शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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सांईंबाबा का अद्भुत चमत्कार और कृपा

सांईंबाबा का अद्भुत चमत्कार और कृपा | shirdi wale sai baba ke chamatkar
संकलन : अनिरुद्ध
भारत साधु-संतों और पीर-फकीरों का देश है। यहां के लोगों में संतों के प्रति बहुत ही आदर और सम्मान की भावना रहती है। इस भावना का कुछ ढोंगी संत फायदा उठाते हैं तो कुछ सच्चे संत इस भावना का आदर कर भक्त के सभी तरह के दु:ख-दर्द दूर करने के लिए अपना जीवन तक दांव पर लगा देते हैं। ऐसे ही संतों में एक हैं शिर्डी के सांईंबाबा। 
sai baba
सांईंबाबा के बारे में कहा जाता है कि यदि उनके प्रति आप भक्ति की भावना से भरकर उनकी समाधि पर माथा टेकेंगे तो आपकी किसी भी प्रकार की समस्या हो, उसका तुरंत ही समाधान होगा। जब सांईंबाबा आपकी भक्ति को कबूल कर लेते हैं, तो आपको इस बात की किसी न किसी रूप में सूचना भी दे देते हैं।
 
सांईं न हिन्दू हैं और न मुसलमान, वे सिर्फ अपने भक्तों के दु:ख-दर्द दूर करने वाले बाबा हैं। सांईं बाबा का स्पष्ट संदेश है कि यदि तुम मेरी ओर देखोगे तो मैं तुम्हारी ओर देखूंगा। मेरे भक्त को जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होने दूंगा।
 
अपने भक्तों के कष्ट दूर करना कोई चमत्कार नहीं है, लेकिन उनके भक्त इसे चमत्कार ही मानते हैं। सांईंबाबा ने अपने जीवनकाल में कई ऐसे चमत्कार दिखाए जिससे कुछ लोगों ने उनको राम का अंश जाना तो ‍कुछ ने श्याम का। सांईं के 11 वचनों के अनुसार वे आज भी अपने भक्तों की सेवा के लिए तुरंत ही उपलब्ध हो जाते हैं। आओ जानते हैं सांईंबाबा के ऐसे ही कुछ कार्य जिनको माना जाता है चमत्कार...
 
अगले पन्ने पर पहला चमत्कार...
 

सांईं भक्त दत्तोपंत : मध्यप्रदेश के हरदा गांव के एक निवासी दत्तोपंतजी सांईंबाबा के बहुत बड़े भक्त थे। वे लगभग 14 वर्ष से पेट दर्द की पीड़ा से परेशान थे। उन्होंने हर तरह का इलाज कराया लेकिन उनकी पीड़ा का समाधान नहीं हुआ। सांईंबाबा की प्रसिद्धि की चर्चा सुनकर वे भी बाबा के दर्शन के लिए शिर्डी पहुंच गए।
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उन्होंने बाबा के चरणों में सिर रखकर कहा कि बाबा इस पेट दर्द ने मुझे इतना परेशान करके रख दिया है कि मैं अब दर्द सहने के लायक ही नहीं रखा। इस जन्म में मैंने कोई गुनाह नहीं किया। हो सकता है कि यह मेरे पिछले किसी जन्म का कोई पाप हो, जो अब तक मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है।
 
बाबा ने दत्तोपंत की ओर प्रेमपूर्ण भाव से देखकर उसके सिर पर वरदहस्त रखा और कहा कि अच्छे हो जाओगे। फिर बाबा ने उन्हें ऊदी भी दी। बाबा के आशीर्वाद और ऊदी प्रसाद से वे पूरी तरह स्वस्थ हो गए। फिर उन्हें भविष्य में कभी कोई रोग और शोक नहीं हुआ। कहते भी हैं कि 'पहला सुख निरोगी काया।
 
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गोपालराव : एक गांव में गोपालराव नामक एक इंस्पेक्टर थे। वे सुबह-सुबह अपने दरवाजे के पास खड़े थे कि तभी गांव का एक मेहतर अपनी पत्नी के साथ वहां से गुजरा। जैसे ही उन दोनों की दृष्टि गोपालराय पर पड़ी, मेहतरानी अपने पति से बोली कि सुबह-सुबह किस निपूते का मुंह देख लिया। अब पता नहीं हम जहां जा रहे हैं वहां पहुंच पाएंगे या नहीं? आज रहने, दो कल चलेंगे।
 
