अगले पन्ने पर सीता का संघर्षमय जीवन...
सीता के अपहरण के कारण... अगले पन्ने पर...
कालांतर में कैकेयी के दशरथ से वर मांग लेने पर सीता और लक्ष्मण सहित राम 14 वर्ष के वनवास के लिए चले गए। वन में रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। फलस्वरूप राम- रावण युद्ध हुआ।
राम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा, 'सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है।'
रावण ने खर और दूषण के साथ दंडकारण्य में पहुंचकर पुष्पक विमान से ही सीता को गुपचुप तरीके से देखा तो वो मुग्ध हो गया। तब रावण ने अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना बनाई। मारीच का सोने के हिरण का रूप धारण करके राम व लक्ष्मण को वन में ले जाने और उनकी अनुपस्थिति में रावण द्वारा सीता का अपहरण करने की योजना थी।
इस पर जब राम स्वर्ण हिरण के पीछे वन में चले गए, तब लक्ष्मण सीता के पास थे लेकिन बहुत देर होने के बाद भी जब राम नहीं आए तो सीता माता को चिंता होने लगी, तब उन्होंने लक्ष्मण को भेजा। राम और लक्ष्मण की अनुपस्थिति में रावण सीता का अपहरण करके ले उड़ा। अपहरण के बाद आकाश मार्ग से जाते समय पक्षीराज जटायु के रोकने पर रावण ने उसके पंख काट दिए।
अशोक वाटिका में सीता, अगले पन्ने पर...
रावण ने सीता को लंकानगरी के अशोक वाटिका में रखा और त्रिजटा के नेतृत्व में कुछ राक्षसियों को उसकी देखरेख का भार सौंप दिया। सभी राक्षसनियां सीता माता को डराती रहती थीं और रावण से विवाह करने के लिए उकसाती रहती थीं
सीता की अशोक वाटिका, देखें वीडियो
सीता 2 वर्ष तक रावण की अशोक वाटिका में बंधक बनकर रही लेकिन इस दौरान रावण ने सीता को छुआ तक नहीं। इसका कारण था कि रावण को स्वर्ग की अप्सरा ने यह शाप दिया था कि जब भी तुम किसी ऐसे स्त्री से प्रणय करोगे, जो तुम्हें नहीं चाहती है तो तुम तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। अत: रावण किसी भी स्त्री की इच्छा के बगैर उससे प्रणय नहीं कर सकता था।
श्रीलंका में अशोक वाटिका : अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे 'सीता एलिया' नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है।
अगले पन्ने पर जब मेघनाद ने सीता को मार दिया...
माना जाता है कि रणक्षेत्र में वानर-सेना तथा राम-लक्ष्मण में भय और निराशा फैलाने के लिए रावण के पुत्र मेघनाद ने अपनी शक्ति से एक मायावी सीता की रचना की, जो सीता की भांति ही नजर आ रही थीं। मेघनाद ने उस मायावी सीता को अपने रथ के सामने बैठाकर रणक्षेत्र में घूमाना प्रारंभ किया। वानरों ने उसे सीता समझकर प्रहार नहीं किया।
बाद में मेघनाद ने मायावी सीता के बालों को पकड़कर खींचा तथा सभी के सामने उसने उसके दो टुकड़े कर कर दिए। यह दृश्य देखकर वानर सेना में निराशा फैल गई। सभी सोचने लगे कि जिस सीता के लिए युद्ध कर रहे हैं वह तो मारी गई अब युद्ध करने का क्या फायदा? राम ने सीता की मृत्यु का समाचार सुना तो वे भी अचेत हो गए। चारों ओर फैला खून देखकर सब लोग शोकाकुल हो उठे। यह देखकर मेघनाद निकुंभिला देवी के स्थान पर जाकर हवन करने लगा।
जब राम की चेतना लौटी तो लक्ष्मण और हनुमान ने उन्हें अनेक प्रकार से समझाया तथा विभीषण ने कहा कि 'रावण कभी भी सीता को मारने की आज्ञा नहीं दे सकता, अत: यह निश्चय ही मेघनाद की माया का प्रदर्शन है। आप निश्चिंत रहिए।' बाद में कुछ दिन युद्ध और चला और अंतत: रावण मारा गया।
आखिर सीता को क्यों देना पड़ी अग्नि परीक्षा... अगले पन्ने पर...
राम जब सीता को रावण के पास से छुड़वाकर अयोध्या ले आए तो उनके राज्याभिषेक के कुछ समय बाद मंत्रियों और दुर्मुख नामक एक गुप्तचर के मुंह से राम ने जाना कि प्रजाजन सीता की पवित्रता के विषय में संदिग्ध है अत: सीता और राम को लेकर अनेक मनमानी बातें बनाई जा रही हैं। उस वक्त सीता गर्भवती थीं।
राम और अन्य से सीता से कहा कि समाज में बातें बनाई जा रही हैं। सभी कहते हैं कि अग्निपरीक्षा देगा पड़ेगी। माना जाता है कि राम और समाज द्वारा संदेह किए जाने के कारण सीता ने ग्लानि, अपमान और दु:ख से विचलित होकर चिता तैयार करने की आज्ञा दी।
सीता ने यह कहा- 'यदि मन, वचन और कर्म से मैंने सदैव राम को ही स्मरण किया है तथा रावण जिस शरीर को उठाकर ले गया था, वह अवश था, तब अग्निदेव मेरी रक्षा करें।' और जलती हुई चिता में प्रवेश किया। अग्निदेव ने प्रत्यक्ष रूप धारण करके सीता को गोद में उठाकर राम के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे हर प्रकार से पवित्र हैं। अब सवाल यह उठता है कि उपरोक्त कथा कहां तक सच है। जानेंगे अगले पन्नों पर। पढ़ते रहिए।
अग्नि परीक्षा के बाद क्या राम ने सीता को अपनाया, लेकिन...
अग्नि परीक्षा के बाद राम ने प्रसन्न भाव से सीता को ग्रहण किया और उपस्थित समुदाय से कहा कि उन्होंने लोक निंदा के भय से सीता को ग्रहण नहीं किया था। किंतु अब अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद यह सिद्ध होता है कि सीता पवित्र है तो अब किसी को इसमें संशय नहीं होना चाहिए।
लेकिन इस अग्नि परीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम ने सीता को छोड़ने का मन बनाया। सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं।
लक्ष्मण ने तपोवन में पहुंचकर अत्यंत उद्विग्न मन से सीता से कहा- 'माते, में आपको अब यहां से वापस नहीं ले जा सकता, क्योंकि यही आज्ञा है।' ऐसा कहकर लक्ष्मण ने सब कुछ कह सुनाया और लौट आए। तपोवन में सीता को वाल्मीकि ने अपने आश्रम में स्थान दिया। उसी आश्रम में सीता ने लव और कुश नामक पुत्रों को जन्म दिया। बालकों का लालन-पालन भी आश्रम में ही हुआ। लेकिन क्या यह सच है? अगले पन्ने पर इसका खुलासा होगा।
अगले पन्ने पर क्या सचमुच छोड़ दिया था राम दे सीता को...