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Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 30 जून 2025 (19:26 IST)

नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को मिली गर्भपात की अनुमति, मां ने दायर की थी हाईकोर्ट में याचिका

Delhi High Court allows minor rape victim to have abortion
Minor rape victim case : दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग यौन उत्पीड़न पीड़िता को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की सोमवार को अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति मनोज जैन ने एम्स के चिकित्सा अधीक्षक को लड़की के 26 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त कराने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि लड़की के साथ 2 बार यौन उत्पीड़न किया गया था। पीड़िता 16 साल की है और उसकी मां ने गंभीर मानसिक आघात का हवाला देते हुए गर्भपात के लिए अदालत में याचिका दायर की। अदालत ने राज्य प्राधिकारियों को चिकित्सा प्रक्रिया, अस्पताल में लड़की के रहने का खर्च तथा ऑपरेशन के बाद की देखभाल का सारा खर्च वहन करने का निर्देश दिया।
 
अदालत ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और उसके डॉक्टरों की टीम को निर्देश दिया कि वे एक जुलाई को गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत पीड़िता का गर्भपात करें। यह बात रिकॉर्ड में आई कि मेडिकल बोर्ड गर्भावस्था की समाप्ति की अनुमति देने के पक्ष में नहीं था, क्योंकि गर्भावधि उम्र अधिक होने के कारण संभवतः सिजेरियन सेक्शन प्रक्रिया की आवश्यकता होती, जिससे लड़की के भविष्य के प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता था।
मेडिकल बोर्ड ने कहा कि लड़की शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ है। हालांकि लड़की और उसकी मां ने गर्भावस्था जारी न रखने पर जोर दिया। डॉक्टरों ने एमटीपी अधिनियम के तहत प्रदत्त वैधानिक प्रतिबंधों के कारण गर्भपात करने में असमर्थता व्यक्त की थी जिसके बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इस कानून के तहत सामान्य मामलों में गर्भपात कराने की प्रक्रिया को 20 सप्ताह तक तथा बलात्कार पीड़िता जैसी कुछ श्रेणियों में 24 सप्ताह तक सीमित कर दिया गया है।
 
लड़की के वकील के अनुसार, 2024 में दिवाली पर एक व्यक्ति ने नाबालिग का यौन उत्पीड़न किया था, लेकिन उसने इस घटना के बारे में किसी को नहीं बताया। वकील ने बताया कि दूसरी घटना मार्च में हुई जब एक अन्य व्यक्ति ने उसका यौन उत्पीड़न किया और इस घटना के कारण वह गर्भवती हो गई।
उसे गर्भावस्था के बारे में तब पता चला जब वह अपनी बहन के साथ डॉक्टर के पास गई और जब उसके परिवार के सदस्यों को यह पता चला, तो उसने यौन उत्पीड़न के बारे में उन्हें बताया, जिसके बाद प्राथमिकी दर्ज कराई गई। जून में प्राथमिकी दर्ज कराने के समय गर्भ की उम्र निर्धारित 24 सप्ताह की सीमा से अधिक हो गई थी।
 
अदालत को बताया गया कि पुलिस ने मार्च में हुई यौन उत्पीड़न की घटना के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि पिछले साल उसके साथ यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय सहित अन्य निर्णयों को दर्ज किया है, जिनमें 27 सप्ताह से अधिक और यहां तक कि 33 सप्ताह की गर्भावधि वाले मामलों में भी गर्भपात की अनुमति दी गई थी।
अदालत ने कहा, इस मामले में स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। लड़की के साथ पहली बार दिवाली पर यौन उत्पीड़न किया गया था, लेकिन उसने इस बारे में किसी को नहीं बताया और मार्च में एक अन्य व्यक्ति ने फिर से उसका यौन उत्पीड़न किया। आदेश में कहा गया, इस अदालत के लिए नाबालिग को हुई गंभीर मानसिक क्षति को समझना कठिन नहीं है।
 
एम्स के डॉक्टरों को भ्रूण के ऊतकों को संरक्षित करने के अलावा प्रक्रिया का पूरा रिकॉर्ड रखने का आदेश दिया गया। भ्रूण के ऊतकों का इस्तेमाल डीएनए पहचान और जांच के उद्देश्यों के लिए आवश्यक हो सकता है। अदालत ने राज्य प्राधिकारियों को चिकित्सा प्रक्रिया, अस्पताल में लड़की के रहने का खर्च तथा ऑपरेशन के बाद की देखभाल का सारा खर्च वहन करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा, यदि बच्चा जीवित पैदा होता है तो एम्स के चिकित्सा अधीक्षक राज्य प्राधिकारियों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे बच्चे को हरसंभव सहायता प्रदान की जाए तथा इसकी सूचना बाल कल्याण समिति को दी जाएगी। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour
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