इंस्पेक्टर गोपालराव के दिल में मेहतरानी की बात तीर की तरह चुभ गई। इंस्पेक्टर ने संतान की इच्छा से 4 विवाह किए थे लेकिन एक से भी उनको कोई पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई थी। उन्होंने डॉक्टर, नीम-हकीम, वैद्य आदि सभी से इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इस घटना ने इंस्पेक्टर गोपालराव को भीतर से बुरी तरह तोड़ दिया था। 
 
इस घटना के बाद संतान न हो तो जीवन व्यर्थ ही है, यह सोचकर उन्होंने निश्चय कर लिया कि नौकरी छोड़ देंगे और सभी धन-संपत्ति को चारों पत्नियों के बीच बांटकर वे संन्यास ले लेंगे। यह निश्चय करने के बाद उन्होंने त्यागपत्र लिखा और कुर्सी पर बैठे-बैठे ही गहरे विचार में डूब गए। तभी दरवाजे के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज सुनाई दी।
 
गोपालराव ने ‍दरवाजे की ओर देखा तो 'गोपाल... गोपाल...' करता हुआ उनका मित्र कमरे की ओर आ रहा था। गोपालराव ने खड़े होकर मुस्कराकर स्वागत करते हुए कहा कि हेलो रामू! इतनी सुबह तुम यहां अचानक कैसे?
 
रामू बोला कि ट्रेन से अहमदाबाद जा रहा था, लेकिन जैसे ही ट्रेन यहां स्टेशन पर रुकी तभी किसी ने मेरे कान में कहा कि यहीं उतर जा, गोपाल तुम्हें याद कर रहा है। मैं बिना सोचे-समझे यहां उतर गया और घोड़ागाड़ी लेकर यहां आ गया।
 
गोपालराव ने रामू का स्वागत किया और सभी के हाल-चाल पूछे। तब रामू ने पूछा कि तुम बताओ, सब कुशल तो है?
 
गोपालराव ने निराश होकर कहा कि तुमने यहां आकर ठीक किया मित्र। यदि आज नहीं आते तो फिर कभी मिलना नहीं होता।
 
रामू ने आश्चर्य से पूछा कि क्यूं?
 
गोपालराव ने फिर सुबह की घटना और अपने मन की व्यथा सुना दी।
 
रामू ने कहा कि मेरी समझ में आ गया। तुम एक काम करो, अभी ही मेरे साथ शिर्डी चलो। गोपाल ने कहा कि नहीं यार, अभी नहीं दो-चार दिन तुम यहीं रुको फिर चलेंगे। रामू ने जोर देकर कहा कि नहीं अभी ही चलना होगा। तब दोनों शिर्डी पहुंच गए।
 
शाम हो रही थी। द्वारिकामाई मस्जिद में दीये जलाए जा रहे थे। सांईंबाबा मस्जिद में चबूतरे पर बैठे थे। अनेक शिष्य उनके पास बैठे थे। तभी गोपाल और रामू दोनों ने मस्जिद में एकसाथ प्रवेश किया। दोनों को देखकर सांईंबाबा ने मुस्कराकर कहा कि आओ गोपाल, आओ रामू। बहुत देर कर दी तुम दोनों ने। तुम तो सुबह 10 बजे चले थे।
 
गोपाल और रामू दोनों ने ठिठककर एक-दूसरे की ओर देखा। फिर उन्होंने आगे बढ़कर बाबा के चरण स्पर्श किए। सांईंबाबा ने दोनों को अपने पैरों से ऊपर उठाते हुए कहा कि आज तुम दोनों ने एकसाथ पांव छुए हैं। मस्जिद में भी एकसाथ ही कदम रखे हैं। मैं चाहता हूं कि तुम दोनों के मन की मुरादें भी एकसाथ पूरी हों। फिर बाबा ने पास ही खड़े सिद्धीकी से कहा कि सिद्धीकी सुना है कि तुमको आदमी पहचानने का बहुत तजुर्बा है। क्या तुम बता सकते हो कि इन दोनों में से कौन हिन्दू और कौन मुसलमान है? सिद्धीकी ने गौर से देखने के बाद कहा कि बाबा मुझे तो दोनों ही हिन्दू भी और मुसलमान भी दिखाई दे रहे हैं। आज तो मेरी बूढ़ी आंखें धोखा खा रही हैं। बाबा ने कहा कि तुम ठीक कहते हो हाजी सिद्धीकी। ये दोनों हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी। मैं भी यह चाहता हूं कि इनका रूप ऐसा ही बना रहे।
 
