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Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 12 मई 2018 (12:21 IST)

जहां दूल्हा की मांग भरती है दुल्हन...

जहां दूल्हा की मांग भरती है दुल्हन... - Chhatisgarh marriage
नई दिल्ली। हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में विवाह संबंधी अजब-गजब प्रथाएं है। देश के मध्य भाग में स्थि‍त छत्तीसगढ़ एक ऐसा ही आदिवासी बहुल राज्य है जहां विवाह से जुड़ी एक विचित्र प्रथा है।
 
राज्य के जशपुर जिले में दु‍ल्हनें अपने दू्ल्हे की मांग भरती हैं। पर इस प्रथा को पूरा करते समय कुछ नियम कायदों को भी पूरा करना होता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां विवाह के मंडप में दुल्हन का भाई अपनी बहन की अंगुली पकड़ता है औऱ दुल्हन अपने भाई के सहारे बिना देखे पीछे हाथ करके दूल्हे की मांग देती है।
 
आम विवाह की तरह जिले के आदिवासी समाज में भी मंडप सजाया जाता है और दूल्हा-दुल्हन सजधज कर विवाह के मंडप में बैठते हैं। ठीक इसी तरह से बारातियों और घरातियों की भीड़ भी जुटती है। विवाह की सारी रस्में पूरी की जाती हैं और विवाह से जुड़े मंगल मंत्र पढ़े जाते हैं। 
 
लेकिन, सात जन्मों के सूत्र में बंधने से पहले यहां एक ऐसी प्रथा है जो इस जनजाति की शादी को दूसरी शादी से सबसे अलग बनाती है। यहां शादी कराने वाले पुरोहितों का कहना है कि शादी से पहले वर-वधू पक्ष साथ में बाजार जाते हैं और एक साथ सिंदूर खरीदते हैं और अगले दिन शादी के वक्त दूल्हा-दुल्हन उसी सिंदूर से एक-दूसरे की मांग भरते हैं।
 
आदिवासी समाज के लोगों की मान्यता है कि इस तरह के सिंदूर दान से वैवाहिक रिश्तों में बराबरी का अहसास होता है। पर इस खास रस्म के लिए दूल्हन के घर के पास किसी बगीचे में दूल्हा उसके घर से आमंत्रण का इंतजार करता है और इसके बाद दुल्हन के रिश्तेदार दूल्हे के पास पहुंचते हैं और उसे कंधे पर बैठाकर विवाह के मंडप में ले आते हैं।
 
इसके बाद विवाह के मंडप में दुल्हन का भाई अपनी बहन की उंगली पकड़ता है और दुल्हन अपने भाई के सहारे बिना देखे अपना एक हाथ पीछे करके दूल्हे की मांग भरती है। 
 
लेकिन, अगर दुल्हन का कोई भाई न हो तो ऐसी हालत में दुल्हन की बहनें इस रस्म को पूरा कराती हैं। दोनों तीन-तीन बार एक-दूसरे की मांग में सिंदूर भरते हैं लेकिन दूल्हा-दुल्हन के रिश्तों को मजबूती देने वाली ये अनूठी रस्म चादर के घेरे में निभाई जाती है जिसे हर कोई नहीं देख पाता है।
 
उल्लेखनीय है कि इस रस्म के समय केवल दूल्हा-दुल्हन, उनके परिवार, पुरोहित और गांव के बड़े बुजुर्ग ही मौजूद रहते हैं और माना जाता है कि इस रस्म के पूरा होते ही दूल्हा-दुल्हन सात जन्मों के बंधन में बंध जाते हैं। 
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