योग अनुसार वज्रोली तथा वायुभक्षण प्राणायाम भी है और क्रिया भी। दोनों ही प्राणायाम से हम पाचन व यौन संबंधी छोटी-छोटी समस्या से समाधान पा सकते हैं।
वज्रोली मुद्रा : पूर्ण रेचन करके श्वास रोक दें। जितनी देर सहजता से श्वास रुके बार-बार वज्रनाड़ी (जननेंद्रिय) का संकोचन विमोचन करें। ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र (मूलाधार से चार अँगुल ऊपर रीढ़ में, जननेंद्रिय के ठीक पीछे) पर केंद्रित रहे।
वायु भक्षण : हवा को जानबूझकर कंठ से अन्न नली में निगलना। यह वायु तत्काल डकार के रूप में वापस आएगी। वायु निगलते वक्त कंठ पर जोर पड़ता है तथा अन्न नलिका से होकर वायु पेट तक जाकर पुन: लौट आती है।
दोनों के लाभ : वज्रोली क्रिया प्रजनन संस्थान को सबल बनाती है और यौन रोग में भी यह लाभदायक है। वायु भक्षण क्रिया अन्न नलिका को शुद्ध व मजबूत करती है। इससे फेफड़े भी शुद्ध और मजबूत बनते हैं।