रामू का वास्तविक नाम अहमद अली था, लेकिन उसने अपना नाम रामू रख लिया था। बाबा ने दोनों को आशीर्वाद दिया और उनकी मनोकामना पूर्ण होने का आश्‍वासन भी दिया। बाबा के आशीर्वाद के ठीक 9 महीने बाद दोनों के यहां शहनाइयां बजीं और उनके मन की मुरादें पूरी हुईं। दोनों फिर से बाबा के दरबार में पहुंचे। दोनों ने बाबा के पैर छुए और बाबा से निवेदन किया कि आज से शिर्डी में हिन्दू और मुसलमानों के त्योहार एकसाथ मनाए जाएं। बाबा ने उनका निवेदन स्वीकार कर लिया और इसकी शुरुआत रामनवमी से हुई।
 
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तात्या बना धनवान : शिर्डी में सांईंबाबा ने सबसे पहले वाइजाबाई के घर से ही भिक्षा ली थी। वाइजाबाई की एक ही संतान थी जिसका नाम तात्या था। तात्या सांईंबाबा का परम भक्त था। वाइजाबाई ने यह निर्णय कर लिया था कि सांईंबाबा के लिए खाना बनाकर रोज द्वारिका मस्जिद खुद ही जाकर उनको खाना खिलाएगी।
कभी सांईंबाबा उनको बैठे हुए मिल जाते तो कभी उनके लिए माई को घंटों इंतजार करना पड़ता। वे न जाने कहां चले जाते थे? कभी-कभार बहुत देर होने पर वह उन्हें ढूंढने के लिए निकल जाया करती थी।


एक दिन वाइजाबाई उनको ढूंढने के बाद थकी-मांदी जब मस्जिद में पहुंची तो उन्होंने देखा कि बाबा तो उनके धूने पर बैठे हैं। वाइजाबाई को देखकर बाबा बोले- मां मैं तुमको बहुत कष्ट देता हूं... जो बेटा अपनी मां को दुख दे, उससे अभागा और कोई नहीं हो सकता। मैं अब तुम्हें बिलकुल भी कष्ट नहीं दूंगा। जब तक तुम खाना लेकर नहीं आओगी, मैं कहीं नहीं जाऊंगा। 
 
वाइजाबाई ने कहा कि तूने मुझे मां कहा है, तू ही मेरा बेटा है। वाइजाबाई प्रसन्नता से गदगद होकर बोली...। बाबा ने कहा कि तुम ठीक कहती हो मां। मुझ अनाथ, अनाश्रित और अभागे को तुमने पुत्र मानकर मुझ पर बड़ा उपकार किया है। इन रोटियों में जो तुम्हारी ममता है, क्या पता मैं इस ऋण से कभी मुक्त हो पाऊंगा या नहीं?
 
वाइजाबाई ने कहा कि यह कैसी बात कर रहा है बेटा? मां-बेटे का कैसा ऋण? यह तो मेरा कर्तव्य है। कर्तव्य में ऋण कहां? इस तरह की बातें आगे से बिलकुल मत करना...।
 
बाबा ने कहा कि अच्छा-अच्छा नहीं कहूंगा...। फिर अपने दोनों कानों को हाथ लगाकर ‍कहा कि तुम घर जाकर तात्या को भेज देना। वाइजाबाई ने कहा कि तात्या तो लकड़ी बेचने गया है। फिर वाईजाबाई की आपबीती सुकर बाबा की आंखें भर आईं।
 
