साँस लेना जिंदा रहने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जब हम उत्तेजित होते हैं तब साँसें बहुत तेज गति से चलने लगती हैं और शांत अवस्था में इनकी गति धीमी हो जाती है। इसको इस तरह भी कहा जा सकता है कि यदि प्रयत्नपूर्वक धीमी गति से साँस लेंगे तो तनाव शिथिल होगा।
प्राणायाम और अनुलोम विलोम की सभी प्रक्रियाएँ तनाव शैथिल्य के कारगर उपाय समझे जाते हैं। यदि आप दाहिने ओर के नथुने को बंद कर बाईं तरफ के नथुनों से साँस लेते हैं तो तनाव दूर होता है, इसी के उलट दाहिने नथुने से साँस लेने पर तत्काल ऊर्जा हासिल होती है। हम अपनी सामान्य जिंदगी में फेफड़ों का पूरी क्षमता से कभी इस्तेमाल ही नहीं करते।
इसके लिए अलग से किए गए अभ्यास से यह फायदा होगा कि धीरे-धीरे यह आदत में शामिल हो जाएगा। बुरी आदतों को दूर करने में भी प्राणायाम की क्रियाएँ सहयोग कर सकती हैं। बुरी आदतों के पैटर्न को हमेशा के लिए तोड़ने में साँसों का महत्वपूर्ण स्थान है। मस्तिष्क में गहरे तक जम चुकी आदतों को केवल योगाभ्यास से ही दूर किया जा सकता है।
लंबी और गहरी साँस...
फेफड़ों से पूरी क्षमता का काम लेना हो तो उसे ऑक्सीजन से भरना जरूरी है। इसके लिए लंबी और गहरी साँस ही मुफीद होगी। स्वास और प्रच्छवास दोनों लंबे और धीमी गति से पूर्ण किए जाने चाहिए। आमतौर पर ऐसा सिर्फ नाक से साँस लेने पर ही किया जा सकता है। मुँह से साँस लेकर भी इसकी गति को धीमे किया जा सकता है लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे।
कैसे करें...
*पद्मासन अथवा सुखासन में रीढ़ की हड्डी बिलकुल सीधी रखते हुए बैठें।
*दाहिने नथुने को सीधे हाथ के अँगूठे से बंद कर लें। शेष अँगुलियों को आकाश की ओर रखें।
*बाएँ नथुने से फेफड़ों में साँस भरकर अंदर रोक लें। इस नथुने को अंगुलियों की मदद से बंद कर लें। धीरे-धीरे साँस दाहिने नथुने से बाहर निकाल दें।
*अब दाएँ नथुने से साँस अंदर की ओर भरें। अँगूठे की मदद से इसे बंद कर लें और थोड़ी देर रुककर बाएँ नथुने से बाहर निकाल दें। ऐसा 5 से 10 मिनट तक नियमित रूप से करें।
फायदा...
*शरीर में ऑक्सीजन का बहाव बढ़ेगा। इससे शरीर के प्रत्येग अंग में नई ऊर्जा का संचार होगा और रोगविहीन शरीर हासिल होगा। मन की उद्विग्नता शांत होगी।
*फेफड़ों में पहले से जमा विषैले पदार्थ बाहर निकलेंगे।
*एंडोर्फिन का उत्पादन बढ़ेगा जिससे अवसाद दूर होगा।
*फेफड़ों को अतिरिक्त फुलाने से एकाग्रता, धैर्य, लचीलापन तथा प्रतिरोध शक्ति बढ़ेगी। इससे पिट्यूटरी ग्रंथि का स्राव बढ़ेगा जिससे अंतर्दृष्टि भी बढ़ेगी।
*इससे रीढ़ की हड्डी के स्राव का बहाव मस्तिष्क की ओर बढ़ेगा जिससे संपूर्ण शरीर की ऊर्जा में भी वृद्धि होगी।
*आभामंडल बढ़ेगा और असुरक्षा की भावना खत्म होगी साथ ही भय भी जाता रहेगा।
*रक्त शुद्धि होगी।
*नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण हो सकेगा और जिससे बुरी आदतों पर लगाम लगेगी। पुराना ढर्रा भी टूट सकेगा।
संतुलन बढ़ेगा....
*मस्तिष्क के दोनों हिस्सों का संतुलन बढ़ेगा।
*प्रभावशीलता और शांति में इजाफा होगा।
*मानसिक स्थिति में बदलाव होगा।
*किसी प्रेजेंटेशन अथवा महत्वपूर्ण मीटिंग जिसमें आपके नर्वस होने के अवसर अधिक हों उसमें जाने से पहले ये यौगिक क्रियाएँ अवश्य करें। इससे आपको नर्वसनेस पर काबू पाने में मदद मिलेगी। आपकी घबराहट शांत रहेगी और आप किसी प्रश्न का उत्तर बिना उत्तेजित हुए दे सकेंगे।
*जीवन में लगातार तनावग्रस्त रहते हों तो प्रतिदिन इन यौगिक क्रियाओं से आपको बहुत फायदा होगा।