साईं बाबा ने शिरडी को महामारी से बचाया था इस तरह
पहली बात यह समझने की है कि सामान्य रोग, बुखार या बीमारी के लिए औषधि काम आती है लेकिन महामारी के लिए नहीं। भारत प्राचीन काल से ही अपने लोगों को महामारी से बचाने के 4 तरीके अपना रहा है।
महामारी से बचने का पहला प्राचीन तरीका यह था कि जैसे ही लोगों को किसी महामारी के फैलने का पता चलता तो वे लोग अपने संपूर्ण शरीर पर ही कड़वी औषधि, नीम, राख आदि जैसे पदार्थ चुपड़ लेते थे। दूसरा यह कि हर गांव में सभी मिलकर हवन करते थे। तीसरे यह कि वहां के स्वस्थ लोग गांव छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चले जाते थे। यह तब होता था जबकि जनपद ध्वंस हो रहा हो। चौथा यह कि लोग अपने गांव को अन्य गांवों से अलग करके खुद को अकेला अर्थात क्वॉरेंटाइन कर लेते थे।
100 साल पहले शिरडी के सांई बाबा ने चौथे तरीके को बहुत ही सफल तरीके से आजमाया था। साईं बाबा के काल में हैजा नामक खतरनाक बीमारी फैली थी जिससे लाखों लोग मारे गए थे लेकिन बाबा ने अपनी शिरडी के लोगों को बचा लिया था
साईं बाबा के काल में हैजा नामक खतरनाक बीमारी फैली थी जिससे लाखों लोग मारे गए थे लेकिन बाबा ने अपनी शिरडी के लोगों को बचा लिया था। साईं बाबा के पास लोग गए और उन्होंने उनसे निवेदन किया। साईं बाबा उस समय कई सप्ताह से मौन पर थे और उन्होंने खाना-पीना भी छोड़ रखा था। कहते हैं कि अचानक उन्होंने अपनी घट्टी में गेहूं पीसना शुरु कर दिया। यह देख लोग उनसे पूछने लगे यह क्या कर रहे हो, लेकिन बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ महिलाओं ने कहा कि हम पीस देते हैं और उन्होंने बाबा को हटाकी खुद ही गेहूं पीसना शुरु कर दिया। पहले तो बाबा क्रोधित हुए लेकिन बाद में उन्होंने ऐसा करने दिया।
गेहूं पीसते वक्त महिलाएं सोचने लगी की बाबा का तो घरबार नहीं है। वे तो भिक्षा प्राप्त करने अपना गुजारा करते हैं। फिर वायजामाई ही उनके लिए खाना ले आती है तो उन्हें इतने आटे की क्या जरूरत? बाबा तो परम दयालु है हो सकता है कि वे यह सारा आटा हमें विचरण कर दें। सारा गेहूं पीसने के बाद उन महिलाओं ने आटे के चार हिस्से किए और अपने अपने हिस्सा का आटे ले जाने लगी।
यह देख बाबा क्रोधित होकर कहने लगे, क्या तुम पागल हो गई हो? तुम किसके बाप का माल हड़पकर ले जा रही हो? क्या कोई कर्जदार का माल है, जो इतनी आसानी से उठाकर लिए जा रही हो? अच्छा एक काम करो इसे ले जाकर गांव की मेड़ (सीमा) सीमा पर बिखेर आओ।
कहते हैं कि सारा महिलाओं के गांव की चारों दिशाओं में आटा बिखेर दिया। अर्थात उन्होंने उस आटे से गांव के चारों और एक लाइक खींच दी। यह भी कहा जाता है कि सभी को तब हिदायत दी गई की कोई भी इससे बाहर नहीं जाएगा और किसी को भीतर नहीं आने देना है। इससे गांव में फैली महामारी भी ठीक हुई और जब महामारी का प्रकोप समाप्त हो गया तब गांव के सभी लोग सुखी हो गए।
संदर्भ : श्री साई सच्चरित (कै. रघुनाथ दाभोलकर)