गुरुवार, 21 नवंबर 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी

प्राचीन भारत के इन छह युद्धों ने बदल दिया था विश्व का इतिहास

प्राचीन भारत के इन छह युद्धों ने बदल दिया था विश्व का इतिहास | ancient indian war history
प्राचीन भारत में यूं तो कई युद्ध हुए लेकिन छह युद्ध ऐसे थे जिन्होंने संपूर्ण धरती को चपेट में ले लिया था। देखा जाए तो यह युद्ध विश्व की अन्य संस्कृति और धर्मों के इतिहास में किसी न किसी रूप में आज भी दर्ज है। तो आओ जानते हैं प्राचीन भारत के वे छह प्रमुख युद्ध।
 
 
1.इंद्र और वृत्तासुर युद्ध : जम्बूद्वीप के इलावर्त क्षे‍त्र में 12 बार देवासुर संग्राम हुआ। अंतिम बार हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद के पुत्र राजा बलि के साथ इंद्र का युद्ध हुआ और देवता हार गए तब संपूर्ण जम्बूद्वीप पर असुरों का राज हो गया। इस जम्बूद्वीप के बीच के स्थान में था इलावर्त राज्य। देवासुर संग्रामों का परिणाम यह रहा कि असुरों और सुरों ने धरती पर भिन्न-भिन्न संस्कृतियों और धर्मों को जन्म दिया और धरती को आपस में बांट लिया। इन संघर्षों में देवता हमेशा कमजोर ही सिद्ध हुए और असुर ताकतवर।
 
 
यह सतयुग की बात है जब कालकेय नाम के एक राक्षस का संपूर्ण धरती पर आतंक था। वह वत्रासुर के अधीन रहता था। दोनों से त्रस्त होकर सभी देवताओं ने मिलकर सोचा वृत्रासुर का वध करना अब जरूरी हो गया। इस वृत्तासुर के वध के लिए ही दधीचि ऋषि की हड्डियों से एक हथियार बनाया जिसका नाम वज्र था। वृत्रासुर एक शक्तिशाली असुर था जिसने आर्यों के नगरों पर कई बार आक्रमण करके उनकी नाक में दम कर रखा था। अंत में इन्द्र ने मोर्चा संभाला और उससे उनका घोर युद्ध हुआ जिसमें वृत्रासुर का वध हुआ। इन्द्र के इस वीरतापूर्ण कार्य के कारण चारों ओर उनकी जय-जयकार और प्रशंसा होने लगी थी।
 
 
शोधकर्ता मानते हैं कि वृत्रासुर का मूल नाम वृत्र ही था, जो संभवतः असीरिया का अधिपति था। पारसियों की अवेस्ता में भी उसका उल्लेख मिलता है। वृत्र ने आर्यों पर आक्रमण किया था तथा उन्हें पराजित करने के लिए उसने अद्विशूर नामक देवी की उपासना की थी। इन्द्र और वृत्रासुर के इस युद्ध का सभी संस्कृतियों और सभ्यताओं पर गहरा असर पड़ा था। तभी तो होमर के इलियड के ट्राय-युद्ध और यूनान के जियॅस और अपोलो नामक देवताओं की कथाएं इससे मिलती-जुलती हैं। इससे पता चलता है कि तत्कालीन विश्व पर इन्द्र-वृत्र युद्ध का कितना व्यापक प्रभाव पड़ा था।
 
 
2.हैहय-परशुराम युद्ध : भगवान राम के जन्म से सैकड़ों वर्ष पूर्व हैहय वंश के लोगों का परशुराम से युद्ध हुआ था। यह भारत के ज्ञात इतिहास का तीसरा सबसे बड़ा युद्ध था। जमदग्नि परशुराम का जन्म हरिशचन्द्रकालीन विश्वामित्र से एक-दो पीढ़ी बाद का माना जाता है। यह समय प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में 'अष्टादश परिवर्तन युग' के नाम से जाना गया है।
 
इस युग में एक और जहां उत्तर में वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच संघर्ष चल रहा था तो पश्चिम में हैहयों और भार्गवों के बीच युद्ध की स्थिति बनी हुई थी। अयोध्या में सत्यव्रत नामक राजा त्रिशुंक सबसे शक्तिशाली राजा था तो दूसरी ओर आनर्त (गुजरात) में कार्तवीर्य की दुदुंभि बज रही थी।
 
 
माना जाता है कि परशुराम के नेतृत्व में आनर्त (गुजरात) के हैहय राजवंश के विरुद्ध यह युद्ध सत्ययुग अर्थात कृतयुग के अंत में लड़ा गया। हैहयों से हुए इस महासंग्राम में परशुराम ने हैहयों को एक के बाद एक 21 बार पराजित किया। परशुराम भृगुवंश से थे और परंपरागत रूप से नर्मदा (नैमिषारण्य) के किनारे रहा करते थे। आपको यह बताना जरूरी है कि राम के काल में जो परशुराम थे वे दूसरे थे और महाभारत काल में जो परशुराम थे वे तीसरे थे।
 
