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पूजा-आरती : पूजा को नित्यकर्म में शामिल किया गया है। पूजा करने के पुराणिकों ने अनेक मनमाने तरीके विकसित किए हैं। पूजा किसी देवता या देवी की मूर्ति के समक्ष की जाती है जिसमें गुड़ और घी की धूप दी जाती है, फिर हल्दी, कंकू, धूप, दीप और अगरबत्ती से पूजा करके उक्त देवता की आरती उतारी जाती है। पूजा में सभी देवों की स्तुति की जाती है। अत: पूजा-आरती के भी नियम हैं। नियम से की गई पूजा के लाभ मिलते हैं।
12 बजे के पूर्व पूजा और आरती समाप्त हो जाना चाहिए। दिन के 12 से 4 बजे के बीच पूजा या आरती नहीं की जाती है। रात्रि के सभी कर्म वेदों द्वारा निषेध माने गए हैं, जो लोग रात्रि को पूजा या यज्ञ करते हैं उनके उद्देश्य अलग रहते हैं। पूजा और यज्ञ का सात्विक रूप ही मान्य है।
कैसे करें पूजन
पूजा से वातावरण शुद्ध होता है और आध्यात्मिक माहौल का निर्माण होता है जिसके चलते मन और मस्तिष्क को शांति मिलती है। पूजा संस्कृत मंत्रों के उच्चारण के साथ की जाती है। पूजा समाप्ति के बाद आरती की जाती है। यज्ञ करते वक्त यज्ञ की पूजा की जाती है और उसके अलग नियम होते हैं। पूजा करने से देवता लोग प्रसन्न होते हैं। पूजा से रोग और शोक मिटते हैं और व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
पूजा के 5 प्रकार :
1- अभिगमन : देवालय अथवा मंदिर की सफाई करना, निर्माल्य (पूर्व में भगवान को अर्पित (चढ़ाई) की गई वस्तुएं हटाना)। ये सब कर्म 'अभिगमन' के अंतर्गत आते हैं।
2- उपादान : गंध, पुष्प, तुलसी दल, दीपक, वस्त्र-आभूषण इत्यादि पूजा सामग्री का संग्रह करना 'उपादान' कहलाता है।
3- योग : ईष्टदेव की आत्मरूप से भावना करना 'योग' है।
4- स्वाध्याय : मंत्रार्थ का अनुसंधान करते हुए जप करना, सूक्त-स्तोत्र आदि का पाठ करना, गुण-नाम आदि का कीर्तन करना, ये सब स्वाध्याय हैं।
5- इज्या : उपचारों के द्वारा अपने आराध्य देव की पूजा करना 'इज्या' के अंतर्गत आती है।
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कीर्तन : ईश्वर, भगवान, देवता या गुरु के प्रति स्वयं के समर्पण या भक्ति के भाव को व्यक्त करने का एक शांति और संगीतमय तरीका है कीर्तन। इसे ही भजन कहते हैं। भजन करने से शांति मिलती है। भजन करने के भी नियम हैं। गीतों की तर्ज पर निर्मित भजन, भजन नहीं होते। शास्त्रीय संगीत अनुसार किए गए भजन ही भजन होते हैं। सामवेद में शास्त्रीय संगीत का उल्लेख मिलता है। नवधा भक्ति में से एक है कीर्तन।
अद्भुत औषधि है कीर्तन...!
मंदिर में कीर्तन सामूहिक रूप से किसी विशेष अवसर पर ही किया जाता है। कीर्तन के प्रवर्तक देवर्षि नारद हैं। कीर्तन के माध्यम से ही प्रह्लाद, अजामिल आदि ने परम पद प्राप्त किया था। मीराबाई, नरसी मेहता, तुकाराम आदि संत भी इसी परंपरा के अनुयायी थे।
कीर्तन के दो प्रकार हैं- देशज और शास्त्रीय। देशज अर्थात लोक संगीत परंपरा से उपजा कीर्तन जिसे 'हीड़' भी कहा जाता है। शास्त्रीय अर्थात जिसमें रागों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। संतों के दोहे और भजनकारों के पदों को भजन में गाया जाता है।
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प्रार्थना : नवधा भक्ति में से एक है प्रार्थना। प्रार्थना को उपासना, आराधना, वंदना, अर्चना भी कह सकते हैं। इसमें निराकार ईश्वर या देवताओं के प्रति कृतज्ञता और समर्पण का भाव व्यक्त किया जाता है। इसमें भजन या कीर्तन नहीं किया जाता। इसमें पूजा या आरती भी नहीं की जाती। प्रार्थना का असर बहुत जल्द होता है। समूह में की गई प्रार्थना तो और शीघ्र फलित होती है। सभी तरह की आराधना में श्रेष्ठ है प्रार्थना। वेदों की ऋचाएं प्रकृति और ईश्वर के प्रति गहरी प्रार्थनाएं ही तो हैं। ऋषि जानते थे प्रार्थना का रहस्य।
प्रार्थना क्या है, क्यों करें प्रार्थना?
प्रार्थना का प्रचलन सभी धर्मों में है, लेकिन प्रार्थना करने के तरीके अलग-अलग हैं। तरीके कैसे भी हों जरूरी है प्रार्थना करना। प्रार्थना योग भी अपने आप में एक अलग ही योग है, लेकिन कुछ लोग इसे योग के तप और ईश्वर प्राणिधान का हिस्सा मानते हैं। प्रार्थना को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त करने की एक क्रिया भी माना जाता है।
कैसे करें प्रार्थना : ईश्वर, भगवान, देवी-देवता या प्रकृति के समक्ष प्रार्थना करने से मन और तन को शांति मिलती है। मंदिर, घर या किसी एकांत स्थान पर खड़े होकर या फिर ध्यान मुद्रा में बैठकर दोनों हाथों को नमस्कार मुद्रा में ले आएं। अब मन-मस्तिष्क को एकदम शांत और शरीर को पूर्णत: शिथिल कर लें और आंखें बद कर अपना संपूर्ण ध्यान अपने ईष्ट पर लगाएं। 15 मिनट तक एकदम शांत इसी मुद्रा में रहें तथा सांस की क्रिया सामान्य कर दें।
भक्ति के प्रकार : 1.आर्त, 2.जिज्ञासु, 3.अर्थार्थी और 4.ज्ञानी
प्रार्थना के प्रकार : 1.आत्मनिवेदन, 2.नामस्मरण, 3.वंदन और 4. संस्कृत भाषा में समूह गान।
प्रार्थना के फायदे : प्रार्थना में मन से जो भी मांगा जाता है वह फलित होता है। ईश्वर प्रार्थना को 'संध्या वंदन' भी कहते हैं। संध्या वंदन ही प्रार्थना है। यह आरती, जप, पूजा या पाठ, तंत्र, मंत्र आदि क्रियाकांड से भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है।
प्रार्थना से मन स्थिर और शांत रहता है। इससे क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इससे स्मरण शक्ति और चेहरे की चमक बढ़ जाती है। प्रतिदिन इसी तरह 15-20 मिनट प्रार्थना करने से व्यक्ति अपने आराध्य से जुड़ने लगता है और धीरे-धीरे उसके सारे संकट समाप्त होने लगते हैं। प्रार्थना से मन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तथा शरीर निरोगी बनता है।
अंत में ध्यान....