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सोमनाथ चटर्जी : कभी नहीं किया उसूलों से समझौता

सोमनाथ चटर्जी : कभी नहीं किया उसूलों से समझौता - Somnath Chatterjee
वामपंथी वटवृक्ष की जड़ रहे सोमनाथ चटर्जी ने राजनीति में कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया और संसदीय लोकतंत्र की मजबूती उनकी पहली प्राथमिकता रही। अपने राजनीतिक कार्यकाल में सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष के सम्मानित पद पर भी आसीन हुए।13 अगस्त 2018 को बीमारी के बाद कोलकाता में उनका निधन हो गया। 
 
सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई 1929 को बंगाली ब्राह्मण निर्मलचन्द्र चटर्जी और वीणापाणि देवी के घर में असम के तेजपुर में हुआ था। उनके पिता एक प्रतिष्ठित वकील और राष्ट्रवादी हिन्दू जागृति के समर्थक थे। उनके पिता अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के संस्थापकों में से एक थे।  
 
 
प्रारंभिक शिक्षा : सोमनाथ चटर्जी की शिक्षा-दीक्षा तत्कालीन कलकत्ता और ब्रिटेन में हुई। उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में भी पढ़ाई की। उन्होंने ब्रिटेन में मिडिल टैंपल से लॉ की पढ़ाई करने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की। इसके बाद उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया। सोमनाथ चटर्जी एक प्रखर वक्ता के रूप में भी जाने जाते हैं।
 
राजनीतिक करियर : सोमनाथ चटर्जी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत सीपीएम के साथ 1968 में की और वे 2008 तक इस पार्टी से जुड़े रहे। 1971 में वे पहली बार सांसद चुने गए। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 10 बार लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए थे। सोमनाथ चटर्जी की धर्मपत्नी रेणु चटर्जी थीं जिनसे उन्हें 1 पुत्र और 2 पुत्रियां हैं।
 
साल 2004 में 14वीं लोकसभा में 10वीं बार वे बोलपुर संसदीय सीट से निर्वाचित हुए। साल 1989 से 2004 तक वे लोकसभा में सीपीआईएम के नेता भी रहे। उन्होंने लगभग 35 सालों तक एक सांसद के रूप में देश की सेवा की। सोमनाथ चटर्जी को वर्ष 1996 में उत्कृष्ट सांसद के पुरस्कार से नवाजा गया।
 
सीपीएम ने पार्टी से निकाला था : 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता विधेयक के विरोध में सीपीएम ने तत्कालीन मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, तब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे। पार्टी ने उन्हें स्पीकर पद छोड़ देने के लिए कहा लेकिन वे नहीं माने। इसके बाद सीपीएम ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया।
 
ममता से हारे थे चुनाव : राजनीतिक करियर में एक के बाद एक जीत हासिल करने वाले सोमनाथ चटर्जी जीवन का एक चुनाव पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने हार गए थे। 1984 में जादवपुर सीट पर हुए लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने तब इस कद्दावर नेता को हराया था।

सोमनाथ चटर्जी के प्रयासों से ही हुई लोकसभा टीवी की शुरुआत : लोकसभा अध्यक्ष के रूप में व्यापक मीडिया कवरेज प्रदान करने हेतु सोमनाथ चटर्जी के प्रयासों से ही 24 जुलाई 2006 से 24 घंटे का लोकसभा टेलीविजन शुरू किया गया। उनके लोकसभा अध्यक्ष पर रहते हुए उनकी पहल पर ही भारत की लोकतांत्रिक विरासत पर अत्याधुनिक संसदीय संग्रहालय की स्थापना की गई। 14 अगस्त 2006 को इस संग्रहालय का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति ने किया। यह संग्रहालय जनता के दर्शन करने के लिए खुला है। 

वंचितों को आवाज को किया बुलंद : सोमनाथ चटर्जी ने कामगार वर्ग तथा वंचित लोगों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। सोमनाथ चटर्जी का वाद-विवाद कौशल, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ और जिस नम्रता के साथ वे सदन में अपना दृष्टिकोण रखते थे उसे सुनने के लिए पूरा सदन एकाग्रचित होकर सुनता था।