प्रेम कविता : मोहब्बत...
- आभा निवसरकर
दिमाग की
असंख्य कोशिकाओं से
छूटता है एक इलेक्ट्रिकल संदेश
और फिर शुरू होता है
रसायन का खेल
जिसे हम मोहब्बत कहते हैं.....
कमबख्त केमिकल
पैदा करते हैं हारमोन और
चूर चूर कर देते हैं
जीवन की हारमनी
फिर होता है शुरू वो खेल
जिसे हम मोहब्बत कहते हैं....
ये खुशबूएं वुशबूएं
जो दीवाना करती हैं
वो और कुछ नहीं फेरोमोन हैं
रसायन का झोंका हैं
ये ही पैदा करते हैं केमिकल लोचा
फिर शुरू होता है वो खेल
दिल विल कुछ नहीं टूटता
बस वैसा ही होता है
जैसे किसी बच्चे से ले लिया जाए खिलौना
हम कहते हैं इसे बेवफाई, दिल का दर्द
जबकि असल मजे ले रहा होता है दिमाग
और उससे निकलने वाले रसायन
सिर्फ इसीलिए होता है वो
जिसे हम मोहब्बत कहते हैं...।