सावन के आखिरी सोमवार को हिन्दू तीर्थयात्रियों ने चीन के तिब्बत स्वशासी क्षेत्र में स्थित कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील किनारे हवन और पूजन किया। इस पर अली प्रीफेक्चर के डिप्टी कमिश्नर जी. किंगमिन ने कड़ी आपत्ति दर्ज कर कहा कि भारतीय तीर्थयात्री उनके क्षेत्र में आते हैं। ऐसे में उन्हें नियम और कानूनों का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर हम भारत जाएंगे तो वहां के नियमों का पालन करेंगे।
इस मामले पर बैच 13 के संपर्क अधिकारी सुरिंदर ग्रोवर ने कहा कि उनका जत्था दिल्ली से 30 जुलाई को रवाना हुआ है। इसके बाद जत्थे ने कैलाश की परिक्रमा पूरी की और फिर मानसरोवर झील के किनारे यज्ञ किया। यज्ञ इसलिए किया गया, क्योंकि सोमवार और कार्तिक मास परितोष तिथि थी। इसलिए यज्ञ करना शुभ था।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यज्ञ करना सही था?
यहां यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज हमारे नदी के किनारे बसे जितने भी तीर्थस्थल हैं, उनका क्या हाल हो चला है, यह किसी से छुपा नहीं है। मां गंगा सैकड़ों सालों से लाशों को ढो रही है। किनारे पर ही लाशें जलाई जाती हैं और कुछ लोग जल समाधि दे देते हैं।
नदी में कितना कचरा फेंका जा रहा है? यह सभी जानते हैं। देशभर की नदियों को प्रदूषित करने में निश्चित ही हिन्दू कर्मकांड भी इसके लिए दोषी हैं। धर्म के नाम पर यदि आप प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं तो क्या यह अपराध नहीं है?
अब बात करते हैं यज्ञ की। एक बहुत ही ठंडे इलाके में यज्ञ करना क्या वहां की शांत और सुंदर बर्फ और वातावरण के साथ छेड़खानी करना नहीं है? इस क्षेत्र में यज्ञ करने का क्या परिणाम होगा? क्या इस संबंध में कभी सोचा गया? क्या आपको पता है कि अमरनाथ का शिवलिंग क्यों वक्त के पहले ही पिघल जाता है? दरअसल, यज्ञ उतना ही अनुचित है जितना कि चीन और भारत द्वारा वहां पर विकास कार्य किए जाना।
आपने देखा होगा कि केदारनाथ की प्रकृति के साथ किस तरह से छेड़छाड़ की गई थी। वहां व्यापार के बड़े-बड़े केंद्र बन गए थे। आखिर क्या गर्मी से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा नहीं होता है? यज्ञ से क्या कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है? क्या यज्ञ करने से मोक्ष मिल जाएगा? क्या यह शिव की तपस्या में विघ्न उत्पन्न करना नहीं है? क्या आपने केदारनाथ की बाढ़ से कोई सबक नहीं लिया?
यह अच्छा है कि कैलाश पर्वत और मानसरोवर चीन के अधीन है, वर्ना हम भारतीय अब तक उस स्थान को कचरा बना देते! लाखों लोग हर अमावस्या और पूर्णिमा पर झील में स्नान करके उसे एक गंदा तालाब बना देते। जिन लोगों ने वहां पर यज्ञ किया, उन्हें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि उन्होंने क्या यह उचित किया? क्या उसमें सिर्फ उनका ही स्वार्थ था? आपके लिए यज्ञ करना शुभ हो सकता है लेकिन शिवजी के लिए यह सही है या नहीं, यह आपने कभी सोचा? आपने अपने स्वार्थ के लिए यज्ञ किया।
यज्ञ तो छोड़िए, आप वहां वार्ता भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वह इस जगत के सर्वोच्च भगवान शिव का निवास स्थान है, जहां वे समाधि में लीन रहते हैं। क्या आपको पता है कि शैव धर्म यज्ञ करने की इजाजत देता है? क्या आपको नहीं लगता कि आपने अपराध किया?
प्राकृतिक सौंदर्य को नुकसान : यहां मुख्यत: 2 धर्मों हिन्दू और बौद्ध धर्म के लोग यात्रा करते हैं। यहां पहुंचकर वे पूजा के अलावा अपने अन्य कर्मकांड भी करते हैं। धीरे-धीरे चीन की सरकार इसे पर्यटन के रूप में विकसित कर रही है ताकि उससे उसे आय हो। इस आय के चक्कर में यहां का प्राकृतिक सौंदर्य कैसे कांक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है, इस संबंध में किसी भी भारतीय को कोई चिंता नहीं है।
कैलाश पर्वत के आसपास लगभग 108 पहाड़ हैं। यहां पर कुछ सालों बाद कुछ ही पहाड़ बचेंगे, क्योंकि रेल लाइन और बस के रूट को क्लीयर करने के लिए कुछ पहाड़ों में दर्रे बनाए जा रहे हैं। भविष्य में आप यह भी देखेंगे कि लोग यहां होटलों में रुकेंगे और वहां एक कचरा निपटान की गाड़ियां भी आने लगेंगी। तब देखना होगा कि इस सबसे पवित्र स्थल का हाल केदारनाथ जैसा होगा कि नहीं?
हिमालय के ग्लेशियर : एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालय क्षेत्र के दो-तिहाई ग्लेशियर इस सदी के अंत तक पिघलकर खत्म हो जाएंगे। इसकी वजह धरती का लगातार बढ़ता तापमान या यूं कहें कि क्लाईमेट चेंज है। यदि उत्सर्जन नहीं घटा तो दुनिया का तीसरा ध्रुव समझे जाने वाले हिमालय ग्लेशियर का दो-तिहाई हिस्सा वर्ष 2100 तक पिघल जाएगा।
इससे भारत से लेकर चीन तक नदियों का प्रवाह तो प्रभावित होगा ही, फसल उत्पादन भी मुश्किल हो जाएगा। इस रिपोर्ट को 210 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसका नेतृतव फिलिप्स वेस्टर ने किया है। हिन्दूकुश हिमालय एसेसमेंट के अनुसार यदि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने वाली पेरिस संधि का लक्ष्य हासिल हो भी जाता है, तब भी एक-तिहाई ग्लेशियर नहीं बच पाएंगे।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए 2 भिन्न मार्ग हैं जिसमें एक लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) है जिसके रास्ते यात्रा करने पर लगभग 24 दिन लगते हैं। कैलाश मानसरोवर पैदल यात्रा मार्ग पर नाभिढांग से लिपुलेख के बीच बहुतायत में बर्फ जमी रहती है और यह रास्ता कठिन भी है। इसके अलावा दूसरा रास्ता नाथू ला दर्रा (सिक्किम) के होकर गुजरता है जिसके माध्यम से यात्रा पूरी होने में 21 दिन लगते हैं और यहां पर भी बर्फ होती है, लेकिन इतनी ज्यादा नहीं।