vikram utsav 2024 ujjain Raja vikramaditya ki kahani: विक्रमोत्सव 2024: उज्जैन के राजा विक्रमादित्य इस भारत देश के महान चक्रवर्ती सम्राट थे। उन्होंने संपूर्ण भारत पर एकछत्र राज्य किया था। उनके जैसा राजा इसके बाद कभी नहीं हुआ। वे बहुत ही न्यायप्रिय और वीर योद्धा थे। उनके की ख्याति रोमन, यूनान और अरब साम्राज्य तक फैली हुई थी। उनके दौर में भारत विश्व का केंद्र था। आओ जानते हैं उनकी 5 अनसुनी बातें।
				  																	
									  				  
	1. विक्रमादित्य का सही काल : विक्रम संवत अनुसार अवंतिका (उज्जैन) के महाराजाधिराज महान सम्राट विक्रमादित्य आज से (2024 से) 2295 वर्ष पूर्व हुए थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया।-(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)। कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार 14 ई. के आसपास कश्मीर में अंध्र युधिष्ठिर वंश के राजा हिरण्य के नि:संतान मर जाने पर अराजकता फैल गई थी। जिसको देखकर वहां के मंत्रियों की सलाह से उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मातृगुप्त को कश्मीर का राज्य संभालने के लिए भेजा था। नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है।
				  						
						
																							
									  
	 
	2. विक्रमादित्य का परिवार : विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे। उनके पिता को महेंद्रादित्य भी कहते थे। उनके और भी नाम थे जैसे गर्द भिल्ल, गदर्भवेष। विक्रम की माता का नाम सौम्यदर्शना था जिन्हें वीरमती और मदनरेखा भी कहते थे। उनकी एक बहन थी जिसे मैनावती कहते थे। उनकी पांच पत्नियां थी, मलयावती, मदनलेखा, पद्मिनी, चेल्ल और चिल्लमहादेवी। उनकी दो पुत्र विक्रमचरित और विनयपाल और दो पुत्रियां प्रियंगुमंजरी (विद्योत्तमा) और वसुंधरा थीं। गोपीचंद नाम का उनका एक भानजा था। प्रमुख मित्रों में भट्टमात्र का नाम आता है। राज पुरोहित त्रिविक्रम और वसुमित्र थे। मंत्री भट्टि और बहसिंधु थे। सेनापति विक्रमशक्ति और चंद्र थे।
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  				  																	
									  
	3. विक्रमादित्य के नवरत्न : विक्रामादित्य के दरबार में नवरत्न रहते थे। कहना चाहिए कि नौ रत्न रखने की परंपरा का प्रारंभ उन्होंने ही किया था। उनके अनुसरण करते हुए कृष्णदेवराय और अकबर ने भी नौरत्न रखे थे। सम्राट अशोक के दरबार में भी नौरत्न थे।
				   
				  
	बाद के राजाओं में विक्रमादित्य से बहुत कुछ सीखा और उन राजाओं को विक्रमादित्य की उपाधि से नावाजा जाता था जो उनके नक्षे-कदम पर चलते थे। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय हुए जिन्हें चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य कहा गया। विक्रमादित्य द्वितीय के बाद 15वीं सदी में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य 'हेमू' हुए। सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बाद 'विक्रमादित्य पंचम' सत्याश्रय के बाद कल्याणी के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए। उन्होंने लगभग 1008 ई. में चालुक्य राज्य की गद्दी को संभाला। राजा भोज के काल में यही विक्रमादित्य थे। राजा भोज को भी विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा गया था।
				  																	
									  
	 
	4. विक्रमादित्य की अरब में थी प्रसिद्धि : कहते हैं कि सम्राट विक्रमादित्य ने अप्रत्यक्ष रूप से तिब्बत, चीन, फारस, तुर्क और अरब के कई क्षेत्रों पर शासन किया था। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में सिम्हल (श्रीलंका) तक उनका परचम लहराता था। विक्रमादित्य की अरब विजय का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक 'शायर उर ओकुल' में किया है। यही कारण है कि उन्हें चक्रवर्ती सम्राट महान विक्रमादित्य कहा जाता है।
				  																	
									  				  																	
									  
	तुर्की के इस्ताम्बुल शहर की प्रसिद्ध लायब्रेरी मकतब-ए-सुल्तानिया में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है 'सायर-उल-ओकुल'। उसमें राजा विक्रमादित्य से संबंधित एक शिलालेख का उल्लेख है जिसमें कहा गया है कि '…वे लोग भाग्यशाली हैं, जो उस समय जन्मे और राजा विक्रम के राज्य में जीवन व्यतीत किया। वह बहुत ही दयालु, उदार और कर्तव्यनिष्ठ शासक था, जो हरेक व्यक्ति के कल्याण के बारे में सोचता था। ...उसने अपने पवित्र धर्म को हमारे बीच फैलाया, अपने देश के सूर्य से भी तेज विद्वानों को इस देश में भेजा ताकि शिक्षा का उजाला फैल सके। इन विद्वानों और ज्ञाताओं ने हमें भगवान की उपस्थिति और सत्य के सही मार्ग के बारे में बताकर एक परोपकार किया है। ये तमाम विद्वान राजा विक्रमादित्य के निर्देश पर अपने धर्म की शिक्षा देने यहां आए…।'
				  																	
									  
	 
	5. विक्रमादित्य की रोचक बातें : सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्टों और उनके हालचाल जानने के लिए छद्मवेष धारण कर नगर भ्रमण करते थे। राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में न्याय व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव कार्य करते थे। इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रीय राजाओं में से एक माने गए हैं। महाराजा विक्रमादित्य का सविस्तार वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है।
				  																	
									  
	 
	सम्राट विक्रमादित्य के जीवन से ही सिंहासन बत्तीसी और विक्रम वेताल नामक कथाएं जुड़ी हुई है। कहते हैं कि अवंतिका नगरी की रक्षा नगर के चारों और स्थित देवियां करती थीं, जो आज भी करती हैं। विक्रमादित्य को माता हरसिद्धि और माता बगलामुखी ने साक्षात दर्शन देकर उन्हें आशीर्वाद दिया था।