तात्या अभी थोड़ी सी ही लकड़ी काट पाया था कि आसमान में अचानक बिजली कड़कने लगी। काली-काली घटाएं उमड़ने लगीं। तात्या के चेहरे पर उदासी छा गई। सोचने लगा अब क्या होगा इतनी-सी लकड़ी के तो कोई चार आने भी नहीं देगा, उस पर भी यह भीग गई तो...। घर में एक मुट्ठी भी अनाज नहीं है तो रोटी कैसे बनेगी? मां रात को सांईंबाबा को क्या खिलाएगी? यह सोचकर उसने जल्दी लकड़ी समेटी और गट्ठर बांधा और तेज कदमों से चलने लगा। तभी मूसलधार बारिश होने लगी। उसने और तेजी से कदम बढ़ाना शुरू कर दिए ताकि लकड़ियां ज्यादा न भीगें। तभी एक आवाज सुनाई दी। ...ओ लकड़ी वाले! तात्या के बढ़ते कदम रुक गए...। उसने कहा कि कौन है भाई। और तभी एक आदमी उसके सामने आ खड़ा हुआ। तात्या ने पूछा क्या बात है? अनजान आदमी ने कहा कि लकड़ी बेचोगे। तात्या ने कहा कि हां-हां क्यों नहीं, बेचने के लिए ही तो है।
 
कितने पैसे लोगे इन लकड़ियों के? तात्या ने कहा कि जो मर्जी हो दे देना भाई। वैसे भी लकड़ियां कम और वह भी थोड़ी भीग गई है। ...तो यह लो रुपया रख लो। तात्या उस आदमी को हैरानी से देखने लगा। ऐसे देखने पर खरीददार बोला, कम है तो और ले लो। उस आदमी ने जल्दी से एक रुपया और निकालकर तात्या की ओर बढ़ाया। तात्या बोला- नहीं, नहीं भाई कम नहीं है, यह तो बहुत ज्यादा है। ...तो क्या हुआ आज से तुम यहां मुझे लकड़ियां दे जाया करना, मैं यहीं मिलूंगा। कल हिसाब-किताब बराबर कर लेंगे तथा आज यह रुपया रख लो। तात्या ने कुछ देर सोचा और फिर रुपए रख लिए और जल्दी से गांव की ओर चल दिया। घर पहुंचकर उसने मां के हाथ में रुपए रख दिए। मां की आंखें फटी की फटी रह गईं। वाइजाबाई ने आशंकित होकर पूछा कि  इतने रुपए कहां से लाया? तात्या ने मां को पूरी घटना बता दी तो मां ने कहा कि तूने ठीक नहीं किया बेटा। कल याद रखकर उसे ज्यादा लकड़ियां दे आना। इंसान को अपनी ईमानदारी की कमाई ही खाना चाहिए। अगले दिन तात्या ने ज्यादा लकड़ियां काटी और गट्ठर बनाया और उसे लेकर चल दिया। उसी स्थान पर वह आदमी मिला जिसने तात्या को देखकर कहा कि अरे भाई मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। गट्ठर देखकर आदमी ने कहा कि आज तो तुम ढेर सारी लकड़ियां ले आए? तात्या ने कहा कि कल का हिसाब-किताब भी तो पूरा करना है। कल मैंने आपको कम लकड़ियां दी थीं और ज्यादा पैसे लिए थे। तात्या ने कहा कि अब तक का हिसाब बराबर। ठीक है ना?
 
आदमी ने कहा कि कहां ठीक है तात्याभाई। जिस तरह तुम ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ना चाहते उसी तरह मैंने भी बेईमानी करना नहीं सीखा। उस आदमी ने एक रुपया जेब से निकालकर तात्या के हाथ में रख दिया और कहा कि लो आज तक का हमारा हिसाब बराबर। तात्या ने रुपया लेने से बहुत इंकार किया, लेकिन उस आदमी ने जोर देकर उसे रुपया लेने पर मजबूर कर दिया। तात्या घर की ओर चल दिया तभी रास्ते में याद आया कि अरे वह कुल्हाड़ी तो जंगल में ही भूल आया। तात्या दौड़ा-दौड़ा फिर से जंगल की ओर गया। उसने दूर-दूर तक नजर दौड़ाई लेकिन रास्ते में उसे वह आदमी और इतना भारी गट्ठर कहीं नजर नहीं आया। आखिर वह आदमी इतना भारी गट्ठर लेकर इतनी जल्दी कहां गायब हो गया? आश्चर्य में डूबा तात्या घर लौट आया। घर पहुंचने के बाद तात्या वाइजाबाई के साथ मस्जिद गया। वाइजाबाई ने बाबा और तात्या दोनों को खाना खिलाया। खाना खाते समय तात्या ने लकड़ी खरीदने वाले के बारे में सांईंबाबा को बताया। सांईंबाबा ने कहा कि तात्या इंसान को वही मिलता है, जो उसके भाग्य में लिखा है। इसमें कोई संदेह नहीं ‍कि बिना मेहनत किए धन नहीं मिलता। फिर भी धन प्राप्ति में मनुष्य के कर्मों का बहुत बड़ा योगदान रहता है। चोर, डाकू लूटकर बहुत सारा धन ले जाते हैं, लेकिन फिर भी वे गरीब के गरीब ही बने रहते हैं और जीवन में कई तरह के दु:खों का सामना भी करते रहते हैं। तात्या ने हैरानी से पूछा लेकिन बाबा वह आदमी और लकड़ियों का गट्ठर इतनी जल्दी कहां गायब हो गए? बाबा ने गंभीर होकर कहा कि भगवान के खेल भी बड़े अजब-गजब हैं तात्या। तुम्हें बेवजह परेशान होने की कोई जरूरत नहीं।
 
