गुरुवार, 21 नवंबर 2024
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Written By WD Feature Desk

संसार में बंधन का कारण क्या है? गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

वह क्या है जो आपको वास्तविकता और परमात्मा से दूर रखता है।

Art Of Living
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वह क्या है, जो आपको वास्तविकता से, सत्य से और परमात्मा से दूर रखता है। वे चार प्रकार के भय या इक्छाएं हैं, जो आपको संसार से बांधते हैं। इन्हें  कहा एषनाएं जाता है और ये हैं-पुत्रेष्णा, वित्तेष्णा, लोकेष्णा और जीवेष्णा।
 
पहली है पुत्रेष्णा, माने अपने बच्चों से लगाव।  हमेशा अपनी संतान के विषय में सोचते रहना; कल, जब वे बड़े होंगे और उनके पास आपके लिए समय नहीं होगा, तो आपका दिल टूट जाएगा। वास्तव में, वे किसके बच्चे हैं? वे भगवान के बच्चे हैं। आप केवल उनके आने का द्वार मात्र थे। लेकिन लोग कहते हैं कि ओह मेरे बच्चे, मेरे बच्चे। यह आपके मन को ज्वरित कर देता है, यह आपकी सोच को इतना अवरुद्ध कर देता है कि आप वास्तव में यह नहीं देखते कि उनके लिए क्या अच्छा है। इस एष्णा के कारण लोगों को बहुत सी समस्याएं और कष्ट होते हैं। 
 
फिर आती है वित्तेष्णा- पैसे की इच्छा। हम एक वृद्ध महिला को जानते हैं जो कहती थी, 'यदि  कोई दिमाग से बीमार है, तो उन्हें बहुत से सिक्के दे दो। वे गिनते रहेंगे और बीमारी चली जाएगी।' वित्तेष्णा पैसे की भूख है। आपके पास कितना पैसा हो सकता है? आप इसके साथ क्या करना चाहते हैं? अच्छा, मान लीजिये आपके पास 30 मिलियन डॉलर हैं।
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आप इसके साथ क्या करेंगे? क्या आप अपने जीवन काल में 30 मिलियन डॉलर का आनंद ले सकते हैं? पैसा आवश्यक है मगर पैसे की लालसा आप पर और आपके जीवन पर इस प्रकार हावी हो सकती है कि आप वास्तविकता को देखने, प्रेम को पहचानने और उससे परे कुछ देखने में असमर्थ होंगे।
 
वित्तेष्णा आपको बांधती है। केवल एक खाता पुस्तिका आपके मन को बैंक में रखती है। यह आपको झूठी सुरक्षा देती है। कुछ समय पहले कुछ अरबपति कई दिनों तक सहारा के रेगिस्तान में फंसे रहे, एक रोटी के टुकड़े के लिए लड़ते रहे और पानी की एक बोतल के लिए भगदड़ में पड़े रहे। वे लोग जो बहुत धनी थे, रातों-रात उनका सब कुछ छिन गया; वे कंगाल बन गए। 

बहुत बड़ी -बड़ी कंपनियाँ, जिनके पास कभी अरबों रुपये थे, आज वे क़र्ज़ में हैं। पैसे के विषय में इतनी चिंता क्यों करनी है? विश्वास रखें और कहें, 'मुझे जो चाहिए वह प्रदान किया जाए' और फिर काम करें, उसमें अपना 100 प्रतिशत डालें। देखें क्या होता है- जो आना है वह आएगा। और जो खर्च होना है वह खर्च होगा। 
 
उसके बाद आती है लोकेष्णा। आपको पैसे की भी इतनी परवाह नहीं हो सकती लेकिन आप इस बात की बहुत परवाह करते हैं कि लोग मेरे विषय में क्या सोचेंगे? आप दुनिया में हर व्यक्ति के द्वारा प्रशंसा चाहते हैं; आप प्रसिद्ध होना चाहते हैं; कुछ बनना चाहते हैं; कुछ करना चाहते हैं ताकि आपका नाम आगे आने वाली पीढ़ियों तक बना रहे; आप अमर बनना चाहते हैं! प्रसिद्ध लोगों के साथ क्या हो रहा है? उनकी प्रसिद्धि हर समय एक जैसी नहीं रहती। कोई और गायक, अभिनेता या नर्तक उनसे थोड़ा अधिक प्रसिद्ध हो जाता है।

इसके कारण कई बार वे दूसरों से ईर्ष्या करने लगते हैं और उनकी आलोचना करना आरंभ कर देते हैं और दुखी हो जाते हैं। जब आप प्रसिद्धि के शिखर पर होते हैं और इसको बनाए रखने का प्रयास करते हैं, आपके भीतर बहुत भय और बेचैनी होती है। आप बहुत असहज हो जाते हैं। यह 'चाह' कि हम दूसरे लोगों को  दिखावा करने में सक्षम हों, या इस बात के विषय में सोचते रहना कि दूसरे क्या कहेंगे, लोकेष्णा है। लोकेष्णा आपके भीतर भय उत्पन्न करती है और आपको नीचे खींचती है। 
 
अब आती है जीवेष्णा- लम्बे समय तक जीने की चाह, शारीरिक रूप से अमर बनने की चाह। लेकिन भौतिक शरीर को अमर क्यों बनाना है? प्रकृति आपको बार-बार एक नया शरीर प्रदान कर रही है। जब इतने सारे ताज़ा सेब उग रहे हैं, तो एक सेब क्यों रखें, इसे पुराना करें और फिर खाएं? शरीर नाशवान है।

जिन लोगों ने अपना जीवन पूरी तरह से नहीं जिया है, उनमें लम्बे समय तक जीने की लालसा होती है। जिन लोगों को असाध्य रोग हैं, अंग विच्छिन्न हैं, वे मरना नहीं चाहते हैं। वे लम्बे और लम्बे समय तक जीने के लिए लालायित रहते हैं। इसका परिणाम क्या है? यह उन्हें इस क्षण का आनंद लेने, मुक्त होने की अनुमति नहीं देता है। और यह जीवन में तनाव उत्पन्न करता है। 
 
एक स्वस्थ व्यक्ति मर जाएगा और एक बीमार व्यक्ति भी मर जाएगा। एक मरीज़ मरता है, एक डॉक्टर मरता है। हर 'शरीर' मर जाएगा। यह जीवन का एक अपरिहार्य चरण है। यह एक प्रारम्भ और एक अंत है। यह होने जा रहा है और यह होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि आपको अपने शरीर की देखभाल करने की आवश्यकता नहीं है। 
 
आपको इस शरीर की पूरी देखभाल करनी चाहिए, लेकिन बिना ज्वर के, बिना एष्णा के। जब ये चार प्रकार के भय लुप्त हो जाते हैं, तब आप परमात्मा के समीप बैठने के योग्य हैं।
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