 
3.राम-रावण युद्ध : राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे तो रावण लंका का राजा था। राम के जन्म को हुए 7,128 वर्ष हो चुके हैं। राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5,114 ईस्वी पूर्व हुआ था। राम और रावण का युद्ध 5076 ईसा पूर्व हुआ था यानी आज से 7090 वर्ष पूर्व। तब भगवान राम 38 वर्ष के थे। यह युद्ध 72 दिन चला था। राम और रावण युद्ध की छाप संपूर्ण दक्षिण एशिया के देश और शहरों में देखी जा सकती है। मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम और लागोस में तो इससे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

 
4.दशराज युद्ध : दाशराज्ञ का युद्ध भारत के आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के बीच हुआ था। दसराज्य युद्ध त्रेतायुग के अंत में लड़ा गया। माना जाता है कि राम-रावण युद्ध के 150 वर्ष बाद यह युद्ध हुआ था। हलांकि इसके समय को लेकर मतभेद है। इस युद्ध का वर्णन दुनिया के हर देश और वहां की संस्कृति में आज भी विद्यमान हैं। इसे बैटल ऑफ टेन किंग कहा जाता है। ऋग्वेद के सातवें मंडल में इस युद्ध का वर्णन है। इतिहासकारों के अनुसार यह युद्ध आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब में परुष्णि नदी (रावी नदी) के पास लगभग 5200 ईसा पूर्व हुआ था। अर्थात राम और रावण युद्ध के पूर्व यह युद्ध लड़ा गया था।
 
इस युद्ध में जहां एक ओर पुरु नामक आर्य समुदाय के योद्धा थे, तो दूसरी ओर 'तृत्सु' नामक समुदाय के योद्धा युद्ध लड़ रहे थे। दोनों ही हिन्द-आर्यों के 'भरत' नामक समुदाय से संबंध रखते थे। हालांकि पुरुओं के नेतृत्व में से कुछ को अनार्य माना जाता था। तुत्सु समुदाय का नेतृत्व राजा सुदास ने किया। सुदास दिवोदास के पुत्र थे, जो स्वयं सृंजय के पुत्र थे। सृंजय के पिता का नाम देवव्रत था। सुदास के युद्ध में सलाहकार ऋषि वशिष्ठ थे। सुदास के विरुद्ध दस राजा युद्ध लड़ रहे थे जिनका नेतृत्व पुरु कबीले के राजा संवरण कर रहे थे। जिनके सैन्य सलाहकार ऋषि विश्वामित्र थे। यह लड़ाई भी सत्ता और विचारधारा की लड़ाई थी। 
 
ऋग्वेद का सुविख्यात नायक सुदास भारतों का नेता था और पुरोहित वसिष्ठ उसके सहायक थे। इनके शत्रु थे, पांच प्रमुख जनजातियां-, अनु, द्रुह्यु, यदु, तुर्वशस् और पुरु तथा पांच गौण जनजातियां- अलिन, पक्थ, भलानस्, शिव और विषाणिन के दस राजा। विरोधी गुट के सूत्रधार ऋषि विश्वामित्र थे और उसका नेतृत्व पुरुओं ने किया था। ऋग्वेद में दासराज युद्ध को एक दुर्भाग्यशाली घटना कहा गया है। इस युद्ध में इंद्र और वशिष्ट की संयुक्त सेना के हाथों विश्‍वामित्र की सेना को पराजय का मुंह देखना पड़ा।
 
 
5.महाभारत युद्ध : कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच आज से 5000 वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध हुआ था। 18 दिन तक चले इस युद्ध में भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5121 वर्ष पूर्व) हुआ। महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। इस युद्ध का सबसे भयानक परिणाम हुआ। धर्म और संस्कृति का लगभग नाश हो गया। लाखों लोग मारे गए, उसी तरह लाखों महिलाएं विधवाएं हो गईं और उतने ही अनाथ।
 
 
6.सिकंदर और पोरस युद्ध : पोरस के राज्य के आसपास दो छोटे राज्य थे तक्षशिला और अम्भिसार। तक्षशिला, जहां का राजा अम्भी था और अम्भिसार का राज्य कश्मीर के चारों ओर फैला हुआ था। अम्भी का पुरु से पुराना बैर था इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया। अम्भिसार ने तटस्थ रहकर सिकंदर की राह आसान कर दी। दूसरी ओर धनानंद का राज्य था वह भी तटस्थ था।
 
पोरस से पहले युद्ध में सिकंदर को हार का मुंह देखना पड़ा। पोरस से दूसरे युद्ध में पोरस का पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ। फिर पोरस से तीसरा युद्ध हुआ जिसमें भी सिकंदर को हार का सामना करने पड़ा। अतः उसने युद्ध बंद करने की पुरु से प्रार्थना की। इसके पश्चात संधि पर हस्ताक्षर हुए। अंतत: इतिहास में दर्ज सिर्फ उस युद्ध की ही चर्चा होती है जिसमें पुरुवास (पोरस) हार गए थे। स्पष्ट रूप से पता चलता है कि सिकंदर भारत के एक भी राज्य को नहीं जीत पाया। फिर भी उसे महान माना जाता है जबकि चंद्रगुप्त मौर्य ने उसके सेनापति सेल्युकस को हराकर बंधक बना लिया था।
 
 
संदर्भ :
*ऋग्वेद, महाभारत और पुराण।
*पुस्तक भारतीय पुरातत्व और प्रागैतिहासिक संस्कृतियां, लेखक डॉ. शिवस्वरूप सहाय।
*पुस्तक विश्वामित्र, लेखक बृजेश के बर्मन