तात्या ने सांईंबाबा को तत्क्षण देखा और वह उनके चरणों में गिर पड़ा। अचानक सांईंबाबा उठकर खड़े हो गए और बोले- चलो, तात्या घर चलो। सांईंबाबा सीधे वाइजाबाई की कोठरी में पहुंच गए, जहां वाइजाबाई सोती थी। उस कोठरी में एक पलंग पड़ा था। बाबा ने चारों ओर निगाह घुमाकर कहा कि तात्या एक फावड़ा ले आओ। तात्या फावड़ा ले आया। तात्या और वाइजाबाई की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बाबा ने कहा कि तात्या उस पलंग के सिरहाने दाएं-बाएं खोदो। तात्या ने बाबा के आदेश का पालन किया। तात्या ने अभी तीन-चार फावड़े मारे ही थे कि फावड़ा किसी धातु से टकरा गया। कुछ देर बाद तात्या ने मिट्टी हटाकर एक कलश निकालकर सांईंबाबा के सामने रख दिया। बाबा ने कहा कि इसे खोलो तात्या। तात्या ने कलश का ढक्कन हटाकर उसे फर्श पर उलट दिया। देखते ही देखते सोने की अशर्फियां, मूल्यवान जेवर, हीरे आदि फर्श पर बिखर गए। बाबा ने कहा कि  यह तुम्हारे पूर्वजों की संपत्ति है, जो तुम्हारे भाग्य में ही लिखी थी। इसे संभालकर रखो और समझदारी से खर्च करना। वाइजाबाई और तात्या की आंखों में आंसुओं की धारा फूट पड़ी।
 
वाइजाबाई ने कहा कि बेटा हम यह सब रखकर क्या करेंगे? हमारे लिए तो सुख की सूखी रोटी ही अच्छी है। आप ही रखिए और मस्जिद के काम में लगा दीजिए। सांईंबाबा ने कहा कि नहीं यह सब तुम्हारे भाग्य में था। इसका इस्तेमाल तुमको ही करना है। सांईंबाबा के जोर देने पर वाइजाबाई ने कलश रख लिया।
 
अगले पन्ने पर चौथा चमत्कार...
 

दामोदर को सांप ने काटा : दामोदर को सांप के काटने और सांईंबाबा द्वारा किसी भी प्रकार के तंत्र, मंत्र, दवा, औ‍षधि आदि के बगैर उसके शरीर से जहर का बूंद-बूंद बाहर टपका देने की चर्चा सारे गांव में हो रही थी। लोगों ने द्वारिका माई मस्जिद में आकर सांईंबाबा को उनके कंधों पर उठा लिया और उनकी जय-जयकार करने लगे। सभी छोटे-बड़े आदि पुरुष सांईंबाबा को गांव में घुमाने लगे।
नई मस्जिद के मौलवी ने कहा कि मैंने तो पहले ही कह दिया था कि यह कोई साधारण पुरुष नहीं है। यह तो फरिश्ता है। शिर्डी का सौभाग्य है कि ये यहां पर आ गए।
 
