Shradh Paksha 2025: 7 सितंबर से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होने जा रहा है। पितृपक्ष के इन सोलह दिनों में
'पितृ-आराधना' हेतु श्राद्ध व तर्पण इत्यादि किया जाता है। शास्त्र का वचन है-
'श्रद्धया इदम् श्राद्धम्' अर्थात् पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है।
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श्राद्ध पक्ष में पितृगणों (पितरों) के निमित्त तर्पण व ब्राह्मण भोजन कराने का विधान है किन्तु जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग इसे उचित रीति से नहीं करते जो कि दोषपूर्ण है क्योंकि शास्त्रानुसार 'पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता:' अर्थात् देवता भाव से प्रसन्न होते हैं और पितृगण शुद्ध व उचित विधि से किए गए श्राद्धकर्म से।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन कराने से पितृ तृप्त होते हैं। श्राद्ध पक्ष में नित्य मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत 'पितृ स्तुति' करने से पितृ प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। श्राद्धपक्ष में 'कुतप' काल में नित्य तर्पण करना चाहिए। तर्पण सदैव काले तिल, दूध, पुष्प, कुश, तुलसी, नर्मदा/गंगाजल मिश्रित जल से करें।
तर्पण सदैव पितृ-तीर्थ (तर्जनी व अंगूठे के मध्य का स्थान) से करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के लिए श्राद्धकर्म अनिवार्य है, वह करना ही चाहिए लेकिन उससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है जीवित अवस्था में अपने माता-पिता की सेवा करना। जिसने जीवित अवस्था में ही अपने माता-पिता को अपनी सेवा से संतुष्ट कर दिया हो उसे अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता ही है।
शास्त्र का वचन है-'वित्तं शाठ्यं न समाचरेत' अर्थात् श्राद्ध में कंजूसी नहीं करना चाहिए, अपनी सामर्थ्य से बढ़कर श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
श्राद्धकर्म करते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें-
श्राद्ध पक्ष में नित्य करें 'तर्पण'-
शास्त्रानुसार विष्णु को स्तुति, देवी को अर्चन, सूर्य को अर्घ्य एवं पितरों को तर्पण अतिशय प्रिय है। इसलिए श्राद्ध पक्ष में 'कुतप' काल में नित्य तर्पण करें। तर्पण सदैव काले तिल, दूध, पुष्प, कुश, तुलसी, नर्मदा/गंगाजल मिश्रित जल से करें। तर्पण सदैव पितृ तीर्थ (तर्जनी व अंगूठे के मध्य का स्थान) से करें।
श्राद्ध में लोहे या स्टील के पात्रों का उपयोग ना करें-
शास्त्रानुसार श्राद्ध कर्म में लोहे या स्टील के पात्रों का प्रयोग वर्जित है। श्राद्ध कर्म में चांदी के पात्रों को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। चांदी के अभाव में तांबे के पात्रों का प्रयोग कर सकते हैं।
श्राद्ध में 'वृषोत्सर्ग' का बहुत महत्व है-
शास्त्रानुसार शास्त्र में 'वृष' (नन्दी) छोड़ने का बहुत महत्व बताया गया है। गौ-दान के समान ही 'वृष' दान भी करना चाहिए लेकिन यह कर्म केवल पुरुषों के निमित्त ही करना चाहिए महिलाओं के लिए नहीं। 'वृषोत्सर्ग' के बिना किए गए श्राद्ध का फ़ल निष्फ़ल हो जाता है।
आमान्न दान से श्राद्ध की सम्पन्नता-
हमारे शास्त्रों में स्पष्ट निर्देश है कि जो व्यक्ति श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन कराने में असमर्थ हों वे 'आमान्न' दान से भी श्राद्ध को सम्पन्न कर सकते हैं। 'आमान्न दान' किसी ब्राह्मण को ही किया जाना चाहिए। ग्रामीण अंचलों में इसे 'सीदा' देना भी कहा जाता है।
आमान्न दान- अन्न, घी, गुड़, नमक आदि भोजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं।
श्राद्ध पक्ष में करे 'पितृ स्तुति'-श्राद्ध पक्ष में नित्य मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत 'पितृ स्तुति' करने से पितृ प्रसन्न एवं तृप्त होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
क्या हैं 'श्राद्धकर्ता' व 'श्राद्धभोक्ता' के लिए शास्त्र के निर्देश-
श्राद्धपक्ष में सभी सनातनधर्मी अपने पितरों के निमित्त श्राद्धकर्म करते हैं। सनातन धर्म के सभी अनुयायियों को अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। श्राद्ध के दो मुख्य अंग हैं- 1. पिण्डान 2. ब्राह्मण भोजन। हमारे शास्त्रों में श्राद्ध करने वाले (श्राद्धकर्ता) और श्राद्ध में भोजन करने वाले ब्राह्मण (श्राद्धभोक्ता) के लिए कुछ नियम निर्धारित किए हैं। आइए जानते हैं क्या हैं वे नियम-
श्राद्धकर्ता के लिए नियम- शास्त्रानुसार श्राद्धकर्ता को श्राद्ध वाले दिन निम्न नियमों का पालन आवश्यक रूप से करना ही चाहिए-
1. पूर्णरूपेण सात्विक मनोदशा रखे।
2. पान इत्यादि भक्षण ना करें।
3. तेल मालिश, दाढ़ी, केशकर्तन इत्यादि ना कराए।
4. स्त्री के साथ सहवास ना करे।
5. किसी दूसरे के घर अथवा बाहर भोजन ना करे।
श्राद्धभोक्ता के लिए नियम- शास्त्रानुसार श्राद्धभोक्ता को श्राद्ध वाले दिन निम्न नियमों का पालन आवश्यक रूप से करना ही चाहिए-
1. श्राद्धभोज करने के उपरांत उसी दिन दूसरे घर में दोबारा श्राद्धभोजन ना करे।
2. लम्बी यात्रा ना करे।
3. श्राद्धभोज वाले दिन दान ना दे।
4. स्त्री के साथ सहवास ना करे।
5. भोजन करते समय मौन रहकर भोजन करे।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र