणों वाले गुरु तेग बहादुरजी ने लोगों को प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। 
 
किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। उनके जीवन का प्रथम दर्शन यही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है।'

 
गुरु तेगबहादुर सिंह में ईश्वरीय निष्ठा के साथ समता, करुणा, प्रेम, सहानुभूति, त्याग और बलिदान जैसे मानवीय गुण विद्यमान थे। शस्त्र और शास्त्र, संघर्ष और वैराग्य, लौकिक और अलौकिक, रणनीति और आचार-नीति, राजनीति और कूटनीति, संग्रह और त्याग आदि का ऐसा संयोग मध्ययुगीन साहित्य व इतिहास में बिरला ही है।
ये भी पढ़ें
सुख-सौभाग्य व समृद्धि चाहिए तो जपें सांईंबाबा के ये विशेष मंत्र