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Written By गायत्री शर्मा

अब कहाँ से मिलेंगे संस्कार ...?

बड़े-बुजुर्ग - घर की शोभा

Who Will Give You Sanskaar | अब कहाँ से मिलेंगे संस्कार ...?
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वर्तमान में जितनी तेजी से संयुक्त परिवारों का लोप और एकल परिवारों का उदय हुआ है, उतनी ही तेजी से विचारों में मतभेद भी उभरकर सामने आने लगे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिवारों में बिखराव की हम यदि वजह टटोलें तो हमारे समक्ष मुख्यत: एक ही वजह सामने आती है और वह है- 'एकल परिवार प्रणाली'।

कल तक घर में बड़े-बूढ़े होते थे, जो बच्चों को संस्कार व शिष्टाचार का पाठ पढ़ाते थे किंतु अब उनकी जगह टेलीविजन और डिस्को थेक ने ले ली है। ये नए पथ-प्रदर्शक आजकल के बच्चों को हिंसा व उन्मुक्तता का नया सबक सिखा रहे हैं।

यही कारण है कि अब बच्चे अपने दादा-दादी तो दूर अपने माँ-बाप व गुरु का भी सम्मान नहीं करते। सबके सामने माँ-बाप को डाँटना और अपनी मनमानी पर अड़े रहना अब बच्चों की एक आम प्रवृत्ति बन गई है।

आए दिन यह सुनने में आता है कि किसी बच्चे ने अपने ही शिक्षक से प्यार का इजहार किया तो कभी छोटी-सी बात पर अपने ही किसी साथी को मौत के घाट उतार दिया। आखिरकार कम उम्र के बच्चों में इस प्रकार हिंसक प्रवृत्ति पनपने के लिए जिम्मेदार कौन है?

नि:संदेह ही इसके जिम्मेदार उनके माँ-बाप हैं, जो उन्हें ऐसी परवरिश दे रहे हैं कि बड़ा होकर उनका बच्चा उन्मुक्त और स्वच्छंद जीवन जिए। बच्चों को इतनी आजादी देना भी कहाँ तक जायज है कि वे माँ-बाप के सिर पर ही सवार हो जाएँ।

अपने घर के बड़े-बूढ़ों को वृद्धाश्रम की ओर धकेलना आज हमारे अपने ही बच्चों के लिए नुकसानदेह सिद्ध हो रहा है। जो संस्कार उन्हें कच्ची उम्र में अपने दादा-दादी व माँ-बाप से मिलना चाहिए थे, उसके विपरीत अब वे अपने ‍सिरफिरे दोस्तों व आजकल की फिल्मों से कदाचरण सीख रहे हैं।

घर तभी घर होता है, जब उसमें बड़े-बुजुर्गों का वास हो। उनसे घर में रौनक व संस्कार आते हैं। कई पी‍‍ढि़यों को जोड़ने वाले इन सूत्रधारों को यूँ अलविदा न कहो कि जीवनभर हमें अपनी इस गलती का मलाल करना पड़े।