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Written By WD Feature Desk

फाल्गुन मास का महत्व और पौराणिक कथा

फाल्गुन मास का महत्व और पौराणिक कथा - Falgun Month 2024 Katha n Mahatva
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Phalgun Month
 
HIGHLIGHTS
 
• फाल्गुन मास का महत्व क्या है।
• फागुन के महीने में किसका पूजन किया जाता है।
• फागुन में कौन-कौन से त्योहार पड़ते हैं।

 
Falgun, Phalgun Month 2024: इस बार फाल्गुन का महीना 25 फरवरी 2024 से प्रारंभ हो गया है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास का बहुत महत्व कहा गया है। इस महीने कई धार्मिक व्रत और त्योहार पड़ते हैं। यहां आपके लिए खास तौर पर प्रस्तुत हैं फाल्गुन या फागुन माह का महत्व और कथा के बारे में। आइए जानते हैं...
 
फाल्गुन महीने का महत्व-Importance Phalgun Month 
 
हिन्दू पंचांग का अंतिम महीना फाल्गुन मास होता है और इस महीने से धीरे-धीरे गर्मी के दिन शुरू होने लगते हैं तथा ठंड कम होने लगती है। फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि और होली ये दो सबसे बड़े त्योहार पड़ते हैं जो कि बहुत ही धूमधाम से मनाए जाते हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार अनेक देवताओं में से एक चंद्र देवता हैं। चंद्र के देवता भगवान शिव है और शिव जी ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण कर रखा है। अत: पुराणों की मानें तो फाल्गुन मास चंद्र देव की आराधना के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है, क्योंकि यह चंद्रमा का जन्म माह माना जाता है। 
 
फाल्गुन माह में भगवान श्री कृष्ण की आराधना का भी विशेष महत्व है, इस माह में विशेषकर भगवान श्री कृष्ण के तीन स्वरूपों की पूजा करना बहुत ही लाभदायी माना जा‍ता है। इसमें श्री कृष्ण के बाल कृष्ण स्वरूप, युवारूप के कृष्ण और गुरु कृष्ण की पूजा की जाती है।

बाल कृष्ण रूप की पूजा संतान पाने के लिए, युवा स्वरूप कृष्‍ण का पूजन दांपत्य जीवन मधुर बनाने हेतु और गुरुरूप कृष्ण का पूजन मोक्ष और वैराग्य पाने के लिए ही फाल्गुन के महीने में कृष्ण जी का पूजन अवश्य ही सभी को करना चाहिए। साथ ही श्री गणेश के पूजन का भी महत्व है। फाल्गुल महीने में अपने खान-पान और दिनचर्या में बदलाव करना बहुत ही खास माना गया हैं, क्योंकि इस माह भोजन में अनाज का प्रयोग कम करके मौसमी फलों का सेवन अधिक करने की मान्यता है। 
 
कथा- Phalgun Month katha
फाल्गुन मास की कथा के अनुसार सतयुग की बात है, उस समय एक बड़ा ही धर्मात्मा राजा का राज्य था। उसके राज्य में एक ब्राह्मण था, उसका नाम था विष्णु शर्मा। विष्णु शर्मा के सात पुत्र थे और वे सातों अलग-अलग रहते थे। 
 
जब विष्णु शर्मा का वृद्धावस्था का समय आया, तो उसने सब बहूओं से कहा, तुम सब गणेश का व्रत करो। स्वयं विष्णु शर्मा भी इस व्रत को किया करता था। अब बूढ़ा हो जाने पर वो यह दायित्व अपनी बहूओं को सौंपना चाहता था। 
 
जब उसने बहुओं से इस व्रत के लिए कहा, तो बहूओं ने नाक सिकोड़ते हुए उसकी आज्ञा न मानकर उसका अपमान कर दिया। अंत में छोटी बहू ने अपने ससुर की बात मान ली। और पूजन के सामान की व्यवस्था करके ससुर के साथ व्रत किया तथा भोजन नहीं किया। और ससुर को भोजन करा दिया।
 
जब आधी रात बीती, तो विष्णु शर्मा को उल्टी और दस्त लग गए, तब छोटी बहू ने मलमूत्र में भरे गंदे कपड़ों को साफ करके ससुर के शरीर को धोया और पोंछा। पूरी रात बिना कुछ खाए-पिए जागती रही।
 
फिर गणेश जी ने उन दोनों पर अपनी कृपा की। ससुर का स्वास्थ्य ठीक हो गया और छोटी बहू का घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। तत्पश्चात अन्य बहुओं को भी इस घटना से प्ररेणा मिली और उन्होंने भी श्री गणेश जी का व्रत किया, अत: फाल्गुन मास में जो भी व्यक्ति सच्चे मन से गणेश जी का व्रत करता है, भगवान गणेश उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
 
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