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Written By Author सुरेश डुग्गर
Last Updated : गुरुवार, 27 जून 2019 (19:09 IST)

इस बार भी चमलियाल मेले में न ही दिल मिले और न ही बंटा शकर - शर्बत

Baba Chamaliyal Mela। इस बार भी चमलियाल मेले में न ही दिल मिले और न ही बंटा शकर - शर्बत - Baba Chamaliyal Mela
चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू फ्रंटियर)। कई सौ सालों से चले आ रहे चमलियाल मेले पर आखिर इस बार भी सीमा के तनाव की छाया पड़ ही गई। पाक गोलियों से बचाने की खातिर हालांकि वार्षिक मेले का आयोजन तो हुआ, पर तनाव और दहशत में। जबकि इस बार भी दोनों मुल्कों के बीच शकर-शर्बत का आदान-प्रदान भी नहीं हुआ। पिछले साल भी पाक सेना के अड़ियलपन के कारण ऐसा ही हुआ था।
 
आसपास के गांवों के हजारों लोग दरगाह तक पहुंचे तो सही लेकिन उनमें डर-सा समाया हुआ था, क्योंकि बीएसएफ तथा स्थानीय प्रशासन ने मेले वाले दिन दरगाह पर आने वालों को चेताया था कि वे उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं करवा सकते हैं।
 
दरअसल, इसी दरगाह के क्षेत्र में पाक सेना ने पिछले साल गोलों की बरसात कर पहली बार बीएसएफ के 4 अधिकारियों को मार डाला था। अंतिम समय में पाक सेना द्वारा मेले में शिरकत करने से इंकार कर दिए जाने के कारण इस ओर से इस बार भी सीमा पार शकर-शर्बत नहीं भिजवाया गया। ऐसा चौथी बार हुआ है। कारगिल युद्ध तथा उसके 3 साल बाद तारबंदी के दौरान उपजे तनाव के दौर में भी ऐसा हो चुका है।
 
एक सबसे बड़ा कारण इस बार दोनों देशों के बीच शकर व शर्बत के आदान-प्रदान न होने का यह भी रहा कि पाक सेना अड़ियलपन दिखा रही थी और वह अंतिम क्षण में इससे इंकार कर गई। हालांकि इन सबके लिए जिम्मेदार तो सीमा का तनाव ही था, जो भारी पड़ा था।
वैसे भारतीय पक्ष की ओर से दरगाह पर दर्शनार्थ आने वालों को बाबा के प्रसाद के रूप में शकर (दरगाह के आसपास की विशेष मिट्टी) तथा शरबत (दरगाह के पास स्थित कुएं विशेष का पानी) तो प्रसाद के रूप में प्राप्त हुआ था, परंतु सीमा के उस पार बाबा के पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को यह नसीब नहीं हुआ था, क्योंकि इस बार भी पाक सेना के न मानने के कारण भारतीय पक्ष ने इस प्रकार का आयोजन करने से मना कर दिया था।
 
मेले के बारे में एक कड़वी सच्चाई यह थी कि जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ था तो दरगाह के 2 भाग हो गए थे। असली दरगाह इस ओर रह गई और उसकी प्रतिकृति पाकिस्तानी नागरिकों ने अपनी सीमा चौकी सैदांवाली के पास स्थापित कर ली।
 
बताया यही जाता है कि पाकिस्तानी नागरिक बाबा के प्रति कुछ अधिक ही श्रद्धा रखते हैं तभी तो इस ओर मेला 1 दिन तथा उस ओर 7 दिनों तक चलता रहता है जबकि इस ओर 60 से 70 हजार लोग इसमें शामिल होते रहे हैं जबकि सीमा के उस पार लगने वाले मेले में शामिल होने वालों की संख्या 4 लाख से भी अधिक होती है। मेले में आने वाले इस बार निराश हुए थे, क्योंकि मेले का मुख्य आकर्षण दोनों देशों के बीच-शकर व शर्बत का आदान-प्रदान का दृश्य होता था, जो इस बार भी नदारद था।
 
सीमा पर बने हुए तनाव ने इस बार उन रोगियों के कदमों को भी रोक रखा था, जो चर्म रोगों से मुक्ति पाने की खातिर इस दरगाह पर पहले 7-7 दिनों तक रुकते थे। लेकिन अब वे दिन में ही आकर दिन में वापस लौट जाते हैं, क्योंकि सेना और सीमा सुरक्षाबल उनके प्रति कोई खतरा मोल लेने को तैयार नहीं हैं। वैसे मेले वाले दिन बीसियों ऐसे चर्म रोगियों से मुलाकातें होती रही हैं, परंतु इस बार मात्र कुछ ही चर्मरोगी दरगाह के आसपास इलाज करवाने आए हुए थे।
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