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Last Updated : मंगलवार, 16 सितम्बर 2014 (00:20 IST)

पिछले 11 दिन किसी से संपर्क नहीं कर सका : परवेज रसूल

पिछले 11 दिन किसी से संपर्क नहीं कर सका : परवेज रसूल - Parvez Rasool
नई दिल्ली। जब 10 दिन पहले भारतीय क्रिकेटर परवेज रसूल के बिजबेहड़ा निवास में बाढ़ का पानी घुस गया था तो उनकी सबसे पहली प्रतिक्रिया प्रथम तल पर मौजूद अपने दो क्रिकेट किट बैग को निकालने की थी, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं की थी कि इसके बाद क्या होगा।
जम्मू कश्मीर के बाढ़ प्रभावित अनंतनाग जिले से रसूल ने कहा, पिछले 11 दिन से मैं समाज से पूरी तरह से कटा हुआ था क्योंकि कोई भी फोन या सेलफोन काम नहीं कर रहा था। कोई इंटरनेट कनेक्शन नहीं था। मेरे और मेरे परिवार के लिए यह लाचारी के हालात थे। 
 
उन्‍होंने कहा, हम पहले प्रथम तल पर रह रहे थे क्योंकि ग्राउंड तल बाढ़ के पानी से भरा हुआ था। मैं अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को सूचित करना चाहूंगा कि हम सुरक्षित हैं। रसूल ने कहा, मैं आपका फोन इसलिए ले पाया क्योंकि मेरे घर से कुछ दो किमी की दूरी से मुझे मोबाइल के सिग्नल मिल रहे हैं। 
 
रसूल ने कहा, मुझे पता चला कि ऐसी अफवाह चल रही थी कि बाढ़ के कारण मेरे और मेरे परिवार का कोई सुराग नहीं मिल रहा है। यह गलत है। हां, हालात भयावह हैं लेकिन अभी अनंतनाग में ये बेहतर हैं। मैं अगले दो दिन में श्रीनगर जाने की योजना बना रहा हूं। मैं अपनी जम्मू कश्मीर रणजी टीम के साथियों से भी संपर्क नहीं कर पाया हूं।
 
रसूल ने फिर पिछले 10 दिन के भयावह समय की बात बताई। उन्होंने कहा, सबसे बुरी चीज थी कि मेरे पसंदीदा बल्लों से एक मेरी कार में महंगे पिट्ठू बैग में रह गया था। कार पूरी तरह से पानी के अंदर थी और मेरी मां नहीं चाहती थी कि मैं नीचे जाऊं। मैं फिर भी गर्दन तक भरे पानी में गया और इन दोनों चीजों को लेकर आया। 
 
जम्मू कश्मीर टीम के 25 वर्षीय कप्तान ने कहा कि उन्होंने एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन के साथ राहत कार्य में भी हिस्सा लिया जो इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित लोगों की मदद कर रहा था।
 
इस साल भारत के लिए वनडे में आगाज कर चुके रसूल ने कहा, बल्कि एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन ने यहां बेहतरीन काम किया है, वे लोगों तक खाना, जरूरी दवाइयां और कपड़े पहुंचा रहे हैं। बल्कि हमें भी एनजीओ से ही मदद मिली क्योंकि हम अपने घर के अंदर फंसे हुए थे। 
 
उन्होंने कहा, तीन से चार दिन तक काम करते हुए देखने के बाद मैंने भी राहत काम में मदद करने का फैसला किया। वरिष्ठ नागरिकों ने तो हमारे हाथ पकड़कर हमारा शुक्रिया अदा किया। मैं आपको बता नहीं सकता कि मुझे कैसा महसूस हुआ। (भाषा)