जावा द्वीप में मिला प्राचीन स्फटिक शिवलिंग, भरा है अमृत!!
भारतीय हिन्दु धर्म बेहद प्राचीन माना जाता है और यह न केवल भारत बल्कि एशिया के एक बड़े भूभाग में फैला हुआ था। पूर्वी एशिया में बसे द्वीपों में शिव को मानने वाली जन जातियां और राज्य हुए हैं। इसका एक और प्रमाण मिला है इंडोनेशिया में, जहां सदियों पुराने एक हिन्दू मंदिर के अवशेषों में छुपाया हुआ एक प्राचीन शिवलिंग मिला है। यह शिवलिंग स्फटिक (क्रिस्टल) से बना है और इसमें पानी जैसा कोई दृव्य भरा है।
सबसे आश्चर्य की बात है कि इसके अंदर भरा हुआ पानी सदियां बीत जाने पर भी नहीं सूखा है। जावा द्वीप के लोगों की मान्यता है कि यह पानी नहीं बल्कि अमृत है। पुरातत्वविद कहते हैं कि इस बर्तन में न सूखने वाले पानी के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी हो सकता है, लेकिन
स्थानीय लोगों का कहना है कि ये अमृत ही है, कई विद्वान इसे समुद्र में किए अमृत मंथन से निकला अमृत बता रहे हैं।
इस मंदिर में भीम, अर्जुन की प्रतिमाओं के साथ शिव की पूजा करती हुई श्रीगणेश की कलाकृतियां देखी जा सकती हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक है कंडी सुकुह (Candi Sukuh), जिसका काफी हिस्सा ध्वस्त हो चुका है। यह मंदिर मुख्य जावा आइलैंड के बीच में स्थित है। ये इस्लाम के प्रभाव से पूर्व बना अंतिम मंदिर है। इसमें भगवान शिव और महाभारत काल से जुड़ी कई कलाकृतियां मौजूद हैं। भीम, अर्जुन और शिव की पूजा करती हुई श्रीगणेश की कई कलाकृतियां होने के कारण ये मंदिर काफी महत्वपूर्ण है।
कैसे पता चला इस प्राचीन शिवलिंग का: इस मंदिर में मिली अधिकतर कलाकृतियों को इंडोनेशिया के राष्ट्रीय संग्रहालय में शिफ्ट कर दिया गया है, क्योंकि वे बेशकीमती हैं. इनमें से एक 1.82 मीटर का शिवलिंग भी है। यहां की सरकार ने सभी कलाकृतियों के पुनर्संग्रहण के आदेश दिए, जिसके बाद कुछ नई कलाकृतियां भी दुनिया के सामने आईं. इनमें से एक है ये बेहद ही सुन्दर क्रिस्टल शिवलिंग, जो एक पीतल के बर्तन के भीतर सुरक्षित रखा गया था। अचरज की बात ये है कि इस बर्तन में जो पानी भरा हुआ था, वो इतनी सदियां बीत जाने के बाद भी सूखा नहीं।
आखिर क्या है रहस्य इस प्राचीन शिवलिंग का.. आगे....
कंडी सुकुह मंदिर के पुनर्संरक्षण इकाई के मुखिया डैनी वजाहु हिदादत कहते है कि वाकई आश्चर्य वाली बात है कि सैकड़ों सालों से पीतल के बर्तन में रखा हुआ पानी अब भी नहीं सूखा है।
दरअसल जिस बर्तन में ये शिवलिंग पाया गया है, वो उन कई जारों में से एक है, जो मंदिर के अंदर बने एक स्मारक के नीचे छुपाकर रखे गए थे। पुरातत्वविदों के अनुसार, ये कलाकृतियां 15वीं सदी की हैं, जब जावा में इस्लाम का प्रभुत्व था और शायद इसीलिए इन्हें इतना छुपाकर रखा गया था।
गौरतलब है कि मुस्लिम प्रधान देश इंडोनेशिया में 13वीं से 16वीं शताब्दी के बीच इंडोनेशिया में हिन्दू धर्म का लंबा इतिहास रहा है।इंडोनेशिया में अभी भी अक्सर पुराने मंदिरों के अवशेष मिलते हैं। इस्लाम के बढ़ते प्रभाव के बाद वहां मंदिरों का बनना कम हो गया थे। इसके साथ ही मध्य इस्लामिक काल में कई मंदिर क्षतिग्रस्त भी हो गए या कर दिए गए थे।