सभी उपस्थित व्यक्ति एक स्वर में बोले, हां-हां हम तो सांईंबाबा का जुलूस निकालेंगे। फिर उसके बाद सभी जुलूस निकालने की तैयारी करने लगे। यह देखकर गांव के पंडित को बहुत दुख होने लगा। पूरे गांव में वे ही एक पंडित थे, जो नए मंदिर के साथ-साथ पुजारी, वैद्य और पुरोहिताई का कार्य भी किया करते थे। इसमें उनको सांईंबाबा की कुछ चाल नजर आ रही थी। सांईंबाबा एक चमत्कारिक पुरुष है, पंडित इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था। पंडितजी गांव की चौपाल पर गए और वहां बैठे लोगों से बोले, यह गांव ही मूर्खों से भरा है। वह कल का मामूली छोकरा सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है? कई जन्म ‍बीत जाते हैं साधना करते हुए तब कहीं सिद्धि प्राप्त होती है। नाग का जहर तो कोई भी सपेरा उतार सकता है, यह तो मात्र सपेरा है। 
 
एक व्यक्ति ने कहा कि आप ठीक कहते हैं पंडितजी। एक 15-16 वर्ष का छोकरा है और गांव वालों ने उसको सिद्धपुरुष बना दिया और उसका नाम रख दिया सांईंबाबा। इस नाम का क्या अर्थ होता है पंडितजी? पंडितजी ने कहा कि उससे ही जाकर पूछो जिसने इसका नाम रखा है। फिर पंडितजी ने कहा कि जाओ, पुरानी मस्जिद में देखकर आओ वहां पर क्या हो रहा है। तभी ढोल-ढमाके आदि की आवाज सुनकर पंडितजी चौंक गए। उन्होंने देखा सामने से सांईंबाबा की शोभायात्रा जय-जयकारे के साथ आ रही थी। एक पालकी में सांईंबाबा विराजमान थे। पंडितजी यह देखकर हैरान थे। दामोदर और उनके साथियों ने पालकी अपने कंधे पर उठा रखी थी। उनके साथ गांव की कई महिलाएं भी थीं। 
 
यह देखकर पंडितजी आपा खो बैठे और वे गला फाड़कर चिल्लाने लगे- सत्यानाश हो! ये ब्राह्मण के लड़के भी इस सपेरे के बहकावे में आ गए। अरे... ये बहुत बड़ा जादूगर है, कोई सिद्धपुरुष नहीं। नौजवानों को इसने अपने वश में कर रखा है। एक दिन ये सभी भी इसी की तरह शैतान बन जाएंगे।
 
सांईंबाबा की पालकी में भीड़ बढ़ती जा रही थी और ग्रामवासी नाचते-गाते, झांझ-मंजीरा बजाते हुए आगे निकल गए। महिलाएं अपने-अपने घरों से सांईंबाबा का स्वागत कर रही थीं। यह देखकर पंडित और जलभुन गया और पैर पटकता हुआ अपने घर में जाकर लेट गया। 
 
अगले पन्ने पर सांईंबाबा का पांचवां चमत्कार...
 

जेब में पैसा : एक बार एक बूढ़ा रोता हुआ सांईंबाबा के पास आया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। सांईंबाबा के एक शिष्य ने पूछा कि  क्या हुआ।
 
बुढ़े व्यक्ति ने कहा कि मेरा जवान लड़का मर गया है। मेरे पास उसके कफन-दफन के लिए एक भी पैसा नहीं है। सांईंबाबा ने उसकी ओर देखा और पूछा कि  कब मरा लड़का। 
 
उनके कहा कि आज दोपहर को। मैं कई जगह गया लेकिन किसी ने भी मेरी मदद नहीं की। 
 
सांईंबाबा ने हंसते हुए कहा कि जब तुम्हारे पास स्वयं ही इतने सारे रुपए हैं तो कोई तुम्हारी मदद क्यों करेगा। बूढ़े व्यक्ति ने गिड़गिड़ाकर कहा कि बाबा मेरे पास तो इस समय फूटी कौड़ी तक नहीं। सांईंबाबा ने कहा कि झूठ बोलते हो।
 
सांईंबाबा ने कहा कि अपनी जेब में हाथ डालो। वहां पैसा ही पैसा भरा पड़ा है। जब उस बूढ़े ने जेब में हाथ डाला तो अचानक ढेर सारे नोट निकल आए। वह हैरानी से देखता रह गया। आश्चर्य के मारे उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
 
बाबा ने कहा कि अब जाओ और अपना काम करो। वह बूढ़ा सांईंबाबा की जय-जयकार करते हुए चला गया। सांईंबाबा का एक और चमत्कार देखकर उनके सारे शिष्य भी जय-जयकार करने लगे। 
 
अगले पन्ने पर सांईंबाबा का छठा चमत्कार...
 

