गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. सनातन धर्म
  3. महापुरुष
  4. yamaraj and yayati
Written By

जब ययाति ने मरने से किया इनकार तो यमराज ने रखी यह शर्त

जब ययाति ने मरने से किया इनकार तो यमराज ने रखी यह शर्त | yamaraj and yayati
भारत के चक्रवर्ती सम्राट ययाति को उनके श्वसुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने वृद्ध हो जाने का शाप दिया था। उनके शाप के चलते वे तुरंत ही वृद्ध होकर मृत्यु की ओर बढ़ने लगे थे। ययाति की इस कहानी का वर्णन सभी जगह अलग-अलग मिलता है, लेकिन कहानी का मूल वही है।
 
 
सम्राट ययाति संसार के प्रति आसक्त व्यक्ति थे। 100 वर्ष जीने के बाद भी उनकी भोग-लिप्सा शांत नहीं हुई। कहते हैं कि उसकी 100 रानियां थीं। विषय-वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें उससे घृणा हो गई और उसके मन में फिर से जवान बनने की अभिलाषा जाग्रत हो उठी, लेकिन जब उसका मृत्यु का समय आया तो वह थर्राने लगे। डर गए और यमराज से कुछ समय और जीने की याचना करने लगे। यमराज उन्हें मोहलत देकर चले जाते हैं। इस तरह यमराज दो-तीन बार और आते हैं और अंत में ययाति को ले जाने के लिए टस से मस नहीं होते।
 
 
यमराज के सामने ययाति गिड़गिड़ाने लग जाते हैं- कहने लगे, अभी तो मेरे बहुत काम बाकी है। अभी तो में अतृप्त और भूखा हूं। कुछ और मोहलत दे दीजिए। ऐसे इस तरह अचानक मत ले जाइए। अभी तो मैंने कुछ भोगा ही नहीं।
 
 
यमराज ने कहा कि आपकी उम्र कभी से ही पूरी हो चुकी है और अब आपको ले ही जाना पड़ेगा। लेकिन ययाति जब बहुत गिड़गिड़ाने लगे तो यमराज ने कहा- 'अच्छा ठीक है। इस शर्त पर अंतिम बार आपको छोड़ दिया जाता है वह यह कि अब तुम अपने किसी पुत्र की उम्र के बदले यहां और कुछ दिन रह सकते हो।' 
 
 
अब ययाति अपने बेटों के समक्ष गिड़गिड़ाने लगा। जो बेटे 70 के, 60 के या 50 की उम्र के थे, वे जैसे-तैसे मना करके वहां से चले गए। बाद में यदु, तुर्वसु और द्रुहु ने भी जब मना कर दिया, तब उसने पुरु से पूछा। पुरु सबसे छोटा लड़का था।
 
 
पुरु ने कहा कि पिताश्री, मैं अपनी उम्र आपको दे देता हूं। जब आपका मन 100 साल भोगकर नहीं भरा, तब मेरा कहां भर पाएगा? तुम मुझे आशीर्वाद दो। ययाति बहुत खुश हुए और कहने लगा कि तू ही मेरा असली बेटा है। ये सब तो स्‍वार्थी हैं। तुझे बहुत पुण्‍य लगेगा। तूने अपने पिता को बचा लिया इसलिए तुझे स्वर्ग मिलेगा।
 
 
100 साल के बाद फिर मौत आई और बाप (ययाति) फिर गिड़गिडाने लगे और उन्होंने कहा कि अभी तो कुछ भी पूरा नहीं हुआ है। ये 100 साल ऐसे बीत गए कि पता ही नहीं चला। पल में बीत गए। तब तक उसके 100 बेटे और पैदा हो चुके थे। नई-नई शादियां की थीं, मौत ने कहा, तो फिर किसी बेटे को भेज दो।
 
 
और ऐसा चलता रहा। ऐसा कहते हैं कि ऐसा 10 बार हुआ। ययाति हजार साल का बूढ़ा हो गया, तब भी मौत आई और मौत ने कहा, अब क्‍या इरादे हैं?
 
 
ययाति हंसने लगा। उसने कहां, अब मैं चलने को तैयार हूं। यह नहीं कि मेरी इच्‍छाएं पूरी हो गईं, इच्‍छाएं वैसी की वैसी अधूरी हैं। मगर एक बात साफ हो गई कि कोई इच्‍छा कभी पूरी हो नहीं सकती। मुझे ले चलो। मैं ऊब गया। यह भिक्षापात्र भरेगा नहीं। इसमें तलहटी नहीं है। इसमें कुछ भी डालो, यह खाली का खाली रह जाता है।
 
 
जीवेषणा शरीर से बंधी हो, इच्‍छाओं से बंधी हो, मन से बंधी हो, तो संसार। और जीवेषणा सबसे मुक्‍त हो जाए- न संसार, न शरीर, न मन- तो जीवेषणा नहीं रह जाती। जीवन ही रह जाता है। शुद्ध जीवन। खालिस जीवन। शुद्ध कुंदन। वही निर्वाण है, वही मोक्ष है।- जैसी ओशो रजनीश द्वारा सुनाई गई कथा।