Goddess Rukmini birthday: रुक्मिणी अष्टमी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह पावन पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी और शक्ति स्वरूपा देवी रुक्मिणी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रुक्मिणी जी स्वयं देवी लक्ष्मी का अवतार हैं। यह व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
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इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से देवी रुक्मिणी तथा भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से भक्तों को अखंड सौभाग्य, वैवाहिक सुख और जीवन में समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस वर्ष यह व्रत 12 दिसंबर को मनाया जा रहा है।
इस बार कृष्ण अष्टमी आरम्भ: 11 दिसंबर को 01:56 पी एम से,
अष्टमी तिथि का समापन: 12 दिसंबर को 02:56 पी एम पर होगा।
आइए यहां जानते हैं इस व्रत के बारे में...
रुक्मिणी अष्टमी व्रत का महत्व:
1. रुक्मिणी देवी की पूजा:
रुक्मिणी अष्टमी का व्रत विशेष रूप से रुक्मिणी देवी की पूजा के लिए किया जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण की प्रिय पत्नी थीं। रुक्मिणी देवी की पूजा से विवाह के मामलों में सफलता प्राप्त होती है, और विशेष रूप से पारिवारिक सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
2. विवाह, सौभाग्य और सुख:
इस दिन व्रती विशेष रूप से विवाह की सफलता के लिए रुक्मिणी देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं। यह व्रत उन महिलाओं द्वारा खास तौर पर किया जाता है, जो अपने जीवनसाथी के स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना चाहती हैं। रुक्मिणी देवी की पूजा करने से सौभाग्य, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में सुख मिलता है।
3. कृष्ण का प्रेम:
रुक्मिणी अष्टमी का व्रत इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्रत भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के अद्भुत प्रेम और एकजुटता की याद दिलाता है। रुक्मिणी के रूप में भगवान श्री कृष्ण के साथ उनका स्नेह और प्यार प्रतीक है।
4. धार्मिक आस्था और पुण्य:
इस व्रत को रखने से व्रती को पुण्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सद्गति की प्राप्ति का मार्ग खोलता है।
पूजा विधि: रुक्मिणी अष्टमी व्रत का आयोजन निम्नलिखित विधि से करें:
1. व्रत का संकल्प:
व्रत के दिन सुबह उठकर पवित्र स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
फिर रुक्मिणी अष्टमी के दिन का संकल्प लें।
व्रत रखने का संकल्प लें और पूरे दिन के लिए निराहार या फलाहार पर ही रहे।
2. घर में पूजा स्थान तैयार करें:
पूजा के लिए घर के किसी पवित्र स्थान पर रुक्मिणी देवी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. पूजा सामग्री: पूजा में इन वस्तुओं की आवश्यकता होती है:
दीपक (घी या तेल का दीपक)
ताजे पुष्प
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर)
फल और मिठाइयां
अगरबत्ति, धूप
सौभाग्य के लिए रक्षासूत्र या सिंदूर
4. पूजा विधि:
सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी देवी के चित्र या मूर्तियों को पानी और पंचामृत से स्नान कराएं।
फिर उनकी ताजे पुष्पों से आराधना करें। माला पहनाएं।
दीपक जलाकर भगवान की आरती करें।
'ॐ श्री कृष्णाय नमः' और 'कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:' मंत्र का जाप करें।
रुक्मिणी देवी के आशीर्वाद की प्रार्थना करें और व्रत का संकल्प दोहराएं।
इस दिन खास तौर पर विवाह, सौभाग्य और सुख की प्रार्थना की जाती है।
मिष्टान्न और फल का भोग भगवान को अर्पित करें।
5. रात्रि पूजा:
रात्रि में तुलसी के पत्ते, दीपक और धूप से पूजा करें।
इस समय भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी देवी के काव्य पाठ या स्मरण से पूजा का समापन करें।
6. व्रत का पारण:
अगले दिन नवमी तिथि को व्रत का पारण (व्रत समाप्ति) किया जाता है।
पारण के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान करें।
इस दिन घर के सदस्यों को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त करें।
रुक्मिणी अष्टमी व्रत विवाह, सौभाग्य, और धार्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन रुक्मिणी देवी की पूजा से व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए लाभकारी माना जाता है जो अपने वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि और अपने जीवनसाथी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं।
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