डॉक्टर के साथ चमत्कार : जिसकी जैसी भावना होती है, ईश्वर के दर्शन वैसे ही होते हैं। एक बार एक डॉक्टर किसी सांईंभक्त मामलदार के साथ शिर्डी इस शर्त पर आए कि वे श्री सांईंबाबा के आगे शीश नहीं झुकाएंगे, क्योंकि उनके ईष्ट देवता श्रीराम हैं। श्रीराम के अतिरिक्त वे किसी के आगे शीश नहीं झुकाते। 
 
दोनों किसी तरह शिर्डी पहुंचे और बाबा के दर्शन के लिए द्वारिकामाई मस्जिद गए। मामलदार को अपने डॉक्टर मित्र को आगे-आगे जाते देख और बाबा की चरण वंदना करते देख बड़ा आश्चर्य हुआ। सब लोग भी आश्चर्यचकित थे।
 
बाद में जब डॉक्टर से पूछा गया कि आपने अपना निर्णय एकाएक कैसे बदल दिया। तब डॉक्टर ने बताया कि बाबा के स्थान पर उन्हें उनके ईष्ट प्रभु श्रीराम खड़े दिखलाई दिए थे इसीलिए उन्होंने उनको नमस्कार किया था। जब डॉक्टर ऐसा कह रहे थे तब उनके सामने श्री सांईंबाबा खड़े मुस्करा रहे थे। तत्क्षण ही श्री सांईंबाबा को देख डॉक्टर आश्चर्यचकित होकर कहने लगे, कहीं यह स्वप्न तो नहीं। आखिर ये सांईंबाबा कैसे हो सकते हैं? अभी तो यहां प्रभु श्रीराम खड़े थे। अरे... ये तो पूर्ण योगावतार हैं। 
 
डॉक्टर ने अगले दिन से ही उपवास करना प्रारंभ कर दिया और मन ही मन कहा कि जब तक बाबा स्वयं उनको बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे तब तक वे मस्जिद नहीं जाएंगे। प्रण किए तीन दिन बीत गए। चौथे डॉक्टर के एक मित्र खानदेश से आए और डॉक्टर अपने मित्र के साथ सांईंबाबा के दर्शन करने मस्जिद गए।
 
दोनों ने बाबा को नमस्कार किया। तब बाबा ने डॉक्टर से पूछा कि आपको किसने बुलाया था? आप यहां कैसे पधारे? बाबा के प्रश्नों को सुनकर डॉक्टर का हृदय पिघल गया। उसी रात बाबा ने डॉक्टर पर कृपादृष्टि की, तो डॉक्टर को शयनावस्था में परम आनंद की अनुभूति हुई। बाद में श्री सांईंबाबा के प्रति डॉक्टर की भक्ति प्रगाढ़ हो गई।
 
अगले पन्ने पर सांईंबाबा का सातवां चमत्कार...
 

संकट मोचन : एक दिन गांव में भयंकर आंधी चली। आसमान काले बादलों से घिर गया। बिजली बड़े जोर से कड़कने लगी। सभी लोग इधर-उधर भागने लगे। मूसलधार बारिश भी शुरू हो गई। सब लोग मस्जिद में इकट्ठा हो गए और उन्होंने बचाव के लिए बाबा से प्रार्थना की। भयाक्रांत लोगों को देखकर बाबा के मन में दया आ गई।
 
वे तुरंत ही मस्जिद से बाहर आकर आसमान की ओर देखकर जोर-जोर से गरजने लगे। बाबा की आवाज चारों तरफ गूंज उठी। मंदिर और मस्जिद दोनों कांप उठे। लोगों ने कानों में अंगुलियां डाल लीं। वहां उपस्थित सभी गांववासी बाबा का यह अनोखा स्वरूप देखकर दंग रह गए। 
 
