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Written By गायत्री शर्मा

बेटा बना बाप का हत्यारा

रिश्तों की डोर को थामे रखें

बेटा बना बाप का हत्यारा -
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जिन हाथों ने उँगली पकड़कर चलना ‍सिखाया, जिन काँधों ने बचपन में सहारा दिया, आज वही बाप बेटे के लिए जी का जंजाल बन गया। जिन हाथों को बुढापे में थरथराते अपने पिता के हाथों को थामकर उनका सहारा बनना था, मगर वे ही हाथ कातिल बनकर अपने ही पिता की जान ले बैठें, सुनकर दिल का दहलना सहज है क्योंकि यह घटना है ही इतनी असहज।

यदि एक ससुर अपनी बेटी के समान पुत्रवधू पर नजर रखेगा तो बेटे का हद से गुजरना स्वाभाविक ही है। जिस घटना को हम यहाँ रेखांकित कर रहे हैं उसने मौजूदा परिवेश में रिश्तों की पवित्रता को न केवल कलंकित किया है बल्कि समाज का एक ऐसा विद्रूप चेहरा सामने लाकर खड़ा कर दिया है, जिसने अपने पीछे कई सवालों को जन्म दिया है।
  रिश्ते कच्चे धागे के समान होते हैं। ‍िजनकों बनने में तो सालों लग जाते है पर बिगड़ने में पलभर ही लगता हैं। हमारी थोड़ी सी नासमझी में ये हमेशा के लिए टूट सकते हैं।      


यह बात कोई ज्यादा पुरानी नहीं है, जब रतलाम जिले के ग्राम पलसोड़ा में बस्सू उर्फ बच्चू डोडियार ने अवैध संबंधों के चलते अपने ही पिता की हत्या कर दी। बच्चू को इस बात का शक था कि उसके पिता मानसिंह डोडियार के उसकी सास खातरीबाई के साथ अवैध संबंध थे। यही नहीं उसके पिता की अपनी पुत्रवधू श्यामाबाई पर भी बुरी नजर थी। बस इसी शक ने उसे अपने ही पिता का हत्यारा बना दिया।

एक सुनियो‍‍‍जित षड्यंत्र के तहत बच्चू ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर गहरी नींद में सोए अपने पिता को हमेशा के लिए नींद में सुला दिया। इस दिल दहला देने वाली घटना में बच्चू ने कुल्हाड़ी व लोहे के पाइप से अपने पिता पर कई प्राणघातक हमले किए।

माँ-बाप हमारी पहली पाठशाला होते हैं। जो हमें संस्कारों का पाठ पढाते हैं। यदि वे ही माँ-बाप कुछ ऐसा कृत्य करें जिससे उनके बच्चे शर्मसार हो जाएँ तो रिश्तों में दरार पड़ना ला‍जिमी ही है। परंतु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि बच्चे आवेग में आकर माँ-बाप के ही हत्यारे बन जाएँ।

रिश्ते कच्चे धागे के समान होते हैं। ‍िजनकों बनने में तो सालों लग जाते है पर बिगड़ने में पलभर ही लगता हैं। हमारी थोड़ी सी नासमझी में ये हमेशा के लिए टूट सकते हैं। क्षणिक क्रोध हमें जीवनभर का दु:ख दे सकता है व हमारे प्यार-मोहब्बत से गुथे रिश्तों को एक ही झटके में बिखेर सकता है। अत: अपने क्रोध पर काबू रखें तथा रिश्तों की इस डोर को थामे रखें।