1. व्रत रखने वाले अधिकतर लोग साबूदाने की खिचड़ी, राजगिरे के आटे की रोटी या मोरधन आदि की खिचड़ी दोनों समय पेटभर कर खा लेते हैं। दरअसल यह व्रत नहीं एक प्रकार से भोजन को बदलना होता है। यह व्रत का नियम नहीं है।
2. व्रत में केवल एक समय भोजन करते हैं और दूसरे समय फलाहार लेते हैं जबकि कुछ लोग सिर्फ एक समय ही खाना खाते हैं। इसे अर्धोपवास कहते हैं। दोनों सफल फलाहार लेने का अर्थ है पूर्णोपवास करना।
3. श्रावण माह में नित्य सूर्योदय से पहले उठकर पानी में कुछ काले तिल डालकर नहाना चाहिए। सुबह सूर्य को हल्दी मिश्रित जल अवश्य चढ़ाएं।
4. जब भगवान शिव की उपासना करें तो सबसे पहले तांबे के पात्र में शिवलिंग रखें। इसके बाद ही अभिषेक करें।
5. भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है, परंतु विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से अभिषेक की विधि प्रचलित है।
7. अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गया है। महामृत्युंजय मंत्र, भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र या अन्य मंत्र, स्तोत्र जो कंठस्थ हो।
8. शिव-पार्वती की पूजा के बाद सोमवार की व्रत कथा करें।
9. आरती करने के बाद भोग लगाएं और घर परिवार में बांटने के बाद स्वयं ग्रहण करें।
10. नमक रहित प्रसाद ग्रहण करें।
11. दिन में शयन न करें।
12. प्रति सोमवार पूजन का समय निश्चित रखें।
13. प्रति सोमवार एक ही समय एक ही प्रसाद ग्रहण करें।
14. प्रसाद में गंगाजल, तुलसी, लौंग, चूरमा, खीर और लड्डू में से अपनी क्षमतानुसार किसी एक का चयन करें।
15. 16 सोमवार तक जो खाद्य सामग्री ग्रहण करें उसे एक स्थान पर बैठकर ग्रहण करें, चलते फिरते नहीं।
16. प्रति सोमवार एक विवाहित जोड़े को उपहार दें। (फल, वस्त्र या मिठाई)
17. 16 सोमवार तक प्रसाद और पूजन के जो नियम और समय निर्धारित करें उसे खंडित ना होने दें।
18. श्रावण मास की किसी भी तिथि या दिन को विशेषतः सोमवार को प्रातःकाल उठकर शौच स्नानादि से निवृत्त होकर त्रिदल वाले सुन्दर, साफ, बिना कटे-फटे कोमल बिल्व पत्र पांच, सात या नौ आदि की संख्या में लें। अक्षत अर्थात बिना टूटे-फूटे कुछ चावल के दाने लें।
19. सुन्दर साफ लोटे या किसी सुंदर पात्र में जल यदि संभव हो सके तो गंगा जल लें। तत्पश्चात अपनी सामर्थ्य के अनुसार गंध, चन्दन, धूप, अगरबत्ती आदि लें।
20. अगरबत्ती न लें तो अच्छा रहे क्योंकि अगरबत्ती में बांस की लकड़ी प्रायः लगी रहती है। यह सब सामान एकत्र करके किसी भी शिव मंदिर जाएं। यदि नजदीक कोई शिवालय उपलब्ध न हो तो बिल्व वृक्ष के पास जाएं। या फिर पीपल के वृक्ष के पास जाएं। समस्त सामग्री को किसी स्वच्छ पात्र में रखें।
22. यदि कोई समुचित पात्र उपलब्ध न हो तो भूमि को ही लीप-पोतकर स्वच्छ कर लें और निम्न मंत्र पढ़ते हुए समस्त सामग्री जमीन पर रख दें-
मंत्र- 'अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशा।
सर्वेषामवरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे।
अपसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः।
ये भूता विनकर्तारस्ते नष्टन्तु शिवाज्ञया।'
तत्पश्चात यदि शिवलिंग हो तो (यदि शिवलिंग उपलब्ध न हो तो पीपल या बिल्व अर्थात बेल के वृक्ष को ही) उसे स्वच्छ जल से धोएं और निम्न मंत्र पढ़ते जाएं-
मंत्र- 'गंगा सिन्धुश्च कावेरी यमुना च सरस्वती। रेवा महानदी गोदावरी अस्मिन् जले सन्निधौ कुरु।'
तत्पश्चात भगवान (वृक्ष) के ऊपर अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद यदि पुष्प हो तो भगवान को फूल अर्पित करें : -
पुनः हल्दी-चन्दनादि जो भी उपलब्ध हो उसका शिवलिंग पर लेप लगाएं और निम्न मंत्र पढ़ते जाएं : -
मंत्र- 'ॐ भूः भुर्वः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम् उर्व्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृत:।'
तत्पश्चात भगवान को धूप अर्पण करें तथा भगवान को बिल्वपत्र अर्पण करें और यह मंत्र पढें-
मंत्र- 'काशीवास निवासिनाम् कालभैरव पूजनम्। कोटिकन्या महादानम् एक बिल्वं समर्पणम्। दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम्। अघोर पाप संहार एकबिल्वं शिवार्पणम। त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्। त्रिजन्मपाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम।'
तत्पश्चात जल या गंगा जल भगवान को चढ़ाएं और यह मंत्र पढ़ें: -
मंत्र- 'गंगोत्तरी वेग बलात् समुद्धृतं सुवर्ण पात्रेण हिमांषु शीतलं सुनिर्मलाम्भो ह्यमृतोपमं जलं गृहाण काशीपति भक्त वत्सल।'
23. सबसे अंत में क्षमा याचना करें। मंत्र इस प्रकार है-
अपराधो सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निषं मया, दासोऽयमिति माम् मत्वा क्षमस्व परमेश्वर। आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर, यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्मते'
भगवान भोलेनाथ ने स्वयं कहा है कि-
'न मे प्रियष्चतुर्वेदी मद्भभक्तः ष्वपचोऽपि यः। तस्मै देयं ततो ग्राह्यं स च पूज्यो यथा ह्यहम्।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तस्याहं न प्रणस्यामि स च मे न प्रणस्यति।'
अर्थात् जो भक्तिभाव से बिना किसी वेद मंत्र के उच्चारण किए मात्र पत्र, पुष्प, फल अथवा जल समर्पित करता है उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता हूं और वह भी मेरी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होता है।
श्रावण मास की नवमी तिथि की महत्ता प्रतिपादित करते हुए शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में लिखा है कि कर्क संक्रान्ति से युक्त श्रावण मास की नवमी तिथि को मृगशिरा नक्षत्र के योग में अम्बिका का पूजन करें। वे सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों और फलों को देने वाली हैं। ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले पुरुष को उस दिन अवश्य उनकी पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार की विशेष पूजा से जन्म-जन्मांतर के पापों का सर्वनाश हो जाता है।
इस प्रकार श्रावण मास में औघड़ दानी बाबा भोलेनाथ की पूजा का सद्यः फल प्राप्त किया जा सकता है। विशेष शनिकृत पीड़ा चाहे वह साढ़ेसाती हो या शनि की दशान्तर्दशा हो, शनिजन्य चाहे कोई भी पीड़ा क्यों न हो? हर तरह के कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।