बाबा की गूंज के साथ थोड़ी ही देर में हवा का जोर कम हो गया। बारिश का शोर भी थम गया। कुछ देर बाद ह काली घटाएं भी छंटने लगीं। आसमान में तारों के साथ चांद भी चमकने लगा। पशु और पक्षी भी अपने-अपने घरौंदे की ओर लौटने लगे। सभी गांववासी भी अपने घर लौट गए। 
 
अगले पन्ने पर आठवां चमत्कार...
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भड़क उठी ज्वाला : एक दिन बाबा के धूने की अग्नि भड़क गई और उसकी लपटें इतनी ऊपर तक होने लगीं कि लगा कि अब इस लपट से मस्जिद जलकर राख हो जाएगी। कुछ देर बाद भक्तों की बढ़ती हुई बेचैनी को देखते हुए बाबा ने अपना चिमटा उठाया और धूनी के पास वाले खंभे पर जोरदार प्रहार करते हुए बोले... शांत हो जाओ। ...इस तरह हर प्रहार के साथ अग्नि की लपटें धीमी होती गईं।
 
कुछ देर बाद वह सामान्य दिनों की तरह ही जलने लगी। इस तरह लोगों के मन का डर भी शांत हो गया।
 
अगले पन्ने पर नौवां चमत्कार...
 

पटना की रहने वाली रागिनी लंबे समय से परेशान चल रही थीं। उनके घर में रोज कोहराम मचता था। रागिनी का कहना है कि ऐसा लगता था कि मानो अपने ही परिवार में लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करें।
 
sai baba
तभी किसी ने रागिनी को सांईंबाबा की शरण में जाने को कहा। रागिनी को एक मिनट के लिए लगा कि ऐसी हालत में कोई क्या कर सकता है? पहले तो उन्होंने सलाह मानने से इंकार कर दिया। बाद में रागिनी को लगा कि एक बार सांईं का दर्शन करने में क्या दिक्कत है।
 
रागिनी बाबा के दर्शन के लिए शिर्डी पहुंच गईं। फिर क्या था। बाबा ने रागिनी को अपनी शरण में ले लिया।
 
शिर्डी में बाबा ने रागिनी को साक्षात दर्शन दिया। बाबा ने उन्हें घर जाने की सलाह दी। रागिनी जब वापस पटना लौटीं तो उन्होंने सांईंबाबा की फोटो लगाकर पूजा करनी शुरू कर दी।
 
लगभग एक साल बाद रागिनी ने सांईंबाबा की एक मूर्ति स्थापित की। धीरे-धीरे आस-पास के लोगों को सांईंबाबा के चमत्कार का पता चला। लोगों ने सांईंबाबा की पूजा करनी शुरू कर दी। देखते ही देखते बाबा के दर्शन के लिए मंदिर में भीड़ बढ़ने लगी। रागिनी को लगा कि उनकी मेहनत सफल रही। बाबा की भक्ति रास आई।
 
जब लोग इस मंदिर में अपना दु:ख-दर्द लेकर पहुंचने लगे तो उनके साथ भी चमत्कार होना शुरू हो गया। इसीलिए कहते हैं कि बाबा को मन से साधो, उनकी कृपा जरूर होगी। 
 
अगले पन्ने पर दसवां चमत्कार...
 

कहते हैं कि बाबा अपने भक्तों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वे अपने भक्तों की पुकार सुनकर दौड़े चले आते हैं। सांईं का भक्त कहीं भी रहता हो बाबा उसकी मदद करने के लिए तत्काल ही उपलब्ध हो जाते हैं।
सांईंबाबा की देह क्षीण हो रही थी, लेकिन उनके चेहरे का तेज यथावत था। 15 अक्टूबर, 1918 को विजयादशमी के दिन उनके एक भक्त तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि सबको लगा कि वह अब नहीं बचेगा, लेकिन दोपहर 2.30 बजे तात्या के स्थान पर बाबा नश्वर देह को त्यागकर ब्रह्मलीन हो गए और उनकी कृपा से तात्या बच गया। सांईं राम...!
 
बाबा के चले जाने के बाद भी उनके भक्तों को बाबा के होने की अनुभूति होती रहती है। यदि आप बाबा के प्रति भक्त‍ि रखते हैं तो बाबा आपको इस बात की सूचना तुरंत ही दे देंगे कि 'मैं भी तुम्हारी ओर देख रहा हूं।