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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 28 सितम्बर 2024 (13:09 IST)

Sai Jayanti: शिरडी के साईं बाबा का असली नाम क्या था, कहां हुआ था उनका जन्म?

Shirdi sai baba : साई बाबा का जन्म नाम, समय औरस्थान के बारे में जानिए

Shirdi sai baba
sai baba ka janm kab aur kahan hua: महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में सांईंबाबा का जन्म 27-28 सितंबर 1830 को हुआ था। कुछ जगह पर 1938 में जन्म होने की बात कही गई है। सांईं के जन्म स्थान पाथरी पर एक मंदिर बना है। मंदिर के अंदर सांईं की आकर्षक मूर्ति रखी हुई है। यह बाबा का निवास स्थान है, जहां पुरानी वस्तुएं जैसे बर्तन, घट्टी और देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं। पुराने मकान के अवशेषों को भी अच्छे से संभालकर रखा गया है। इस मकान को सांईं बाबा के वंशज रघुनाथ भुसारी से 3 हजार रुपए में 90 रुपए के स्टैम्प पर श्री सांईं स्मारक ट्रस्ट से खरीद लिया था। सांईं बाबा परशुराम की तीसरी संतान थे जिनका नाम हरिभऊ था।
 
  • साईं बाबा का असली नाम हरिबाबू बताया जाता है
  • साईं बाबा का जन्म स्थान परभणी है
  • चांद मिया शिरडी के साई बाबा का पड़ोसी था
 
साई बाबा का असली नाम क्या था : सांईं बाबा के पिता का नाम परशुराम भुसारी और माता का नाम अनुसूया था जिन्हें गोविंद भाऊ और देवकी अम्मा भी कहा जाता था। कुछ लोग पिता को गंगाभाऊ भी कहते थे। दोनों के 5 पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार हैं- रघुपति, दादा, हरिभऊ, अंबादास और बलवंत। सांईं बाबा परशुराम की तीसरी संतान थे जिनका नाम हरिभऊ था।
 
चांद मिया किसका नाम : वर्तमान में साईं बाबा के विरोधी उन्हें चांद मिया मानते हैं। साईं विरोधियों अनुसार वे एक मुस्लिम थे और हिन्दुओं को किसी मुस्लिम की पूजा नहीं करनी चाहिए। साईं बाबा के माता-पिता के घर के पास ही एक मुस्लिम परिवार रहता था। उस परिवार के मुखिया का नाम चांद मिया था और उनकी पत्नी चांद बी थी। उन्हें कोई संतान नहीं थी। हरिबाबू अर्थात साईं उनके ही घर में अपना ज्यादा समय व्यतीत करते थे। चांद बी हरिबाबू को पुत्रवत ही मानती थीं।
 
सांईं बाबा के पास खुद का कुछ नहीं था
बचपन में मां-बाप मर गए तो सांईं और उनके भाई अनाथ हो गए। फिर सांईं को एक वली फकीर ले गए। बाद में वे जब अपने घर पुन: लौटे तो उनकी पड़ोसन चांद बी ने उन्हें भोजन दिया और वे उन्हें लेकर वैंकुशा के आश्रम ले गईं और वहीं छोड़ आईं। बाबा के पास उनका खुद का कुछ भी नहीं था। न सटका, न कफनी, न कुर्ता, न ईंट, न भिक्षा पात्र, न मस्जिद और न रुपए-पैसे।
 
बाबा के पास जो भी था वह सब दूसरों का दिया हुआ था। दूसरों के दिए हुए को वे वहीं दान भी कर देते थे। वे जो भिक्षा मांगकर लाते थे वह अपने कुत्ते और पक्षियों के लिए लाते थे। बाबा ने जीवनभर एक ही कुर्ता या कहें कि चोगा पहनकर रखा, जो दो जगहों से फट गया था। उसे आज भी आप शिर्डी में देख सकते हैं।
 
साई बाबा का निधन कब हुआ: सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर दशहरे के दिन 1918 में समाधि ले ली थी। 27 सितंबर 1918 को सांईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ त्याग दिया। बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी (दशहरा) का दिन था।
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