कौन हैं धरती माता, शर्तिया यह कहानी आपको नहीं पता...
World Earth Day 2022: जिस तरह शनिदेव को हमने शनि ग्रह से जोड़कर देखा उसी तरह पृथ्वीदेवी को हमने पृथ्वी से जोड़कर देखा। आओ जानते हैं कि पुराणों के अनुसार कौन हैं धरती माता।
1. दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार धरती को संस्कृत में पृथ्वी कहा गया है। पौराणिक मान्यता में उन्हें भूदेवी कहा गया है। कुछ पुराणों में उन्हें भगवान विष्णु की पत्नि कहा गया है। अधिकांश विष्णु मंदिरों में उन्हें श्रीदेवी और विष्णु के साथ दर्शाया गया है। कई वराह मंदिर में वह वराह भगवान की गोद में बैठी हुई दर्शाई गई है।
दैत्य नरकासुर भगवान वाराह और पृथ्वी का पुत्र है ऐसा श्रीमद भागवत पुराण में कहा गया है। नरकासुर का वध भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने किया था।
2. दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार ही एक बार सतयुग में हिरण्याक्ष ने उन्हें समुद्र में फेंक दिया था तब श्रीहरि विष्णु ने वराह रूप धारण करके उन्हें बचाया था। ऐसा भी कहा जाता है कि उन्होंने त्रेतायुग में माता सीता का अवतार लिया और श्रीराम की सेवा। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने द्वापर युग में सत्यभामा का अवतार लेकर श्रीकृष्ण की सेवा की थी। इसके अतिरिक्त कुंती को भी पृथ्वी का अवतार माना जाता है।
3. उत्तर भारत की मान्यता के अनुसार माता धरती की पुत्री माता सीता है और उनके पुत्र का नाम मंगलदेव है, जो मंगल ग्रह के स्वामी हैं। पृथ्वी के पिता का नाम पृथु बताया जाता है। पृथु भगवान विष्णु के अंश से प्रकट हुए थे। पृथु को धरती का पहला राजा माना जाता है। कहते हैं कि पृथु ने सबसे पहले भूमि को समतल करके खेती शुरू की और समाजिक व्यवस्था की आधारशीला रखी। लोगों ने कंदराओं को त्यागकर घर बनाकर रहना शुरू कर दिया। पृथु ने धरती को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार किया और इसका नाम पृथ्वी रखा।
4. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद जी को बताया कि यह पृथ्वी मधु और कैटभ के मेद से उत्पन्न हुई हैं। जब मां दुर्गा ने दोनों का संहार किया, तब उनके शरीर से 'मेद' निकला वही सूर्य के तेज से सूख गया। इसके कारण पृथ्वी को उस समय 'मेदिनी' कहा जाने लगा। ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में पृथ्वी माता के प्रकट होने से लेकर पुत्र मंगल को उत्पन्न करने तक की पूरी कहानी दी गई है। एक अन्य कथानुसार महाविराट पुरुष अनंतकाल से जल में रहते थे। समय के बदलने के साथ महाविराट पुरुष के सभी रोमकूप उनके आश्रय बन जाते थे। उन्हीं रोमकूपों से पृथ्वी का जन्म हुआ। कुछ कथाओं में पृथ्वी माता को महर्षि कश्यप की पुत्री कहा गया है।
5. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर में ले गया। भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार ले कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तथा रसातल से पृथ्वी को निकाल कर सागर पर स्थापित कर दिया जिस पर परम पिता ब्रह्मा ने विश्व की रचना की। पृथ्वी सकाम रूप में आ कर श्री हरि की वंदना करने लगी जो वाराह रूप में थे। पृथ्वी के मनोहर आकर्षक रूप को देख कर श्री हरि ने काम के वशीभूत हो कर दिव्य वर्ष पर्यंत पृथ्वी के संग रति क्रीडा की। इसी संयोग के कारण कालान्तर में पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसे मंगल ग्रह के नाम से जाना जाता है। देवी भागवत में भी इसी कथा का वर्णन है।